कितनों की जान लेगी ये .....असहनशीलता
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सुबह सवेरे खुशी मन तन के साथ प्रकृति के साथ जुड़कर घूमना टहलना सूर्य नमस्कार योग ध्यान स्नान अर्घ्य पूजा पाठ फिर शुभ कर्मों में लग कर रचते जाना यही तो संस्कार था हमारे भारत का।
माता पिता परिजन श्रेष्ठ जन वरिष्ठ जन का आदर सम्मान उनकी बातें मानना खुद कितना भी योग्य हों उनको सर माथे बिठाए रखना आदत में शुमार था हमारी । सुनहरी यादें क्या यादें ही रह जायेंगी ?? या आज के किशोर, युवा वर्ग इन प्यारी आदतों को अपनी धरोहर मान अपनी संस्कृति की इस विरासत को आगे ले चलेंगे।
सुबह की खबरों से शुरू हो पल पल दिन भर आती भयावह खबरें मन मस्तिष्क को झकझोर सोचने पर विवश कर रही है कि हो क्या रहा है हमारे घर परिवार समाज को? चूक कहां हुई मां बाप से बच्चों को सम्हालने में , क्यों बच्चे इतने उच्छृंखल होते जा रहे है बंधन से बाहर हाथ में मोबाइल आया चार दोस्त बहकाने बहकने वाले मिले और बच्चे हाथ से बाहर।
कुछ निम्न घटनाएं अभी फिर एक दो दिन में दिखीं जिन पर गौर करना सोचना सम्हलना जरूरी हो गया अभिभावक आंखें खोलें, सतर्कता बरतें, नहीं तो पानी गले से ऊपर सिर तक पहुंच ही जायेगा
1. बहन का नया मोबाइल चोरी हुआ घर में भाभी से कुछ कहासुनी गाली गलौच और रात में ही भाई ने अपनी ही सगी बहन को गोली मार दी। ... आदमी के जान की कीमत और निकृष्ट वस्तु से तुलना और असहनशीलता।
2. दोस्त ने दोस्त की गर्ल फ्रेंड से बात की की , बातें बढ़ीं और दोस्त ने ही अपने जिगरी दोस्त की जान ले ली... यही दोस्त अपनी प्राइवेसी को अपनी प्रियतमा की बातें और प्रेमिका खुद को शौक से दोस्तों के बीच में ले जाते हैं और फिर नारी को एक वस्तु समझा जाता है फिर जागता है सम्मान और अपमान बदला। कारण मूर्खता और असहनशीलता।
3. गृह कलेश और घरेलू झगड़ों के कारण विक्षिप्त मानसिक अवस्था में बाप ने अपने एक 7 वर्षीय पुत्र और 9 वर्षीय पुत्री को कुएं में फेंका। .....शुरू शुरू में तो फालतू के तर्क वितर्क अच्छे लगते हैं अपनी बातें ही जायज लगती हैं दूसरों को न सुनना विवेक से काम न लेना शांति स्थापना के लिए कोई भी सदस्य आगे बढ़कर , न झुककर शांति और समस्या समाधान की कोशिश करना ही कल भयावह परिणाम लाता है और असहनशीलता कारक होती है।
4. रंगदारी वसूलने के लिए ठेलेवाली महिला के पुत्र को पीट डालना और पेट्रोल छिड़क कर आग लगाना....फिर एक जान और वस्तु को एक पलड़े में रख कर तोलना और घर परिवार कानून के भय से बेखबर और असहनशीलता की पराकाष्ठा ...कहां जा रहे हैं हम और हमारा समाज?
5. चाचा का भतीजे को बीच चलती सड़क पर चाकुओं से गोदकर मार डालना और आते जाते लोग दुकान वालों और कानून को ठेंगा दिखा देना ....जाहिर करता है कि छोटी छोटी बातें ही कल जहर बन जाती हैं और जान लेवा हो जाती हैं असहनशीलता कितनी बढ़ गई है इसको देख सुन ही लोगों का मन कांप जाता है और बदले में क्रोध का उबाल आता है जो कि पुनः दुखदाई और सब कुछ राख कर देने वाला होता है।
अतः सभी अभिभावकों भाइयों माताओं बहनों, सबको जागना होगा आज बहुत से विकल्प हैं हमारे पास बहुत से मंच है बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग
करें , छोटी घटनाओं पर ध्यान दें और आग की दरिया में पांव रखने को उद्धत पीढ़ी को सहेजें सम्हालें।
बच्चों पर निगाह बचपन से ही रखें फिर बड़े होने पर भी वही प्रेम दुलार शासन अनुशासन बनाए रखें प्रेम दंड और पुरस्कार से उन्हे कतई ये कह कर न छोड़ दें कि बच्चा अब तो खुद बड़ा हो गया है गलत कदम नहीं उठाएगा या किसी के बहकावे में नहीं आएगा , जानबूझकर गलती न भी करे भूल से भी बहक सकता है , आप अभिभावक हैं असहनशीलता न उपजने दें ये आप का दायित्व है, और आप अपने दायित्व से पल्ला कतई नहीं झाड़ सकते। संघर्ष तो आप को भी करना ही होगा , नही तो वही कहावत चरितार्थ होगी
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय, और कांटे आप को भी चुभना स्वाभाविक होगा।
जय श्री राधे।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
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