BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, November 3, 2021

आओ हर घर की देहरी पर दीपक एक जलाएं

Thursday, November 4, 2021 आओ हर घर की देहरी पर दीपक एक जलाएं *****************
संकटनाशक गणेश स्तोत्र - प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् महालक्ष्मि अष्टकं - नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते श्रीसुक्तम् - ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्
आओ हर घर की देहरी पर दीपक एक जलाएं अंतर्मन में अपने सब के जो प्रकाश भर जाए हारे तम जैसे हारा है सदा सदा ये करें सुनिश्चित माँ लक्ष्मी को पूजें मन से वर पाएं निश्चित ही इच्छित
सभी प्रिय मित्रों को सपरिवार इस दीपोत्सव की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं। दिवाली का ये पावन पर्व सदा सदा हमारे दिलों से अंधियारा मिटाये ये समाज एक हो नेक हो समभाव से ओत प्रोत हो और उजाला हमारे मन के हर कोने में भर जाए । मंगल कामनाएं सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५ https://surenrashuklabhramar.blogspot.com दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, October 31, 2021

धन्यवाद हे प्रभु तुम्हे है

धन्यवाद हे प्रभु तुम्हे है मानव कर सब दिया खजाना। तू ही जाने क्यों भेजा है मुझको तो बस करते जाना **** धन्यवाद अम्मा बाबू का मिट्टी से सच घड़ा बनाया लाखों कष्ट सहे होंगे पर सच्चरित्र गुण सभी सिखाया ****** प्रथम गुरु संग सभी गुरु का धन्यवाद करते ना थकता अज्ञानी मैं मूढ़ बड़ा था प्रभु रहस्य आनंदित रहता ******* धन्यवाद सब जीव जगत हे! प्रकृति गोद सब मिल कर खेले खुशी खुशी कल पंच तत्व में कुछ रहस्य दे के फिर ले ले ****** धन्यवाद सब सखा सहेली मूक क्या वरने गुड़ की भेली तरु पादप हम प्रभु ही माली भूमंडल बस एक पहेली ***** धन्यवाद है मां शारद की ज्योति जगत फलदाई देखा चातक सी बस प्यास ज्योति की कर्म प्रबल पर मिटे न रेखा ***** आओ खेलें झूमें बोलें सीखे उनसे हैं प्रभु मूरत घृणा क्रोध ईर्ष्या से बच लें खो जाएं हम प्रभु की सूरत। ****** सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5 प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत। 1.11.2021 दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, October 30, 2021

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

मित्रों एक भारत श्रेष्ठ भारत की संकल्पना के साथ हमारे देश को एकता के सूत्र में बांध देने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जयंती आज देश भर में मनाई जा रही है , उन्हे हम सब की तरफ से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि। सरदार पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई थी। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया था। अध्यापक छात्रों को पुस्तकें बेंचते थे इसका उन्होंने विरोध किया और ये प्रथा खत्म हुई। 1918 में सूखा पड़ने पर किसानों के कर राहत के लिए उन्होंने संघर्ष किया अंग्रेजों से, इस आंदोलन की अगुवाई की। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में उन्हे भारत का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न दिया गया। आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई में बहुत समय लगा था 22 वर्ष में 10वीं पास कर पाए थे , वकील बनने के लिए महाविद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाए तो एक परिचित वकील से किताबें ले कर व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई की , इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका ध्यान केवल पैसा कमाने की तरफ नहीं गया। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई। गांधी जी की इच्छा के कारण वे प्रधानमंत्री नही बने और नेहरू जी को अवसर दिया गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बखूबी निभाया। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। उनकी याद को अविस्मरणीय और जीवंत रखने हेतु गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने उनकी 182 मीटर ऊंची भव्य लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है।
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, October 19, 2021

पक्षियों की सहायता करें

कभी कभी इन पक्षियों और बेजुबानों को भी हमारी आप की जरूरत पड़ती है , जब ये बीमार हों , लड़ भिड़ के आए हों घायल हो के तब। पिछली बार ऐसे दो मेहमान आए थे दो रात यहां घर में पड़ाव डाले फिर उड़ गए। इस बार ये काफी बीमार है पेट इनका बहुत खराब है और एक पैर भी लोड नही ले पा रहा आगे चोंच के बल लुढ़क जा रहे । एक रात तो यहां गुजर गई। देखो क्या होगा। प्रभु कृपा हो। राधे राधे। दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, October 9, 2021

उठा पटक बस टांग खींच ले




तुमने सोचा उड़ लेता हूं
ऊंचे ऊंचे हूं आकाश मेंr
ऊंचे उड़ते बहुत जीव हैं
सगे संबंधी हूं प्रकाश में
......
नही जानते कुछ ऐसे भी
घात लगाए बस उड़ान में
जितना भी मजबूत घोंसला
घात लगाए सदा ताक में
.......
पंख का ऊपर नीचे होना
चारे का धरती पर होना
मत भूलो उड़ उड़ कर जीना
पल छिन का कमजोर खिलौना
.......
छापामार लड़ाई अब तो
फन में माहिर कई गोरिल्ला
शंख बजे ना नियम ताक पे
ना अंधियारा लाल न पीला
..........
उठा पटक बस टांग खींच ले
चित चाहे जैसे भी कर दो
लोग हजारों साथ हैं तेरे
जब चाहो तब दंगल जीतो
.......
सच्चाई भी दब जाती है
भीड़ की मार बहुत जालिम है
झूंठ चिढ़ाते मुंह घूमे फिर
शान्ति द्रौपदी की मानिंद है
.......
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत।



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Wednesday, October 6, 2021

मां शैल पुत्री











*नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं*
*माँ भगवती आप सब की सारी मनोकामना पूर्ण करें* 
*माँ दुर्गा से मेरी प्रार्थना है कि ...*
*आप सब को सदा खुश रखें, सभी  स्वस्थ, धन, वैभव लाभ करें  मां की ममता , प्रेम , शौर्य से सभी समृद्धिशाली बनें, और आप सब प्रतिदिन नित नई सफलता की नई कहानी लिखें*
*जय माता दी*
*शुभ प्रभात*
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का शैलपुत्री नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इनकी पूजन विधि कुछ इस प्रकार है।

1)मां की पूजन विधि

सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी प

र चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दूर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।  

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थ- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

नवरात्र के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत ही पवित्र माने गए हैं। इसके पहले दिन शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों का राजा है। वह अडिग है, उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भक्ति का रास्ता चुनते हैं तो हमारे मन में भी भगवान के लिए इसी तरह का अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यही कारण है कि नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
नित्य कवच , कीलक, अर्गला श्रोत का पाठ करें दुर्गा सप्तशती का विधिवत पाठ कर मां  का ध्यान करें।
...............
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत।
🙏🙏🙏🙏🙏

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Tuesday, October 5, 2021

हिंसा का औचित्य कहां अब


हिंसा का औचित्य कहां अब
सन्मुख बैठो बात करो
उठा तिरंगा शांति दूत बन
पीछे ना आघात करो
.....
राज तंत्र से मन खट्टा जो
न्याय तंत्र विश्वास करो
काले गोरे नहीं लड़ाई
अपने सब तुम ध्यान रखो
........
कट्टरता आतंक है खांई
खोल आंख पहचान करो
तेरा मेरा घर ना भाई
काल अग्नि सम ध्यान धरो
.........
दंभ वीरता का ना भरना
उनकी मां भी वीर जनी हैं
अस्त्र शस्त्र सब राख ही होना
दावानल की नही कमी है
.......
सागर है उस पार नहीं कुछ
भ्रम मत पालो बढ़े चलो
कुछ मांझी तैराक बहुत हैं
साथ चलो कुछ मोती ढूंढो
.........
दीवाली का दिया जलाओ
घर आंगन कुटिया रहने दो
दर्द दिए मां नही रुलाओ
अश्रु प्रलय से जग बचने दो
.........
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत। 5.10.2021



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Sunday, October 3, 2021

विश्व प्रकृति दिवस, आओ पेड़ लगाएं

मेरे प्यारे मित्रों आज विश्व प्रकृति दिवस है, प्रकृति है तो हम हैं , प्रकृति की गोद में ही हम फलते फूलते हैं जीते हैं खेलते हैं सीखते हैं विकास करते हैं इस लिए अपनी मां जननी सरीखी इस प्रकृति के लिए सदा हम कुछ करते रहें हरे भरे पेड़ पौधे फूल घाटियां पर्वत झरने चिड़िया जानवर तरह तरह के जीव और प्यारे बच्चे किस का मन नहीं मोह लेते लेकिन जब हम अपने को बहुत ज्ञानी ध्यानी मान प्रकृति और पर्यावरण को दरकिनार कर स्वार्थ वश विध्वंशक चीजों को अपना कर केवल धन कमाने में लगे रहते हैं और प्रकृति की उपेक्षा करते हैं पेड़ पौधे काट डालते हैं तालाब को पाट रहे नदियों को समेट कर वहां घर बना रहे पर्वतों के आधार को अनायास हर तरफ काटे जा रहे तो विभीषिका भी हमारे सामने आती है और हम इंसान इतने ताकतवर हो भी प्रकृति की मार के आगे एक पल नही ठहरते आइए पेड़ लगाएं , सब को तो अपने पास ये अवसर नहीं होगा तो जहां भी अवसर मिले पार्क स्कूल सड़क आदि के पास ही सही , पेड़ लगाएं लगवाएं और यथा संभव उसे बड़े होने तक देख रेख में भी सहयोग देते रहें । 
फिर देखिए अपनी प्रकृति का प्रेम ।
शुभ प्रभात प्रभु कृपा सब पर बनी रहे।

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश , भारत।



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Monday, August 30, 2021

प्रकट हुए प्रभु नैना छलके

कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ

व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ
जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी गृह में आओ
मातु देवकी पिता श्री को प्रकटे तुम हरषाओ
भादों मास महीना मेघा तड़ित गरज मतवारे
तरु प्राणी ये प्रकृति झूमती भरे सभी नद नाले
कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ
व्रत ले शुभ सब – नैना तरसें और नहीं तरसाओ














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बारह बजने से पहले ही –सब- बंदी गृह में सोये
प्रकट हुए प्रभु नैना छलके माता गदगद होये
एक लाल की खातिर दुनिया आजीवन बस रोये
जगत के स्वामी कोख जो आये सुख वो वरनि न जाये
दैव रूप योगी जोगी सब नटखट रूप दिखाये
बाल रूप माता ने चाहा गोद में आ फिर रोये
सूप में लाल लिए यमुना जल सागर कैसे जाएँ
हहर -हहर कर उफन के यमुना चरण छुएं घट जाएँ
सब के हिय सन्देश गया सब भक्त ख़ुशी से उछले
आरति वंदन भजन कीर्तन थाली सभी बजाये
आज मथुरा में हाँ आज गोकुला में छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये …………….



सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।
फोटो साभार गूगल/ नेट से।


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Wednesday, August 25, 2021

एक दिन हो जाना है राख

जी, कितने आए कितने चले गए , मोह माया है सब , 
*********

ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
बूढ़ा पेड़ नए तरुवर से
उलझ कहां टिकता दमदार,
पानी खाद तो मिलना दूभर
बने खोखला गिरती डाल,
कुछ है हरा फूल फल गिरते
आंधी कभी, कभी वज्रपात,
पेड़ जीव या मानव तन हो,
मिलती जुलती एक कहानी,
आज खंडहर रोता कहता
एक थे राजा एक थी रानी,
जब तक दम है आओ खेलें
बोलें डोलें हंस मुस्का लें,
वे अबोध हैं क्रोध छोड़ दो
माफ करो कुछ बनेगी बात,
आग लगी है हवन सुगंधित
चाहे जितना कर पवित्र ले,
घी डालो या चंदन खुशबू,
पानी डालो या फिर पीटो, 
एक दिन हो जाना है राख, 
यही तो है सब की औकात.........

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।


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Saturday, August 21, 2021

भैया का गहना है बहना

बहना मेरी दूर पड़ा मै दिल के तू है पास
अभी बोल देगी तू "भैया" सदा लगी है आस 



 मुन्नी -गुडिया प्यारी मेरी तू है मेरा खिलौना 
मै मुन्ना-पप्पू-बबलू हूँ बिन तेरे मेरा क्या होना ! -
 तू ही मेरी सखी सहेली कितना खेल खिलाया कभी -कभी मेरी नाक पकड़ के तूने बहुत चिढाया ! 
थाली में तू अपना हिस्सा चोरी से था डाल खिलाया
जान से प्यारी मेरी बहना भैया का गहना है बहना !! 

जब एकाकी मै होता हूँ सजी थाल तेरी वो दिखती
चन्दन जभी लगाती थी तू पूजा- मेरी आरती- करती ! 


रक्षा -बंधन और मिठाई दस-दस पकवान पकाती थी 
 बाँध दिया बंधन से तूने ये अटूट रक्षा जो करता 
मेरी बहना सदा निडर हो ख़ुशी रहे दिल हर पल कहता
जहाँ रहे तू जिस बगिया में हरी-भरी हो फूल खिले हों
 ऐसे ही ये प्यारा बंधन सब मन में हो -गले लगे हों 
 तू गंगा गोदावरी सीता तू पवित्र मेरी पावन गीता 
तेरी राखी आई पाया चूम इसे मै गले लगाया 
 कितने दृश्य उभर आये रे आँख बंद कर हूँ मै बैठा 
जैसे तू है बांधे राखी मन -सपने-उड़ता मै "पाखी" 
 तेरी रक्षा का प्रण बहना रग-रग में राखी दौडाई 
और नहीं लिख पाऊँ बहना आँख छलक मेरी भर आई 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत

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Thursday, August 19, 2021

खो गए प्रेम के गीत


मै रोज तकूं उस पार
हे प्रियतम कहां गए
छोड़ हमारा हाथ
अरे तुम सात समुंदर पार
नैन में चलते हैं चलचित्र
छोड़ याराना प्यारे मित्र
न जाने कहां गए......
एकाकी जीवन अब मेरा
सूखी जैसी रेत
भरा अथाह नीर नैनों में
बंजर जैसे खेत
वो हसीन पल सपने सारे
मौन जिऊं गिन दिन में तारे
न जाने कहां गए....
हरियाली सावन बादल सब
मुझे चिढ़ाते जाते रोज
सूरज से नित करूं प्रार्थना
नही कभी वे पाते खोज
रोज उकेरूं लहर मिटा दे
चांद चकोरा के वे किस्से
न जाने कहां गए....
तड़प उठूं मैं मीन सरीखी
यादों का जब खुले पिटारा
डाल हाथ इस सागर तीरे
जब हम फिरते ज्यूं बंजारा
खो गए प्रेम के गीत
बांसुरी पायल की धुन मीत
न जाने कहां गए.....
…...............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।


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Thursday, July 15, 2021

एक कवि बीबी से अकड़ा _ हास्य

एक ‘कवि’ जब खिन्न हुआ तो बीबी से ‘वो’ अकड़ा
कमर कसा ‘बीबी’ ने भी शुरू हुआ था झगडा
कितनी मेहनत मै करता हूँ दिन भर ‘चौपाये’ सा 
करूँ कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता
सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग जाता 
कभी कोयला लकड़ी लादूँ हुआ ‘कोयला’ आता
दिन भर सोती भरे ऊर्जा लड़ने को दम आता ?
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पंखा झल दो चाय बनाओ सिर थोडा सहलाओ
मीठी-मीठी बातें करके दिल हल्का कर जाओ
काम से फटता है दिमाग रे ! चोरों की हैं टेंशन
चोर-चोर मौसेरे भाई मुझसे सबसे अनबन
कितना ही अच्छा करता मै बॉस है आँख दिखाता
वही गधों को गले मिला के दारु बहुत पिलाता
उसके बॉस भी डरते उससे बड़ा यूनियन बाज
भोली- भाली चिड़ियाँ चूँ ना करती- खाने दौड़े बाज
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बात अधूरी बीबी दौड़ी लिए बेलना हाथ
हे ! कवि तू अपनी ही गाये कौन सुने तेरी बात ?
सुबह पांच उठती सब करती साफ़ -सफाई घर की
तन की -मन की, पूजा करती घन-घन बजती घंटी
दौड़ किचेन में उसे नहाना कपड़ा भी पहनाती
चोटी करती ढूंढ के मोजा, बैज, रूमाल भी लाती
प्यार से पप्पी ले ‘लाली’ को वहां तलक पहुंचाती 
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फिर तुम्हरे पीछे हे सजना बच्चों जैसा हाल
इतने भोले बड़े भुलक्कड होती मै बेहाल
रंग चोंग के सजा बजा के तुम को रोज पठाती
लुढके रोते से जब आते हो ख़ुशी मेरी सब जाती
दिन भर तो मै दौड़ थकी हूँ कुछ रोमांस तो कर लो
आओ प्रेम से गले लगाओ आलिंगन में भर लो !
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हँसे प्यार से कली फूल ज्यों खिल-खिल-खिल खिल हंस लें
ननद-सास बहु-बात तंग मै दिल कुछ हल्का कर लें
छोटे देवर छोटे बच्चे सास ससुर सब काम
आफिस मेरा तुमसे बढ़कर यहाँ सभी मेरे बॉस
आफिस में ही ना टेन्शन है घर में बहुत है टेन्शन
कभी ख़ुशी तो कुढ़ -कुढ़ जीना यहाँ भी बड़ी है अनबन
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दस-दस घंटे रात में भी तुम- हो कविता के पीछे
हाथ दर्द है कमर दर्द है आँख लाल हो मींचे
ये सौतन है ' ब्लागिंग' मेरी समय मेरा है खाती
इंटरनेट मोडेम मित्रों से चिढ़ है मुझको आती
मानीटर ये बीबी से बढ़ प्यार है तुमको आता
लगा ठहाके हंस मुस्काते रंक ज्यों कंचन पाता
लौंगा वीरा और इलायची वो सुहाग की रात
हे प्रभु इनको याद दिला दे करती मै फरियाद
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कवि का माथा ठनका बोला मै सौ 'कविता' पा-लूं
'कविता' एक को तुम पाली हो, सुनता ही बस घूमूं
तुम थक जाती मै ना थकता, कविता मुझको प्यारी
पालो तुम भी दस-दस कविता तो अपनी हो यारी
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एक कवि -लेखक ही तो है- पूजा करता- ‘सुवरन’ पाछे भागे
हीरा मोती और जवाहर-ठोकर मारे-प्रीत के आगे नाचे-हारे
दो टुकड़े -कागज पाती कुछ -वाह वाह सुनने को मरता
प्रीत ‘मीत’ को गले लगाए दर्पण ‘निज’ को आँका करता
खून पसीना अपना लाता मन मष्तिष्क लगाता
टेंशन-वेंशन सब भूले मै, सोलह श्रृंगार सजाता
सहलाता कोमल कर मन से, ढांचा बहुत बनाता
मै सुनार -लो-‘हार’, कभी मै प्रजापति बन जाता
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आत्म और परमात्म मिलन से हँस गद-गद हो जाता
हे री ! प्यारी 'मधु' तू मेरी मै मिठास भर जाता
सात जनम तुझको मै पाऊँ सुघड़ सुहानी तू है
साँस, हमारी जीवन साथी जीवन लक्ष्मी तू है
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तब बीबी भी भावुक हो झर झर नैनन नीर बहाई
गले में वो 'बाला' सी लटकी कुछ फिर बोल न पायी
दो जाँ एक हुए थे पल में, धडकन हो गयी एक
हे ! प्रभु सब को प्यार दो ऐसा, सब बन जाएँ नेक
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'कविता' को भी प्यार मिले, भरपूर सजी वो घूमे
सत्य सदा हो गले लगाये, हर दिल में वो झूले
जैसे कविता एक अकेली कितने दिल को छू हरषाए
आओ हम भी दिल हर बस लें क्या ले आये क्या ले जाएँ ?
हम जब जाएँ भी तो 'हम' हों, 'मै' ना रहूँ अकेला
प्यारी जग की रीति यही है, दुनिया है एक ‘मेला’ !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' ५



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, June 18, 2021

दो फाड़ हो चुके

दो फाड़ हो चुके
....................
चूहों की चौपाल में
घमासान जारी है
दो फाड़ हो चुके
फिर भी ये टुकड़ा
अभी बहुत भारी है....
तीन चूहे
एक रोटी
सामर्थ्य नहीं
नोच दो फाड़ दो
उछल कूद जारी है...
उधेड़बुन, कशमकश
एक कोने से दूजे कोने
दौड़ भाग केंद्र तक जारी है...
मन नहीं है बांटने का
अनमना मन
लिहाज शर्म हया
अब भी सब पे भारी है....
खिसियाहट
दांत गड़ाने
दांत निपोरने 
नाम बदलने से 
अच्छा है बांट दो
सुगबुगाहट जारी है....
तीन टुकड़े भले होंगे
दर्द भूल जाएगा
हलाहल पच जाएगा
तीनों का पेट तो भर जाएगा
बहस अभी जारी है...
.....….............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, June 12, 2021

बाल श्रम निषेध















मित्रों जय श्री राधे, बाल श्रम निषेध के बारे में लोगों को सतत जागरूक करना हम सब का दायित्व है माता पिता जागरूक होंगे तो निश्चित ही वे साथ देंगे और इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी हम सभी जो साहित्य से जुड़े , पत्रकारिता से जुड़े, न्याय के कार्यों से जुड़े हैं उनका तो विशेष दायित्व बनता है ।

बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में वर्णित है।
हमारी इस प्यारी दुनिया मे बसे हर व्यक्ति का बचपन जीवन का सबसे खुशनुमा पल होता है । क्योंकि बचपन ही एक ऐसा अमूल्य समय होता है जिसमे हम तीव्र गति से बिना ईर्ष्या, घमंड के हर कुछ सीखते है जो देखते हैं उसका अनुकरण करते हैं जिस पर हमारा भविष्य निर्मित होता है ।
 सभी बच्चों का पूरा अधिकार है कि इन के माता-पिता उनकी सही परवरिश करें, उन्हे अच्छी शिक्षा दिलाएं, विद्यालय मे भेजें और दोस्तों के साथ खेलने फलने फूलने का पूरा समय दे । लेकिन बाल मजदूरी से इन फूल जैसे प्यारे बच्चों का पूरा जीवन बरबाद हो जाता है ।

हमारे देश मे 14 साल की कम उम्र वाले बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है । लेकिन प्रायः देखा जाता है कि माता-पिता की पीड़ा, गरीबी, भुखमरी और लाचारी से प्यारे बच्चे बाल मजदूरी के खतरनाक दलदल में धंसते फंसते चले जाते हैं ।
साधारण भाषा मे अगर समझा जाय तो किसी भी क्षेत्र में बच्चों से काम दबावपूर्णं करवाया जाए तो उसे बाल मजदूरी या बालश्रम कहते हैं ।

आज बाल श्रम पर इतने कड़े नियम कानून के होते हुए भी जिधर देखिए बाल श्रमिक का मकड़ जाल फैला पड़ा है ईंट भट्ठों में, होटलों में, छोटे कारखानों में , कबाड़ की दुकानों में बहुतायत ये दिखते हैं , जिसे हमारा श्रमिक विभाग अनदेखी कर नजर बंद किए घूमता रहता है। 
जरूरत है ऐसे माता पिता को अधिक जागरूक किया जाए उनके साथ श्रम विभाग कड़ाई भी करे। 
 क्या श्रम विभाग के आला अधिकारी जो अपने कार्य क्षेत्र में इन पर रोक नहीं लगा पाते , देखते घूम रहे नजरअंदाज किए, तो उनके ऊपर कार्यवाही न सुनिश्चित किया जाए??

भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जी जिन्होंने बाल श्रम को रोकने के लिए अपना पूर्ण सहयोग दिया तथा इसके लिए उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। ये मध्य प्रदेश में पैदा हुए और अपनी शिक्षक की नौकरी त्यागकर ‘बालश्रम’ की समाप्ति के कार्य में लग गये। 1980 में इन्होंने ‘बचपन बचाओ’ नामक एक आन्दोलन चलाया। 144 देशों में इन्होंने लगभग 83,000 बच्चों को बालश्रम से उबारा और उनकी शिक्षा आदि का भी विभिन्न सरकारों के सहयोग से प्रबन्ध कराया था।
कुल मिलाकर हमे बाल श्रम के अभिशाप से कैसे भी उबरना होगा कल यही बच्चे हमारे देश के अध्यापक, वैज्ञानिक, साहित्यकार आदि , कर्णधार बनेंगे और देश की प्रगति में सहायक होंगे।
आइए मित्रों और जागरूक बनें और बनाएं, जय श्री राधे।
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, May 22, 2021

कोरोना के काल को

कोरोना के काल को, 
झूंठलाए जो लोग।
खुद शिकार वो हो गए ,
 और बढ़ाए रोग।।

दो गज दस मीटर बना, 
मास्क बना अनिवार्य,
आफिस घर बाहर सभी,
पहन करो सब कार्य।।

अगर भीड़ हो, संशय कुछ हो,
कहीं संक्रमित, टहल गया हो,
शरमाओ ना मास्क,पहन लो,
गली मोहल्ला, अपना घर हो।।

गले मि लो ना ,
ना हाथ मिलाओ,
छूना कुछ हो , 
सैनिटाइजर  हाथ लगाओ ।

आंख नाक जो छूना ही हो,  
 साबुन से तुम हाथ मलो।
हाथ छुवो ना, हाथ बढ़ाओ
कठिन समय, पग चलो जमाओ।

ठंडा पानी पेय नहीं लो
काढ़ा भाप गर्म पानी लो
अदरक तुलसी या गिलोय हो
दवा सुझाई गई मात्र लो

फंगस व्हाइट ब्लैक कोई भी
पहचानो आहट खतरे की
अस्पताल भागो जाओ 
देरी ना हो दवा कराओ

नाक बंद हो चेहरे सूजन
आंख दर्द या धुंधलापन हो
फंगस के हैं सारे लक्षण
दांत हिले या दर्द दांत हो 

अगर शुगर या रोग पुराना
स्टेरायड खुद ना खाना
डाक्टर से ही दवा लिखाना
सब को भाई रोज सिखाना

बहुरूपिया अदृश्य कोरोना
भूल करो ना पीछे रोना
भोले भाले को समझाना
अपना ही दायित्व समझना

श्मशान नदियों के तट से
दूर रहो है वायु प्रदूषित
आंधी चिड़ियां मरे जानवर
जलजमाव बहुतेरे दूषित

प्राणायाम योग कसरत से
आओ चुस्त दुरुस्त बनें 
प्रोन पोजिशन लेट लेट के
ऑक्सिजन भरपूर भरें

रखें हौंसला ना घबराएं
जंग जीत कर हम मुस्काएं
झंझावात महामारी को
सब मिल आओ दूर भगाएं
***********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5 , प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, May 15, 2021

आज चांद शरमाया कुछ है

***************
आज चांद शरमाया कुछ है
गोरी चंदा छुपी निहार
हिय हुलसे कब साजन झांकें
मन खटके दौड़े बस द्वार
*******************
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, May 12, 2021

कोरोना है डरा रहा

*****************
कोरोना है डरा रहा, 
चुन चुन करे शिकार
आंख बन्द माने नहीं , 
शामिल हुए हजार।
***************
कोरोना से मत डरो,
 अपनाओ सब ढाल
हृष्ट पुष्ट ताकत रखो,
कर लो प्राणायाम,
*************
काढ़ा भाप गर्म पानी लो,
घर में करो आराम,
मास्क सैनिटाइजर ना भूलो,
बाहर गर हो काम
*************
अदरक तुलसी मिर्च हो काली, 
लौंगा और गिलोय
नीबू सेंधा नमक प्याज भी,
घर में करो प्रयोग
****************
रूप प्रभु के यहां चिकित्सक
लो सलाह भरपूर
जो बोलें तुम करो दवाई
खा लो थोड़ा धूप
***************
कुछ कपूर हो लौंग साथ में,
कभी कभी लो सूंघ
प्रोन पोजिशन लेट सांस लो,
ऑक्सिजन भरपूर।
***************
प्रात उठो टहलो बस घर में
योग ध्यान कसरत कुछ कर लो,
पौधों फूलों से कुछ खेलो
प्यार करो हंस लो मुस्का लो।
******************
आंधी आए कुछ फल गिरते
बचते फिर मजबूत
आओ बांटें व्यथा सभी की,
हृदय बचे ना कोई शूल।
*****************
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, April 20, 2021

संगिनी हूं संग चलूंगी

संगिनी हूं संग चलूंगी
------------------------
जब सींचोगे
पलूं बढूंगी
खुश हूंगी मै
तभी खिलूंगी
बांटूंगी
 अधरों मुस्कान
मै तेरी पहचान बनकर
********
वेदनाएं भी
 हरुंगी
जीत निश्चित 
मै करूंगी
कीर्ति पताका
मै फहरूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
*********
अभिलाषाएं 
पूर्ण होंगी
राह कंटक
मै चलूंगी
पाप पापी
भी दलूंगी
संगिनी हूं
संग चलूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
*********
ज्योति देने को
जलूंगी
शान्ति हूं मैं
सुख भी दूंगी
मै जिऊंगी
औ मरूंगी
पूर्ण तुझको
मै करूंगी
सृष्टि सी 
रचती रहूंगी
सर्वदा ही
मै तेरी पहचान बनकर
**********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ,
भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, April 18, 2021

साजन का मुख तो दिखला दे

***************
कितना ठौर ठिकाना बदले
हे चंदा तू नित आकाश
साजन का मुख तो दिखला दे
चैन से सो लूं जी इस रात
*******************
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, April 17, 2021

फूला अब तो फल रहा विषाणु बनकर

उग गया बोया गया या उड़ के आया
फूला अब तो फल रहा विषाणु बनकर
भोर को लूटा गया मिटते उजाले
खींचती है भींचती अब काल रात्रि है भयंकर
शिव हैं शव है औ मरुस्थल भस्म सारी
रोती आंखें आंधियां तू फां बवंडर
सांस अटकी थरथराते लोग सारे
रेत उड़ती फड़ फड़ाते पिंड पिंजर
गुल गुलिस्तां हैं हुए बेजान सारे
सूखती तुलसी पड़ी वीरान घर है खंडहर
ना भ्रमर हैं गूंजते ना फूल मुस्काते दिखे
मोड़ मुख हैं दूर सारे कौन कूदे इस कहर
दुधमुंहे जाते रहे हैं बूढ़ी आंखें थक चुकीं
बूढ़े कांधे टूटते अब कौन ढोए ये सितम
चार दिन की जिंद गानी कौन खोए
छू के शव को सोचते बीते प्रहर
खोद देते फेंक देते औंधे मुंह जज़्बात सारे
मर मिटीं संवेदनाएं क्रूर आया है प्रलय
शान्त हो मस्तिष्क को काबू रखो हे!
नाचो गाओ कर लो चाहे आज तांडव
मौन मत हो गा आे झूमो काल भैरव ही सही
दिल से छेड़ो तुम तराने साथ छोड़े ना हृदय
******************
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत 17.04.2021



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, April 14, 2021

प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली


*****************
प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली
देखें तुझको दसियों बार
चांद देख लें अपनी ' पगली '
आ मिल लें सावन इस बार ।
*****************
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, April 11, 2021

झांक नैनों पढ़ रही हूं

छुआ जब से मुझको तूने
खिल गई हूं
कली से मै फूल बनकर
भ्रमर आते ढेर सारे
छुप रही हूं
ना सताएं शूल बनकर
गुनगुनाते छेड़ते कितने तराने
खुश बहुत हूं
तार की झनकार बनकर
मधु पराग खुश्बू ले उड़ते
फिर हूं रचती अन्नपूर्णा -
स्नेह घट मै कुंभ बनकर
नेह निमंत्रण दे जाते कुछ
झांक नैनों पढ़ रही हूं
संग जाती हूं कभी मुस्कान बनकर
वेदनाएं ले उदासी घूमते कुछ
धड़कनें दिल की समझती
अश्रु धारा मै सहेजूं सीप बनकर
नत हुए कुछ पाप ले मिलते शरण तो
पूत करती मै पवित्री
बह रही जग गंगा यमुना धार बनकर
स्नेह पूजा मान देते ढेर सारे
प्रकृति अपनी देवी मां हूं
बलि हुई हूं
सुख प्रदाता हवन बनकर

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, 
12.04.2021


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 9, 2021

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी
----------------------------------------
रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली
ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए
नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए
स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी
गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती
तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती
घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती
नाचते मोर कलियां थी पर खोलती
फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग
माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर
लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 
मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 
दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था
क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था
मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी
क्या कभी भूल सकता है संसार भी
गीत तू साज तू मेरा संगीत भी
शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी
नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी
जिसने जीवन दिया पालती पोषती
नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी
 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत , 10.4.2021



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

आज चांद का रंग कुछ बदला


आज चांद का रंग कुछ बदला , 
प्रिय ने शायद देख लिया ।
लाल तभी है मेरा मुखड़ा,  
नैन उतर दिल नेह किया ।।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, April 8, 2021

कर सोलह श्रृंगार नटी ये

कर सोलह श्रृंगार नटी ये
...…...……..........
नीले नभ पे श्वेत बदरिया
मलयानिल मिल रूप आंकती
हिमगिरि पे ज्यों पार्वती मां
सुंदरता की मूर्ति झांकती
……....….....
शिव हों भोले ठाढे जैसे
बादल बड़े भयावह काले
वहीं सात नन्हे शिशु खेलें
ब्रह्मा विष्णु सभी सुख ले लें
……..…............
निर्झर झरने नील स्वच्छ जल
कल कल निनादिनी सरिता देखो
हरियाली चहुं ओर है पसरी
स्वर्ण रश्मि अनुपम छवि देखो
…...................
कर सोलह श्रृंगार नटी ये
प्रकृति मोहती जन मन देखो
..…
श्वेत कबूतर ले गुलाब है
उड़ा आ रहा स्वागत कर लो
…...…........
फूल की घाटी तितली भौंरे
कलियों फूल से खेल रहे
खुशबू मादक सी सुगन्ध ले
नैन नशीले बोल रहे
......
पंछी कुल है हमें जगाता
कलरव करते दुनिया घूमे
छलक उठा अमृत घट जैसे
अमृत वर्षा हर मुख चूमे
...........
हहर हहर तरू झूम रहे हैं
लहर लहर नदिया बल खाती
गोरी सिर अमृत घट लेकर
रोज सुबह आ हमे उठाती
..........
ओस की बूंदें मोती जैसे
दर्पण बन जग हमे दिखाती
करें खेल अधरो नैनों से
बड़ी मोहिनी हमे रिझाती
............
कहीं नाचते मोर मोरनी
झंकृत स्वर हैं कीट पतंगे
रंग बिरंगी अद्भुत कृति की
शोभा निखरी किस मुंह कह दें
,.....….........
मन कहता भर अनुपम छवि उर
नैन मूंद बस कुटी रमाऊं
स्नेह सिक्त मां तेरा आंचल
शिशु बन मै दुलराता जाऊं
..........
उठो सुबह हे! ब्रह्म मुहूरत
योग ध्यान से भरो खजाना
वीणा के सुर ताल छेड़ लो
क्या जाने कब लौट के आना ।
.........
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
भारत 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, April 6, 2021

मुझको भी ले चल तू मुन्ना, रंग बिरंगे सपनों में

नैन मूंद मत करे अकेला
मेरे जीवन का तू मेला
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

अंक भरूं मै चंदा मामा
सूरज चाचू को जल दे दूं
तारों संग कुछ कंचा खेलूं
नील गगन में सैर करूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना......

परियों संग मै खेलूं कूदूं
सप्तऋषि संग वेद पढूं
परियों की जादुई छड़ी लेे
शक्तिमान बन खेल करूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना.........

तितली बन मै फूल की घाटी
पर्वत चढ़ बादल से खेलूं
कामधेनु से मांग खिलौने
कल्पवृक्ष पे झूला झूलूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

नदियां सागर झील व झरने
हरे भरे जंगल में घूमूं
हाथी दादा हिरन मोर से
करूं दोस्ती सब सुख लेे लूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

गौरैया तोता बुलबुल संग
राजहंस बगुला संग उड़ लूं
ले प्यारे बच्चों की टोली
कान्हा संग मै माखन खाऊं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

चलूं घुटुरुवन छुन्नुन छुन्नून
पैजनिया पैरन में पाऊं
उठूं गिरूं चीखूं चिल्ला के
मां की गोदी में छुप जाऊं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

आंख बंद जब तू मुस्काए
तीन देव संग जग हंस जाए
अधर तुम्हारे जब रोने को
मातृ दे वियां सब दुलराएं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना.........

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश, भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, March 31, 2021

पल्लव कोंपल है गोद हरी

शीत बतास औे पाला सहे नित
ठूंठ बने हिय ताना सुने जग
कूंच गई फल फूल मिले
तेरे साहस पे नतमस्तक सब
पल्लव कोंपल है गोद हरी
रस भर महुआ निर्झर झर झर
सब खीझत रीझत दुलराते
सम्मोहित कुछ वश खो जाते
मधु रस आकर्षित भ्रमर कभी
री होली फाग सुनावत हैं
छलकाए देत रस की गागर
ज्यों अमृत पान करावत है
ऋतुराज वसंत भी देख चकित
गोरी चंदा तू कर्पूर धवल
रचिता बनिता दुहिता गुण चित
चहुं लोक बखान बखानत बस
शुध चित्त मर्मज्ञ हरित वसनी
पावन करती निर्झर जननी
बल खाती सरिता कंटक पथ
उफनत हहरत सागर दिल पर
कुछ दबती सहती शोर करे
गर्जन बन मोर नचावत तो
कुछ नाथ लेे नाथ रिझावत है
मंथन कर जग कुछ सूत्र दिए
मदिरा मदहोश हैं राहु केतु 
कुछ देव मनुज संसार हेतु
री अमृत घट करुणा रस की
मै हार गया वर्णन सिय पी
------------------------
सुरेंद्र कुमार शुक्ल
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

बार बार उड़ने की कोशिश
गिरती और संभलती थी
कांटों की परवाह बिना वो
गुल गुलाब सी खिलती थी
सूर्य रश्मि से तेज लिए वो
चंदा सी थी दमक रही
सरिता प्यारी कलरव करते
झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती
शीतल मनहर दिव्य वायु सी
बदली बन नभ में उड़ जाती
कभी सींचती प्राण ओज वो
बिजली दुर्गा भी बन जाती
करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे
कितने अगणित रूप दिखाती
प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू
प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, March 19, 2021

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के
बौराया मेरा निश्च्छल मन
फूटा अंकुर कोंपल फूटी
टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन
कोयल कूकी बुलबुल झूली
सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन
छुयी मुई सी नशा नैन का 
यादों वादों का झूला वो फूला मन
हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी
सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन
लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को
पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन
फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन
कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर
मादक सी गंध है होली के रंग लिए
कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन
पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से
गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत
19.3.2021



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, March 14, 2021

' दहेज ' कोई गारंटी नहीं है


' दहेज ' कोई गारंटी नहीं है
निपटाने की साज़िश है
घर में घुसने का पास भर है
चलचित्र की सफलता 
अपने अभिनय पर भी है
छह रुपए हों या छह करोड़
मन कहीं मिला  'एक ' का
पार हो गए साठ साल
नहीं मना लो छह दिन की छट्ठठी 
बरही या फिर ......बस।
लालसा है लालच है
पराकाष्ठा है नफरत का बीज
रिश्ते मर जाते हैं
खौलता है खून
बेहया बेशरम लाल लाल फूल
सेमल सा - जैसे  गोला आग का ।
अपनी औकात भर
भर के हम दांत चियार लेते हैं
होंठ फैला जबरन हंस लेते हैं
कभी खेत बेंच के 
कभी कर्ज लेे के 
कभी किसी का गला काट के ।
गारंटी नहीं है कोई 
घर बसा देने की
प्रेम का दिया जला देने की
दिया तो दिया है
क्या रूप धारण कर ले ।
आइए जोड़ें हाथ दुआ करें
पंख मजबूत हों 
चिड़िया उड़े खूब उड़ें
खुले आसमान में ।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत ।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, March 11, 2021

हैं बुलंद हौंसले हमारे

हैं बुलंद हौंसले हमारे
पंखों में है जान
थाह लेे रहे ग्रह नक्षत्र की
ऊंची बहुत उड़ान
योग ध्यान से सांस रोकते
बनी अजब पहचान
मिल आते पल में हर दिल से
हर दिल अपनी जान
शान्ति प्रेम का पाठ पढ़ाते
ऋषि मुनि बने महान
विश्व गुरु बनना है निश्चित 
मन में बैठे ठान
टेलीपैथी ग्रह नक्षत्र की
ख़ाक रहे हैं छान
सूरज से कल आंख मिलाए
चंदा से पहचान
स्वर्ग नर्क पाताल रसातल
रचें ग्रन्थ दिनमान
डूब डूब अंतर्मन में हम
फूंक रहे हैं जान
वीर धीर हम तेज प्रबल हैं
अणु कण से पहचान
आओ हाथ मिला हम लिख दें
भारत सदा महान
---------------------
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
उत्तरप्रदेश, भारत
12.3.2021


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, February 27, 2021

तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये

तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
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तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
छलनी दिल में भी मूरत दिखेगी तेरी
ढूंढता पूजता रात दिन मै जिसे
प्यासा चातक निगाहें तो बरसें तेरी
-----------
मोम की तू बनी लेे के कोमल हिया
मत जला मुझको री तू पिघल जाएगी
प्रेम दर्पण में तेरे है अटका जिया
कंकरी मार सौ - सौ तू बन जाएगी
------------
फूल कोमल सुकोमल मेरी जान री
कांटा ही मै सही प्रहरी पहचान हूं
खुश्बू बिखराए मादक नशेमन अरी
करता गुंजन ' भ्रमर ' मै तेरी शान हूं
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चांद  है तू  चकोरा मै इक टक लखूं
सांस कमतर हुई कल चली जाएगी
प्रेम रस दे भिगो बदली - बिजली सहूं
मेनका इन्द्र धनु कितना तरसाएगी
-------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
उत्तर प्रदेश , भारत
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं