BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, June 12, 2021

बाल श्रम निषेध















मित्रों जय श्री राधे, बाल श्रम निषेध के बारे में लोगों को सतत जागरूक करना हम सब का दायित्व है माता पिता जागरूक होंगे तो निश्चित ही वे साथ देंगे और इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी हम सभी जो साहित्य से जुड़े , पत्रकारिता से जुड़े, न्याय के कार्यों से जुड़े हैं उनका तो विशेष दायित्व बनता है ।

बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में वर्णित है।
हमारी इस प्यारी दुनिया मे बसे हर व्यक्ति का बचपन जीवन का सबसे खुशनुमा पल होता है । क्योंकि बचपन ही एक ऐसा अमूल्य समय होता है जिसमे हम तीव्र गति से बिना ईर्ष्या, घमंड के हर कुछ सीखते है जो देखते हैं उसका अनुकरण करते हैं जिस पर हमारा भविष्य निर्मित होता है ।
 सभी बच्चों का पूरा अधिकार है कि इन के माता-पिता उनकी सही परवरिश करें, उन्हे अच्छी शिक्षा दिलाएं, विद्यालय मे भेजें और दोस्तों के साथ खेलने फलने फूलने का पूरा समय दे । लेकिन बाल मजदूरी से इन फूल जैसे प्यारे बच्चों का पूरा जीवन बरबाद हो जाता है ।

हमारे देश मे 14 साल की कम उम्र वाले बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है । लेकिन प्रायः देखा जाता है कि माता-पिता की पीड़ा, गरीबी, भुखमरी और लाचारी से प्यारे बच्चे बाल मजदूरी के खतरनाक दलदल में धंसते फंसते चले जाते हैं ।
साधारण भाषा मे अगर समझा जाय तो किसी भी क्षेत्र में बच्चों से काम दबावपूर्णं करवाया जाए तो उसे बाल मजदूरी या बालश्रम कहते हैं ।

आज बाल श्रम पर इतने कड़े नियम कानून के होते हुए भी जिधर देखिए बाल श्रमिक का मकड़ जाल फैला पड़ा है ईंट भट्ठों में, होटलों में, छोटे कारखानों में , कबाड़ की दुकानों में बहुतायत ये दिखते हैं , जिसे हमारा श्रमिक विभाग अनदेखी कर नजर बंद किए घूमता रहता है। 
जरूरत है ऐसे माता पिता को अधिक जागरूक किया जाए उनके साथ श्रम विभाग कड़ाई भी करे। 
 क्या श्रम विभाग के आला अधिकारी जो अपने कार्य क्षेत्र में इन पर रोक नहीं लगा पाते , देखते घूम रहे नजरअंदाज किए, तो उनके ऊपर कार्यवाही न सुनिश्चित किया जाए??

भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जी जिन्होंने बाल श्रम को रोकने के लिए अपना पूर्ण सहयोग दिया तथा इसके लिए उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। ये मध्य प्रदेश में पैदा हुए और अपनी शिक्षक की नौकरी त्यागकर ‘बालश्रम’ की समाप्ति के कार्य में लग गये। 1980 में इन्होंने ‘बचपन बचाओ’ नामक एक आन्दोलन चलाया। 144 देशों में इन्होंने लगभग 83,000 बच्चों को बालश्रम से उबारा और उनकी शिक्षा आदि का भी विभिन्न सरकारों के सहयोग से प्रबन्ध कराया था।
कुल मिलाकर हमे बाल श्रम के अभिशाप से कैसे भी उबरना होगा कल यही बच्चे हमारे देश के अध्यापक, वैज्ञानिक, साहित्यकार आदि , कर्णधार बनेंगे और देश की प्रगति में सहायक होंगे।
आइए मित्रों और जागरूक बनें और बनाएं, जय श्री राधे।
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

No comments:

Post a Comment

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५