BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, March 31, 2021

प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

बार बार उड़ने की कोशिश
गिरती और संभलती थी
कांटों की परवाह बिना वो
गुल गुलाब सी खिलती थी
सूर्य रश्मि से तेज लिए वो
चंदा सी थी दमक रही
सरिता प्यारी कलरव करते
झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती
शीतल मनहर दिव्य वायु सी
बदली बन नभ में उड़ जाती
कभी सींचती प्राण ओज वो
बिजली दुर्गा भी बन जाती
करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे
कितने अगणित रूप दिखाती
प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू
प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५