BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, August 30, 2021

प्रकट हुए प्रभु नैना छलके

कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ

व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ
जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी गृह में आओ
मातु देवकी पिता श्री को प्रकटे तुम हरषाओ
भादों मास महीना मेघा तड़ित गरज मतवारे
तरु प्राणी ये प्रकृति झूमती भरे सभी नद नाले
कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ
व्रत ले शुभ सब – नैना तरसें और नहीं तरसाओ














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बारह बजने से पहले ही –सब- बंदी गृह में सोये
प्रकट हुए प्रभु नैना छलके माता गदगद होये
एक लाल की खातिर दुनिया आजीवन बस रोये
जगत के स्वामी कोख जो आये सुख वो वरनि न जाये
दैव रूप योगी जोगी सब नटखट रूप दिखाये
बाल रूप माता ने चाहा गोद में आ फिर रोये
सूप में लाल लिए यमुना जल सागर कैसे जाएँ
हहर -हहर कर उफन के यमुना चरण छुएं घट जाएँ
सब के हिय सन्देश गया सब भक्त ख़ुशी से उछले
आरति वंदन भजन कीर्तन थाली सभी बजाये
आज मथुरा में हाँ आज गोकुला में छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये …………….



सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।
फोटो साभार गूगल/ नेट से।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, August 25, 2021

एक दिन हो जाना है राख

जी, कितने आए कितने चले गए , मोह माया है सब , 
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ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
बूढ़ा पेड़ नए तरुवर से
उलझ कहां टिकता दमदार,
पानी खाद तो मिलना दूभर
बने खोखला गिरती डाल,
कुछ है हरा फूल फल गिरते
आंधी कभी, कभी वज्रपात,
पेड़ जीव या मानव तन हो,
मिलती जुलती एक कहानी,
आज खंडहर रोता कहता
एक थे राजा एक थी रानी,
जब तक दम है आओ खेलें
बोलें डोलें हंस मुस्का लें,
वे अबोध हैं क्रोध छोड़ दो
माफ करो कुछ बनेगी बात,
आग लगी है हवन सुगंधित
चाहे जितना कर पवित्र ले,
घी डालो या चंदन खुशबू,
पानी डालो या फिर पीटो, 
एक दिन हो जाना है राख, 
यही तो है सब की औकात.........

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, August 21, 2021

भैया का गहना है बहना

बहना मेरी दूर पड़ा मै दिल के तू है पास
अभी बोल देगी तू "भैया" सदा लगी है आस 



 मुन्नी -गुडिया प्यारी मेरी तू है मेरा खिलौना 
मै मुन्ना-पप्पू-बबलू हूँ बिन तेरे मेरा क्या होना ! -
 तू ही मेरी सखी सहेली कितना खेल खिलाया कभी -कभी मेरी नाक पकड़ के तूने बहुत चिढाया ! 
थाली में तू अपना हिस्सा चोरी से था डाल खिलाया
जान से प्यारी मेरी बहना भैया का गहना है बहना !! 

जब एकाकी मै होता हूँ सजी थाल तेरी वो दिखती
चन्दन जभी लगाती थी तू पूजा- मेरी आरती- करती ! 


रक्षा -बंधन और मिठाई दस-दस पकवान पकाती थी 
 बाँध दिया बंधन से तूने ये अटूट रक्षा जो करता 
मेरी बहना सदा निडर हो ख़ुशी रहे दिल हर पल कहता
जहाँ रहे तू जिस बगिया में हरी-भरी हो फूल खिले हों
 ऐसे ही ये प्यारा बंधन सब मन में हो -गले लगे हों 
 तू गंगा गोदावरी सीता तू पवित्र मेरी पावन गीता 
तेरी राखी आई पाया चूम इसे मै गले लगाया 
 कितने दृश्य उभर आये रे आँख बंद कर हूँ मै बैठा 
जैसे तू है बांधे राखी मन -सपने-उड़ता मै "पाखी" 
 तेरी रक्षा का प्रण बहना रग-रग में राखी दौडाई 
और नहीं लिख पाऊँ बहना आँख छलक मेरी भर आई 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, August 19, 2021

खो गए प्रेम के गीत


मै रोज तकूं उस पार
हे प्रियतम कहां गए
छोड़ हमारा हाथ
अरे तुम सात समुंदर पार
नैन में चलते हैं चलचित्र
छोड़ याराना प्यारे मित्र
न जाने कहां गए......
एकाकी जीवन अब मेरा
सूखी जैसी रेत
भरा अथाह नीर नैनों में
बंजर जैसे खेत
वो हसीन पल सपने सारे
मौन जिऊं गिन दिन में तारे
न जाने कहां गए....
हरियाली सावन बादल सब
मुझे चिढ़ाते जाते रोज
सूरज से नित करूं प्रार्थना
नही कभी वे पाते खोज
रोज उकेरूं लहर मिटा दे
चांद चकोरा के वे किस्से
न जाने कहां गए....
तड़प उठूं मैं मीन सरीखी
यादों का जब खुले पिटारा
डाल हाथ इस सागर तीरे
जब हम फिरते ज्यूं बंजारा
खो गए प्रेम के गीत
बांसुरी पायल की धुन मीत
न जाने कहां गए.....
…...............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं