BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Sunday, April 11, 2021

झांक नैनों पढ़ रही हूं

छुआ जब से मुझको तूने
खिल गई हूं
कली से मै फूल बनकर
भ्रमर आते ढेर सारे
छुप रही हूं
ना सताएं शूल बनकर
गुनगुनाते छेड़ते कितने तराने
खुश बहुत हूं
तार की झनकार बनकर
मधु पराग खुश्बू ले उड़ते
फिर हूं रचती अन्नपूर्णा -
स्नेह घट मै कुंभ बनकर
नेह निमंत्रण दे जाते कुछ
झांक नैनों पढ़ रही हूं
संग जाती हूं कभी मुस्कान बनकर
वेदनाएं ले उदासी घूमते कुछ
धड़कनें दिल की समझती
अश्रु धारा मै सहेजूं सीप बनकर
नत हुए कुछ पाप ले मिलते शरण तो
पूत करती मै पवित्री
बह रही जग गंगा यमुना धार बनकर
स्नेह पूजा मान देते ढेर सारे
प्रकृति अपनी देवी मां हूं
बलि हुई हूं
सुख प्रदाता हवन बनकर

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, 
12.04.2021


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५