दो फाड़ हो चुके
....................
चूहों की चौपाल में
घमासान जारी है
दो फाड़ हो चुके
फिर भी ये टुकड़ा
अभी बहुत भारी है....
तीन चूहे
एक रोटी
सामर्थ्य नहीं
नोच दो फाड़ दो
उछल कूद जारी है...
उधेड़बुन, कशमकश
एक कोने से दूजे कोने
दौड़ भाग केंद्र तक जारी है...
मन नहीं है बांटने का
अनमना मन
लिहाज शर्म हया
अब भी सब पे भारी है....
खिसियाहट
दांत गड़ाने
दांत निपोरने
नाम बदलने से
अच्छा है बांट दो
सुगबुगाहट जारी है....
तीन टुकड़े भले होंगे
दर्द भूल जाएगा
हलाहल पच जाएगा
तीनों का पेट तो भर जाएगा
बहस अभी जारी है...
.....….............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-06-2021) को 'भाव पाखी'(चर्चा अंक- 4101) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
अनिता सुधीर
बहुत बहुत आभार आप का , रचना के मर्म को आप ने समझा और भाव पाखी में इसे आप ने स्थान दिया खुशी हुई।
Deleteउधेड़बुन और कश्मकश, वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार और स्वागत है आप का आदरणीया जय श्री राधे।
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आप का मित्र रचना पर आप का समर्थन मिला खुशी हुई, राधे राधे
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आप का आदरणीया रचना पर आप का समर्थन मिला खुशी हुई। राधे राधे।
Deleteगज़ब तंज !
ReplyDeleteशानदार सृजन।
अपनी रोटी सेंकने का खेल जारी है।
यथार्थ भाव।
हार्दिक आभार आप का मित्र रचना के मर्म को आप ने बखूबी समझा सराहा, रचना पर आप का समर्थन मिला खुशी हुई। राधे राधे।
Deleteवाह!गज़ब कहा।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार आप का आदरणीया रचना पर आप का समर्थन मिला खुशी हुई। राधे राधे।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आप का आदरणीया रचना पर आप का समर्थन मिला खुशी हुई। राधे राधे।
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