BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, February 25, 2023

कौन हो तुम प्रेयसी

कौन हो तुम प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं

घुंघराली जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया
मेनका-कामिनी,
गज गामिनी
मयूरी सावन की घटा
सुनहरी छटा
इंद्रधनुष , कंचन काया
चित चोर ?
अप्सरा , बदली, बिजली
गर्जना, वर्जना
या कुछ और ?
निशा का गहन अन्धकार
या स्वर्णिम भोर ?
कमल के पत्तों पर ओस
आंसू, ख्वाबों की परी सी ..
छूने जाऊं तो
सब बिखर जाता है
मृग तृष्णा सा !
वेदना विरह भीगी पलकें
चातक की चन्दा
ज्वार- भाटा
स्वाति नक्षत्र
मुंह खोले सीपी सा
मोती की आस
तन्हाई पास
उलझ जाता हूँ -भंवर में
भवसागर में
पतवार पाने को !
जिंदगी की प्यास
मजबूर किये रहती है
जीने को ...
पीने को ..हलाहल
मृग -मरीचिका सा
भरमाया फिरता हूँ
दिन में तारे नजर आते हैं
बदहवाश अधखुली आँखें
बंद जुबान -निढाल -
सो जाता हूँ -खो जाता हूँ
दादी की परी कथाओं में
गुल-गुलशन-बहार में
खिलती कलियाँ लहराते फूल
दिल मोह लेते हैं
उस 'फूल' में
मेरा मन रम जाता है
छूने बढ़ता हूँ
और सपना टूट जाता है
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, February 21, 2023

नारी तो है कुल की देवी

नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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जप से श्रम से तप से गढ़ती
फिर एक जीवन नई कहानी
रक्त से अपने सींच भी रही
प्रेम प्यार भी आंखों पानी
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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पग पग कष्ट सहे कल्याणी
धूप छांव से हमे बचाती
भरे धनात्मक ऊर्जा हम में
जादू टोना सदा बचाती
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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बिटिया लक्ष्मी घर आंगन की
खुशी हंसी खुश्बू कविता है
घर आंगन संसार की अपनी
प्राण प्रतिष्ठा लाज दया है
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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इस कुल उस कुल की दीपक है
अंधियारे से सदा बचाती
ज्ञान की देवी प्रेम की मूरत
प्रेम प्यार सब यही सिखाती
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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गंगा सीता लक्ष्मी दुर्गा
पूत पावनी रूप अनेक
श्रद्धा पूजा काम कामिनी
भक्ति शक्ति सब कुछ ये

नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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आओ सीखें इनसे हम भी
प्रेम _मान दे इनको पूजें
जड़ से चेतन बन जाएं हम
भवसागर में तरना सीखें
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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साज यही श्रृंगार यही है
वीणा की झंकार यही है
नृत्य गीत है यही अप्सरा
प्रकृति सृष्टि आधार यही
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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यही है श्रद्धा निद्रा अपनी
शांति यही सुख की है कोष
यही है चन्दा दर्पण कीरति
गुण देखो हे ना कुछ दोष
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश,
भारत।
22/02/2023
4.00_5.00 पूर्वाह्न




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, February 19, 2023

नेता जी एक दर्पण ले लो


नेता जी एक दर्पण ले लो
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राजनीति भी अजब गजब है
काले लाल गुलाबी रंग
निशा अमावस्या ही भाती
वक्री चाल सदा बेढंग
जिस थाली में संग खाते थे
छेद किए कल चल गए
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।


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धर्म ग्रंथ मन्दिर कल पूजे
बने बेहया बिसर गए
राम चरित मानस अमृत घट
राहु केतु अब जहर लगे
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
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कोई आग धधकाए फिरता
घी कुछ उसमे छोड़ रहे
कुछ गरीब बन जाते आहुति
रोटी वे अपनी सेंक रहे
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
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बहती विकास की गंगा देखो
कीचड़ में वे लोट रहे
धूल झोंक सब की आंखों में
लूट खसोट ही मगन रहें
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
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जल गई रस्सी ऐंठन वैसी
दाब लगे हो जाए चूर
उड़ोगे कब तक आसमान में
चारा धरती रखा हुजूर

नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
19.02.2023
उत्तर प्रदेश भारत।




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं