BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, December 9, 2022

फूल बन गई कोमल कोमल


गदरायी हूं बंद कली हूं
मादक गंध बढ़ी ही जाती
आज बंद हूं मै परदे में
बड़ी सुरक्षित घुटन भी कुछ है
कैद कैद जैसे फंदे में
जकड़ी हूं स्वच्छंद नही हूं
आतुर हूं देखूं कुछ दुनिया
आकुल व्याकुल कैसी दुनिया?
______
आज खिली हूं प्रकृति सुहानी
नेह भरी हूं नैनन पानी
सूरज चंदा तारे प्यारे पंछी उड़ते
अदभुत दुनिया अजब नजारे
मलयानिल की पवन छू रही
सिहरन गात है न्यारी प्यारी
खुशकिस्मत हूं खुशी हैं लोग
नैना भंवरे मुझे निहारें
आकुल व्याकुल क्या होगा कल?
______
फूल बन गई कोमल कोमल
पंखुड़ियां रंगीन छुएं दिल
भंवरे अब मंडराते सारे
जन्नत परी जान भी वारें
कांटे भी सिहरन सिसकन भी
हवा विरोधी जब जब चलती
सुख या दुख कुछ समझ न पाऊं
मनहर मन खुश्बू भर जाऊं
आकुल व्याकुल खिली ही जाऊं।
_______
कभी शीश पर जटा कभी मैं
दूल्हा दुल्हन खूब सजाऊं
गुल गुलाब केतकी मनोहर
कामिनी चंपा मधु मालती
रात की रानी रजनी गंधा
नीम चमेली डोलन चम्पा
अगणित नाम से मैं इतराऊं
स्नेह मिले फूलूं इतराऊं
आकुल व्याकुल अनहोनी डर!
______
कभी तोड़ते लेते खुश्बू
मसल कुचल देते हैं फेंक
रंग बिरंगा सारा सपना
काया मिलती मिट्टी धूल
सबरस यौवन मधु मकरंद
झूठी दुनिया कड़वा सच
पंच तत्व में मिलती काया
सच है ये ही जीवन मूल
उगा पेड़ फिर खिली कली
मुस्काते फिर झूम चली।
_____
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत
4.50 _5.14 मध्याह्न














दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, September 13, 2022

भारत मां की बिंदी हिन्दी


भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी हिंदी (ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है)…


भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी
हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है
--------------------------------------------
मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================
१ १  स्वर तो ३ ३ व्यंजन 52 अक्षर अजब व्याकरण
गिरना उठना चलना सब सिखला बैठी अन्तःमन
कभी कंठ से कभी चोंच से होंठ कभी छू आती हिन्दी
सुर की मलिका  सात सुरों गा, दिल अपने बस जाती हिन्दी
उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम ,  दसों दिशा लहराती हिन्दी
आदिकाल से रूप अनेकों धर भाषा संग आती हिन्दी
गाँव-गाँव की जन-जन की अपनी भाषा बस जाती हिन्दी
उन्हें मनाती मित्र बनाती चिट्ठी -चिटठा लिखवाती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================
शासन भी जागा है अब तो रोजगार दिलवाती हिन्दी
पुस्तक और परीक्षा हिन्दी  साक्षात्कार करवाती हिन्दी
अभियन्ता तकनीक लिए मंगल शनि जा आती हिन्दी
शिक्षण संस्था संस्कृति अपनी दिल में पैठ बनाती हिन्दी
आँख-मिचौली सुप्रभात से बाल-ग्वाल से पुष्प सरीखी
न्यारी-प्यारी महक चली ये गली-गली है बड़ी दुलारी
नमो -नमः तो कभी नमस्ते झुके कभी नत-मस्तक होती
सिर ऊँचा कर गर्व भरी परचम अपना लहराती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================
गुड़ से मीठी शहद भरी जिह्वा -जिह्वा बस जाती हिन्दी
मातु-कृपा है श्री भी संग में रचे विश्वकर्मा सी हिन्दी
गुरु-शिष्य हों माताश्री या पिताश्री  से सीखे हिन्दी
क्रीड़ा करती उन्हें पढ़ाती विश्व-गुरु बन जाती हिन्दी
लौहपथगामिनी छुक-छुक छुक-छुक भक-भक अड्डा जाती
मेघ-दूत बन दिल की पाती प्रियतम को पहुंचाती
प्रिय प्रियतम का तार जोड़ मन दिल के गीत गवाती हिन्दी
सखी-सहेली छवि प्यारी ले सब का नेह जुटाती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================
इसकी महिमा न्यारी प्यारी बड़ी सुकोमल दृढ है हिन्दी
पारिजात सी कामधेनु सी मनवांछित दे जाती हिन्दी
छंद काव्य या ग्रन्थ सभी हम आओ रच डालें हिन्दी
प्रेम शान्ति हो कूटनीति या राजनीति की चिट्ठी पाती
हिंदी रस में डुबा लो प्यारे जन-कल्याण ये कर आती
आओ वीरों सभी सपूतों बेटी-बिदुषी ले के हिन्दी
साँसें  हिंदी जान है हिन्दी वतन अरे ! पहचान है हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================

मान है ये सम्मान है येभारत माता की बिन्दी हिन्दी
अलंकार है रस-छंदों की गागर-सागर- मंथन हिन्दी
रमी प्रकृति में हमें झुलाती सावन-मनभावन सी हिन्दी
कजरी-तीज,  पर्व संग  सारे चोला -दामन साथ है हिन्दी
आओ रंग-विरंगे अपने पुष्प सभी हम गूंथ-गूंथ के माला  एक बनायें
माँ भारति का भाल सजा के जोड़ हाथ सब नत-मस्तक हो जाएँ
माँ का लें  आशीष नेक और एक बनें हम हिन्दी से जुड़ जाएँ
आओ भरें उड़ान परिन्दे  सा पुलकित हो परचम हिन्दी लहरायें

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
============================
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
3.15 A.M. -4.49 A.M.
भारत




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, August 15, 2022

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रिय स्नेही स्वजन,

देश के 75वें आज़ादी के अमृत महोत्सव पर आप व आप के परिवार तथा सभी इष्ट मित्रगण  को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई






आजादी की सुखद अनुभूति से प्यारी कोई और अनुभूति नहीं. आप ने सदा ये अनुभव किया होगा कि आप के पास धन सम्पदा सब कुछ हो लेकिन आप को यदि किसी प्रकार की आजादी न हो तो सब बेकार लगता है , लेकिन अपने देश की आजादी की बात तो निराली है कितने त्याग और बलिदान के पश्चात ये आजादी अपने हाथ आई गुलामी की बेड़ियों से देश को मुक्ति मिली थी बोलने का हक मिला । अब अपना सारा ध्यान अपने कर्तव्य कौशल खोज ज्ञान विज्ञान पर केंद्रित करना है, देश के  विकास के लिए हर एक भारत वासी को अपना पूर्ण योगदान देना है विकास की प्रतिस्पर्धा में शामिल हों।

आज भारत अपनी विविध संस्कृति एवं संस्कारों को समेटे हिंदुस्तान विश्व पटल पर नित नए आयाम स्थापित कर रहा है... अपना प्यारा तिरंगा यूं ही शोभायमान होकर आजादी के साथ फहराता रहे... आइए हम सब मिलकर संकल्प लें कि राष्ट्रवादी सोच के साथ राष्ट्रहित में अपना एक एक कदम बढ़ाएंगे... बढ़ते जाएंगे, आओ नेक बनें एक बनें.

 दें सलामी इस तिरंगे को जिससे तेरी शान है


सर हमेशा ऊंचा रखना इसका


जब तक तुझमें जान है।


स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई


जय हिन्द!!! जय भारत। वन्दे मातरम्।🙏🙏
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
कवि लेखक साहित्यकार ब्लागर ।
भारत।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, June 3, 2022

ये आनन्द चीज क्या कैसा

ये आनन्द चीज क्या कैसा क्या इसकी परिभाषा 
भाये इसको कौन कहाँ पर कौन इसे है पाता?

 उलझन बेसब्री में मानव जो सुकून कुछ पाए शान्ति अगर वो पा ले पल भर जी आनंद समाये,

 सूनी कोख मरुस्थल सी माँ पल-पल घुट-घुट जो मरती,
 शिशु का रोना हंसना उर भर क्रीड़ानंद वो करती, 

 रंक कहीं भूखा व्याकुल जो क्षुधा पिपासा जाए, देता जो प्रभु सम वो लागे जी आनंद समाये,

 पैमाना धन का है अद्भुत क्या कुछ किसे बनाये, कहीं अभागन बेटी जन्मे कुछ लक्ष्मी कहलायें,

 प्रीति प्रेम सम्मान अगर जीवन भर बेटी पाए 
हो आनंद संग बेटी के मात -पिता हरषाए ।

गोरा वर गोरी को खोजे काला कोई गोरी,
 गुणी छोड़ कुछ वर्ण रंग धन बड़े यहाँ हत भोगी।

प्रेम कहीं कुछ शीर्ष चढ़े  तो नीच ऊँच ना रंग हो, आनंद जमाना दुश्मन अजब गजब दुनिया का रंग जो!

कहीं नशे में ऐंठ रहे कुछ नशा अगर पा जाएँ ,
धन्य स्वर्ग में उड़ते फिरते जी आनंद समाये !

मै मकरंद मधू आनंद कवि -कविता में पाए लोभी मोही धन में डूबे धन आनंद में मरता जाए!

वहीं ऋषी मुनि दान दिए सब मोक्षानंद में फिरते, मेरा तेरा इनका उनका अलग -अलग अद्भुत आनंद।

जो आनंद मिले तो पूछूं उसकी क्या है पसन्द ?

 सबका है आनंद अलग तो इसका भी कुछ होगा गुण-प्रतिभा ये दया स्नेह या आनंद धन में होगा ।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, May 7, 2022

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी का जन्‍म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्‍यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। 
 

 बचपन में उन्‍हें प्‍यार से 'रबी' कहकर बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्‍होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्‍होंने कहानियां और नाटक भी लिखना प्रारंभ कर दिया था। 
उन्‍होंने एक हजार कविताएं, आठ उपन्‍यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्‍न विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं रवींद्रनाथ टैगोर संगीतप्रेमी थे और उन्‍होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की।
गुरुदेव के लिखे दो गीत आज भारत और बांग्‍लादेश के राष्‍ट्रगान हैं। एक है जन गण मन अधिनायक और दूसरा आमार सोनार बांग्ला। 
गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को साहित्य के लिए नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। 
वे एशिया के प्रथम नोबल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं।
उनका विवाह तेरह साल की मृणालिनी देवी से हुआ था जिनकी मृत्यु 23 नवंबर 1902 को ही हो गई थी।

 गुरुदेव के पांच संताने थी ,रथींद्रनाथ टैगोर, शमींद्रनाथ टैगोर, मधुरिलता देवी, मीरा देवी और रेणुका देवी लेकिन उनमें से 2 की मृत्यु बाल्यावस्था में ही हो गई थी।
रवींद्रनाथ टैगोर के 13 भाई-बहन थे और वह 13 भाई-बहनों में चौथा जीवित पुत्र थे।
1882 में दो पद्य नाटक प्रकाशित किए, एक का नाम “रुद्र चक्र” था और दूसरा एक “संध्या संगीत” कविताओं का संग्रह था।
20 दिसंबर 1915 को, कलकत्ता विश्वविद्यालय ने रवींद्रनाथ टैगोर जी को साहित्य के लिए डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया था।
23 दिसंबर 1921 को, उन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय , पेड़ों के नीचे पढ़ाना, शांति निकेतन की स्थापना की थी।
गुरुदेव का देहावसान 7 अगस्त 1941 को कलकत्ता में हो गया था।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत।

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 29, 2022

नारी का श्रृंगार तो पति है

नारी का श्रृंगार तो पति है
पति पर जान लुटाए

एक एक गुण देख सोचकर
कली फूल सी खिलती जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*****
प्रेम के वशीभूत है नारी
पति परमेश्वर पर वारी
व्रत संकल्प अडिग कष्टों से
सौ सौ जन्म ले शिव को पाए
कर सेवा पूजा श्रद्धा से
फूली नहीं समाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*******
चाहत से मुस्काए गजरा
बल पौरुष से केश सजे
नेह प्रेम पर माथ की बिंदिया
झूम झूम नव गीत रचे
नैनों से पति के बतिया के
हहर हहर लव चूमे जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
****



जहां समर्पण प्यार साथ है
नारी अद्भुत बलशाली
नही कठिन कुछ काज है जग में
सीता सावित्री या अपनी गौरी काली
मंगल सूत्र गले में धारे
मंगल लक्ष्मी करती जाये
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
निज बल अभिमान चूरकर
चरण वंदना में रत रहती
हो अथाह सागर भी घर में
त्याग _ प्रेम दिल लक्ष्मी रहती




विष्णु पालते जग को सारे
लक्ष्मी ममता ही बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******



पति के प्रेम की रची मेंहदी
देख भाग्य मुस्काती मन में
वहीं अंगूठी संकल्पों की
रहे चेताती सात वचन की
दंभ द्वेष पाखण्ड व छल से
दूर खड़ी, अमृत बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
गौरी लक्ष्मी सीता पाए
सरस्वती का साथ निभाए
पुरुष भी क्यों ना देव कहाए??
क्यों ना वो जग पूजा जाए?
प्रकृति शक्ति की पूजा करके
निज गौरव नारी को माने
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत। 29.04.2022
3.33_4.33 पूर्वाह्न

 ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, April 25, 2022

कितनों की जान लेगी ये .....असहनशीलता


कितनों की जान लेगी ये .....असहनशीलता
******
सुबह सवेरे खुशी मन तन के साथ प्रकृति के साथ जुड़कर घूमना टहलना सूर्य नमस्कार योग ध्यान स्नान अर्घ्य पूजा पाठ फिर शुभ कर्मों में लग कर रचते जाना यही तो संस्कार था हमारे भारत का।
  माता पिता परिजन श्रेष्ठ जन वरिष्ठ जन का आदर सम्मान उनकी बातें मानना खुद कितना भी योग्य हों उनको सर माथे बिठाए रखना आदत में शुमार था हमारी । सुनहरी यादें क्या यादें ही रह जायेंगी ?? या आज के किशोर, युवा वर्ग  इन प्यारी आदतों को अपनी धरोहर मान अपनी संस्कृति की इस विरासत को आगे ले चलेंगे।


सुबह की खबरों से शुरू हो पल पल दिन भर आती भयावह खबरें मन मस्तिष्क  को झकझोर सोचने पर विवश कर रही है कि हो क्या रहा है हमारे घर परिवार समाज को? चूक कहां हुई मां बाप से बच्चों को सम्हालने में , क्यों बच्चे इतने उच्छृंखल होते जा रहे है बंधन से बाहर हाथ में मोबाइल आया चार दोस्त बहकाने बहकने वाले मिले और बच्चे हाथ से बाहर।
कुछ निम्न घटनाएं अभी फिर एक दो दिन में दिखीं जिन पर गौर करना सोचना सम्हलना जरूरी हो गया अभिभावक आंखें खोलें, सतर्कता बरतें,  नहीं तो पानी गले से ऊपर सिर तक पहुंच ही जायेगा
 1. बहन का नया मोबाइल चोरी हुआ घर में भाभी से कुछ कहासुनी गाली गलौच और रात में ही भाई ने अपनी ही सगी बहन को गोली मार दी।  ... आदमी के जान की कीमत और निकृष्ट वस्तु से तुलना और असहनशीलता।
2. दोस्त ने दोस्त की गर्ल फ्रेंड से बात की की , बातें बढ़ीं और दोस्त ने ही अपने जिगरी दोस्त की जान ले ली... यही दोस्त अपनी प्राइवेसी को अपनी प्रियतमा की बातें और प्रेमिका खुद को शौक से दोस्तों के बीच में ले जाते हैं और फिर नारी को एक वस्तु समझा जाता है फिर जागता है सम्मान और अपमान बदला।   कारण मूर्खता और असहनशीलता।
3. गृह कलेश और घरेलू झगड़ों के कारण विक्षिप्त मानसिक अवस्था में बाप ने अपने एक 7 वर्षीय पुत्र और 9 वर्षीय पुत्री को कुएं में फेंका। .....शुरू शुरू में तो फालतू के तर्क वितर्क अच्छे लगते हैं अपनी बातें ही जायज लगती हैं दूसरों को न सुनना विवेक से काम न लेना शांति स्थापना के लिए कोई भी सदस्य आगे बढ़कर , न झुककर शांति और समस्या समाधान की कोशिश करना ही कल भयावह परिणाम लाता है और असहनशीलता कारक होती है।
4. रंगदारी वसूलने के लिए ठेलेवाली महिला के पुत्र को पीट डालना और पेट्रोल छिड़क कर आग लगाना....फिर एक जान और वस्तु को एक पलड़े में रख कर तोलना और घर परिवार कानून के भय से बेखबर और असहनशीलता की पराकाष्ठा ...कहां जा रहे हैं हम और हमारा समाज?
5. चाचा का भतीजे को बीच चलती सड़क पर चाकुओं से गोदकर मार डालना और आते जाते लोग दुकान वालों और  कानून को ठेंगा दिखा देना ....जाहिर करता है कि छोटी छोटी बातें ही कल जहर बन जाती हैं और जान लेवा हो जाती हैं असहनशीलता कितनी बढ़ गई है इसको देख सुन ही लोगों का मन कांप जाता है और बदले में क्रोध का उबाल आता है जो कि पुनः दुखदाई और सब कुछ राख कर देने वाला होता है।
     अतः सभी अभिभावकों भाइयों माताओं बहनों, सबको जागना होगा आज  बहुत से विकल्प हैं हमारे पास बहुत से मंच है बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग
 करें , छोटी घटनाओं पर ध्यान दें और आग की दरिया में पांव रखने को उद्धत पीढ़ी को सहेजें सम्हालें।
 बच्चों पर निगाह बचपन से ही रखें फिर बड़े होने पर भी वही प्रेम दुलार शासन अनुशासन बनाए रखें प्रेम दंड और पुरस्कार से उन्हे कतई ये कह कर न छोड़ दें कि बच्चा अब तो खुद बड़ा हो गया है गलत कदम नहीं उठाएगा या किसी के बहकावे में नहीं आएगा , जानबूझकर गलती न भी करे भूल से भी बहक सकता है , आप अभिभावक हैं असहनशीलता न उपजने दें ये आप का दायित्व है, और आप अपने दायित्व से पल्ला कतई नहीं झाड़ सकते। संघर्ष तो आप को भी करना ही होगा , नही तो वही कहावत चरितार्थ होगी 
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय, और कांटे आप को भी चुभना स्वाभाविक होगा।
जय श्री राधे।

*******
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5


ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और नमस्ते लखनऊ  से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇

https://kutumbapp.page.link/vX6UF4fXPpF6DRnu5


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

जो मुस्का दो खिल जाए मन



जो मुस्का दो खिल जाये मन
---------------------------------
खिला खिला सा चेहरा  तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब








बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 22, 2022

धरती मां का ये ही प्यार

धरती मां का ये ही प्यार
********



बिन आधार कहां हम रहते
शून्य में क्या हम सदा विचरते
स्थिर मन मस्तिष्क से रचते
नित नूतन नव जग व्यवहार
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***


बीज छिपाए गर्भ में रखती
लेखा जोखा समय देखकर
अंकुर पादप पेड़ फूल फल
सांसे जीवन सब कुछ देती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***



धरती खुद फंगस से जुड़कर
अपनी बुद्धि का करे प्रयोग
तरु पादप हर जीव पालती
देती विविध तरह संदेश
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***



फोटो सिंथेसिस से जुड़कर
पौधे जीवित देते सांस
पर्वत झरने नदियां जंगल
पक्षी फूल सभी हैं साथ
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
खनिज सम्पदा रत्न व भोजन
कर्म तुम्हारे अवनि वारे
क्षिति जल पावक गगन हवा में
पंच तत्व के सभी सहारे
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
कभी उर्वरक कभी उर्वरा 
कूड़ा कचड़ा पाप नासती
जहर धुआं प्लास्टिक से रूष्ट हो
उलट पलट कर हमें चेताती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
आओ जागें चेतें जुड़कर
इस वसुन्धरा को हम पढ़ लें
इन प्यारे उपहार के बदले
धरा बचाने का हम प्रण लें
धरती मां गुरु का ये प्यार
भुला सके कैसे संसार??
   ----------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, April 21, 2022

पृथ्वी दिवस



मित्रों पृथ्वी दिवस की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं

पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पहली बार, पृथ्वी दिवस सन् 1970 में मनाया गया था। दुनिया भर के लोग अपनी धरती की प्राकृतिक संपत्ति को बचाने के लिए बड़े उत्साह के साथ ये पृथ्वी दिवस  मनाते हैं।

इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी. अब इसे लगभग 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है. पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है. 
पृथ्वी दिवस जीवन सम्पदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है. 
जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व आज और भी  बढ़ गया है।

 विश्व पृथ्वी दिवस का उदेश्य अपनी पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हम सब को प्रेरित करना है।
इस पूरे  ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा एकमात्र ग्रह है जहाँ आज तक जीवन संभव है। इसलिए, पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के लिए, पृथ्वी को बचाना परम आवश्यक है। 
22 अप्रैल का दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिससे कि मानव जाति को पृथ्वी के महत्व के बारे में सब कुछ पता चल सके।
*******
पृथ्वी को आइए बंजर ना बनाएं,  कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक तो हर जगह ना फैलाएं।
*******
पृथ्वी हम सबका घर है, इसकी सुरक्षा हम सब पर है।
*****
आने वाली पीढ़ी है प्यारी, तो पृथ्वी को बचाना है हमारी जिम्मेदारी …
*********
धरती माता करे पुकार, हरा भरा कर दो संसार।
**********
दिल लगाने से अच्छा है कि पौधे लगाएं, वो घाव नहीं देंगे, कम से कम छांव तो देंगे।
********
पानी बचाएं पेड़ लगाएं पर्यावरण संरक्षण में अपना हाथ बंटाऐं।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, April 10, 2022

कन्या पूजन चैत्र नवरात्रि


चैत्र नवरात्रि में मां जगदम्बे की पूजा पाठ के अलावा 






कन्या या कंजिका पूजन और गरीब बच्चों के भोज का महत्व और  आनंद  अद्भुत होता है 











, नौ दिन प्रातः उठना स्नान ध्यान मां की वेदी

और कलश के आगे  कवच अर्गला कीलक आदि , दुर्गा सप्तशती का पाठ आदि ,  का अनूठा आनंद आता है मन को अद्भुत शांति ओज और तेज मिलता है।
कन्या या कंजकों में प्राय: 10 वर्ष तक की बालिकाओं को बिठाकर उनको दुर्गा देवी का स्वरूप मानते हुए पूजन किया जाता है। इस परंपरा को कुमारी पूजन भी कहा जाता है। कुछ परिवारों में एक दो या तीन कन्याओं का पूजन किया जाता है तो कुछ परिवारों में इससे ज्यादा कन्याओं को पूजा जाता है। लेकिन कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
कन्याओं के पैरों को धोकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए, उनके हाथों में कलावा बांधना चाहिए। फिर अक्षत और कुंकुम से उनको तिलक लगाना चाहिए। उसके बाद उन्हें मां के प्रसाद के रूप में बनाए गए चने या पूड़ी और हलवे का भोजन करवाना चाहिए और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणास्वरूप राशि भी देनी चाहिए। फल दें फल खट्टे ना हों।
यथाशक्ति कुछ उपहार भी दें।
नौ कन्याओं के साथ-साथ एक छोटे लड़के को भी बिठाना चाहिए। इस छोटे लड़के को बटुक भैरव या लंगूरा कहा जाता है। लड़के को पूजा में बिठाने का कारण यह है कि मां देवी के प्रत्येक शक्ति पीठ में देवी मां की सेवा के लिए भगवान शिव के भैरव भी मिलते हैं। इसीलिए कंजकों में एक भैरव को भी बिठाकर उसकी भी पूजा करनी चाहिए और भोजन कराना चाहिए।

वहीं कन्या पूजन में और गरीब बच्चों के पूजन और भोज में जितना सुख खुशी उन्हें मिलती  है उससे कहीं अधिक सुकून खुद को मिलता है।

मन्दिर में जाना लोगों के समूह और पंक्ति बद्ध होकर देवी का दर्शन करना आनंद को और बढ़ाता है । 
कुल मिलाकर नवरात्रि असीम सुख शांति देने वाला व्रत और पर्व है।
    मां जगदम्बे सब पर कृपा करें ।
       जय माता दी।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

दौड़ आंचल तेरे जब मैं छुप जाता था


रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली
ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए
नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए
स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी
गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती
तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती
घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती
नाचते मोर कलियां थी पर खोलती
फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग
माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर
लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 
मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 
दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था
क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था
मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी
क्या कभी भूल सकता है संसार भी
गीत तू साज तू मेरा संगीत भी
शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी
नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी
जिसने जीवन दिया पालती पोषती
नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी
 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 1, 2022

भरा अथाह नीर नैनों में


मै रोज तकूं उस पार

हे प्रियतम कहां गए



छोड़ हमारा हाथ

अरे तुम सात समुंदर पार

न जाने कहां गए...

नैन में चलते हैं चलचित्र

छोड़ याराना प्यारे मित्र

न जाने कहां गए......

एकाकी जीवन अब मेरा

सूखी जैसी रेत

भरा अथाह नीर नैनों में

बंजर जैसे खेत

वो हसीन पल सपने सारे

मौन जिऊं गिन दिन में तारे

न जाने कहां गए....

हरियाली सावन बादल सब

मुझे चिढ़ाते जाते रोज

सूरज से नित करूं प्रार्थना

नही कभी वे पाते खोज

रोज उकेरूं लहर मिटा दे

चांद चकोरा के वे किस्से

न जाने कहां गए....

तड़प उठूं मैं मीन सरीखी

यादों का जब खुले पिटारा

डाल हाथ इस सागर तीरे

जब हम फिरते ज्यूं बंजारा

खो गए प्रेम के गीत

बांसुरी पायल की धुन मीत

न जाने कहां गए.....

…...............

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, March 25, 2022

विरहिन


बगिया में कोयल कूके
मन ना भाए
मोरे साजन न आए

लाल लाल फूल खिले
जिया को जलाए
बदरंग होली अगुन लगाए

सूख गई बाली बाली
तपन बढ़ी उर
सजना से ही हरियाली

जेठ दुपहरी सूना आंगन
जेठ न भाए
साजन बस नैना तरसाए

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


 ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, March 23, 2022

गौरैया


गौरैया
.....

.....
सुबह सवेरे नित्य ही
उठ मैं दाना डालूं
चीं चीँ चूं चूं बोल बोल के
गौरैया को पा _ लूं
खंजन मैना तोता आते
अपने सुर में गाते

मेरे फूलों की बगिया में
फुर्र फुर्र धूम मचाते
कनइल गेंदा औ गुलाब है



गुड़हल नौ बजवा से खेलें
कभी कतर ले जाते इनको
थोड़ा दुख भी देते
धीरे धीरे चुपके छुप के
इनके पास खड़ा हो जाऊं
प्यारी मीठी बोली सुन सुन
सच कहता मैं खुश हो जाऊं
फुर्र उड़ें जब ये पंछी तो
मन कहता मैं भी उड़ जाऊं
बिन बंधन स्वच्छंद उड़ूं मैं
गगन नदी सागर छू आऊं
आओ प्यारे तुम भी जागो
सुबह सवेरे इन संग खेलो
तांबे का सूरज नित देखो


प्राण वायु छाती में भर लो
योग ध्यान की मुद्रा में भी
बैठो देखो सुख पाओगे
बूढ़े बच्चे युवा वर्ग सब
ये मौका मत जाना चूक
हाथ से तोता उड़ जायेगा
बुल बुल फुर्र बड़ी फिर भूल
हरियाली आंखों को भाती
दिव्य रोशनी मस्तक जाती
ज्ञान चक्षु पुट खिल जाते हैं
याददाश्त फिर घर कर जाती
कौआ और कबूतर सब अब
हिम्मत कर साथ बैठते हैं
प्रेम से डर भी भाग गया है
सोन चिरैया कहती है।
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
भारत। 23.03.2022


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, March 18, 2022

सरयू तट राम खेलें होली सरयू तट


सरयू तट राम खेलें होरी सरयू तट
सिया राम की है अनुपम जोड़ी, सरयू तट

कनक भवन में रंग है बरसे
मात पिता परिजन हिय हुलसे.. सरयू तट

सजे बजे प्रभु राम हैं निकले
ले हुलियारों की टोली ..सरयू तट
उछल कूद चहुं धूम मची हैं
अंगनाई घर उड़त अवीरा ..सरयू तट
गावत फाग मृदंग मजीरा
खींचत राम लखन सब वीरा ..सरयू तट
लालायित दर्शन हर मन घर
मिलत गले हंसि हंसि रघुवीरा..सरयू तट
बाल सखा सब रंग डारे हैं
महल गली सब भीरा अवध , सरयू तट

गुझिया कचोड़ी भरी सीता रसोई
आवा आवा सखी सीता लई आई, सरयू तट
सिया राम संग होली खेलब
भरि भरि फूल गुलाब बाड़ी, सरयू तट


कारे मुख वाले बंदरा भी राम को भाएं
चला घूमि आई सब हनुमान गढ़ी , सरयू तट

श्री राम के हाथ कनक पिचकारी
सीता दुलहीन के हाथ अबीरा , सरयू तट
लहर उठे हिय हुलस रहे सब
खुशी साजन तो नाचें सजनिया, सरयू तट
बरसहि सुमन गगन हैं ठाढ़े
देवी देवतन रूद्र मंडलियां , सरयू तट
ढोलक थाप से गूंजा अवध है
डूबे नैनन में सब रघुवीरा सरयू तट

सरयू तट राम खेलें होरी सरयू तट
सिया राम की है अनुपम जोड़ी, सरयू तट

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़ अवध
उत्तर प्रदेश , भारत

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, March 17, 2022

डूब रही मैं हर नैनन में , श्याम तो बहुत सतावें


जित देखूं तित राधा दिखती
पाछे दौड़त श्याम
रंग गुलाल में सराबोर है
छवि नैना अभिराम
हम सब को सम्मोहन से 
मन मोहन जरा बचा ले..
हर मीरा से श्याम मिला के
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....



गली गली में शोर बहुत है
ढोल थाप मंजीरा 
थिरकत ग्वालन ग्वाल नचावत
सुध बुध बिसरी मीरा
राधा को सम्मोहन से 
हे! मोहन जरा बचा ले..
मुरली धर धर होंठ पे उंगली 
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....


छनन मनन पग घुंघरू पायल
फाग पे मीठी गारी
बुढ़ऊ सब के जोश है जागल
खुश ज्यों देवर भाभी
विरहिन से है जेठ तड़पता
परदेशी बादल बन छा जा..
जेठ दुपहरी ले ले छाया
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....



भंग का रंग चढ़ा री सिर पर
श्याम नजर सब आवें
डूब रही मैं हर नैनन में
श्याम तो बहुत सतावें
राधा को सम्मोहन से 
कोई मोहन जरा बचा ले..
बदले में कुछ ठंडाई ले
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....
  

कुंजन गलियां बाग में भौंरे
कली खिली बस तड़पें
अमराई बौरायी चहुं दिसि
मादक गंध ले बिहरें
मोहन को सम्मोहन से 
कोई गोरी जरा बचा ले..
बदले में कुछ रस गुझिया ले
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....
  

लाल  हरी तो पीली नीली 
रंग रंगीली अजब सजीली
कान्हा भटकें राधा अपनी
राधा नैनन हर में दिखती

मोहन को सम्मोहन से 
कोई गोरी जरा बचा ले..
बदले में कुछ रस गुझिया ले
अंग से अंग खिला दे
होली शरा ररा .....
  
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़ 
उत्तर प्रदेश
17.03.2022



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, March 16, 2022

मादक सी गंध है होली के रंग लिए

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
---------------------



आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के
बौराया मेरा निश्च्छल मन
फूटा अंकुर कोंपल फूटी
टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन
कोयल कूकी बुलबुल झूली
सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन
छुयी मुई सी नशा नैन का 
यादों वादों का झूला वो फूला मन
हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी
सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन
लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को
पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन
फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन
कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर
मादक सी गंध है होली के रंग लिए
कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन
पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से
गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
-------------------------
http://surendrashuklabhramar.blogspot.com/2021/03/blog-post.html?m=1
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, March 1, 2022

हर हर महादेव, महाशिव रात्रि


*भगवान भोलेनाथ की जय हो*
हर हर महादेव, हर हर महादेव, बम बम भोले।

*भगवान शंकर से हमें सीखना चाहिए*
कि जीवन का सार क्या है ?
*भगवान शंकर ही मात्र एक देवता हैं जो परिवार के साथ पूजे जाते हैं*
*भगवान शंकर के परिवार को देखकर हमे सीखना चाहिए कि घर समाज  में विष भी होता है और अमृत भी, क्रोध भी होता है और क्षमा भी , प्रेम भी होता है और स्वाभिमान भी होता है, अनुशासन भी होता है, और परिवार से ही संस्कार मिलता है उन सब के बीच सन्तुलन बनाने से ही परिवार चलता है*
*भगवान शंकर स्वर्ण आभूषण नहीं धारण करते, मृगछाला धारण कर उनकी अर्धनग्न अवस्था ये दर्शाती है कि परिवार के मुखिया को वस्र खान पान का सुख त्याग करने के लिए तैयार रहना  चाहिए*
परिवार त्याग, समर्पण, सदभाव, एक दूसरे के लिए त्याग, से चलता है 
*लालच, स्वार्थ, जरूरत से ज्यादा स्वाभिमान परिवार में कलह के कारण बनते हैं* 
भगवान शंकर हम सब का भला करें , भगवान शंकर की तरह हमारा और आप सब का परिवार भी नाम व यश पाए यही प्रभु भोले बाबा से कामना करता हूँ
*हर हर महादेव*
*महाशिवरात्रि की आप सपरिवार को हम सपरिवार की तरफ से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई*
महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से हर तरह का डर और तनाव खत्म हो जाता है। शिवपुराण में उल्लेख किए गए इस मंत्र के जप से आदि शंकराचार्य को भी जीवन की प्राप्ति हुई थी। ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।
👏👏👏👏👏👏








दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, February 25, 2022

अब वसंत ने दी है दस्तक

अब वसंत ने दी है दस्तक















पात लुटाये पौधे सारे, 
 हर- हर- हर- हर 
सारे आज हुए नतमस्तक
 ऋतु बदली तो 
 मन भी बदला 
 पौधे फूल सा झूमे 
 कल की कटुता
 आज भुलाये 
 हर- हर को बस चूमे 
 कल देखो होगी हरियाली
 नयी कोंपलें 
 'बौर' आम 
 कोयल की कूक 
 बारिश रिमझिम
 पीले मेढक 
 सरसों के वे पीले फूल 
कहीं नाचता मोर दिखेगा
 भरे हुए पानी के खेत
 रंग विरंगे फूल खिलेंगे 
 खुश्बू फैलेगी चहुँ ओर
 बाग़ बगीचे कूचे उपवन
 खुश्बू इतनी प्यारी होगी
 खिंचे चले आएंगे हर मन !
 हर हर महादेव का नारा
 शिव- शिव शिव हो का जय घोष
 आओ मन को 'पूत' बना लें
 प्रेम से पालें 
 अनुचित टालें
 प्यार से पालें 
 तभी तपस्या अपनी पूरी
 दूरी अन्तः की मिट जाए
 मन से मन गर मिल जाये
 फिर क्या .....
 मन " वसंत " 
दुनिया वासन्ती 
बन ही जाए !
 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5 उत्तर प्रदेश , भारत 
 दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, January 1, 2022

शुभ सब होगा नए वर्ष में

घना कुहासा जो घेरे था आज रोशनी थी कुछ आई नन्ही नन्ही मोती माला जैसे सूरज को पहनाई इंद्र धनुष सी छटा बिखेरे आसमान था रचा स्वयंवर कभी सेहरे दूल्हा दिखता दुल्हन चूनर ओढ़े अंबर मिले गले क्रीड़ा कुछ करते खेल खेल हर रंग भरे प्रेमामृत घट छलक रहे थे नेह अनूठे पोस रहे निशा सजाए सेज पुष्प से स्वागत को तैयार दिखी कुछ ज्यों नूतन होने वाला होंठों हर मुस्कान खिली स्वर्ण रश्मियां कल छू लेंगी नैनों के रस्ते उतरे हर दिल में झंकार उठेगी बो देंगी कुछ बीज प्रेम के सींचें पोषेंगे हम वर्षों काटेंगे हम फसल प्रेम की फूल खिलेंगे चहकें चिड़ियां खुशियां नाचेंगी अंगनाई उड़ेगी फिर अब सोन चिरैया कैद नहीं पिंजड़ों में होगी नदी दूध की, गंगा मैया स्नेह सिक्त घट घट में होंगी। शुभ सब होगा नए वर्ष में सपने सबके होंगे पूरे हर हाथों को काम मिलेंगे भाग्य भी बदलें हस्त लकीरें। स्वागतम 2022 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5 ब्लागर, कवि एवं लेखक प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश भारत दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं