BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 14, 2023

जब तक दम है आओ खेलें

जी, कितने आए कितने चले गए , मोह माया है सब , 
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ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
बूढ़ा पेड़ नए तरुवर से
उलझ कहां टिकता दमदार,
पानी खाद तो मिलना दूभर
बने खोखला गिरती डाल,
कुछ है हरा फूल फल गिरते
आंधी कभी, कभी वज्रपात,
पेड़ जीव या मानव तन हो,
मिलती जुलती एक कहानी,
आज खंडहर रोता कहता
एक थे राजा एक थी रानी,
जब तक दम है आओ खेलें
बोलें डोलें हंस मुस्का लें,
वे अबोध हैं क्रोध छोड़ दो
माफ करो कुछ बनेगी बात,
आग लगी है हवन सुगंधित
चाहे जितना कर पवित्र ले,

घी डालो या चंदन खुशबू,
पानी डालो या फिर पीटो, 
एक दिन हो जाना है राख, 
यही तो है सब की औकात.........

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, March 9, 2023

आज राधा ने की बरजोरी


मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी ..
 

बड़ा अजूबा लगता प्यारा -क्यों हारा -जसुदा मैया का दुलारा
सजा हुआ- हम तक ना पंहुचा -फंसा जाल में- क्यों ना हमें पुकारा
दही बड़ा पकवान मिठाई सूख  रहा ,गायों ने ना दूध दिया
अभी रहो चुप -पिचकारी ना दबे जरा -क्या देखे आँखें मूँद लिया
लचकन कैसी -२ कमर की देखो -हाथ में कैसी चूड़ी
पकड़ कलाई ली राधा की -देखो सीना जोरी
चलो गुइयाँ देखन को होरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

फाग खेलता लगे कबड्डी-रंगा  जमीं को सारा
कभी लिपटता आँखें मलता -राधा के संग –अरे !! फिसलता जाता
श्याम रंग के बदरा विच -ज्यों -दामिनी दमके- दांत चमकता सारा
कमल खिला ज्यों –इन्द्रधनुष- मुख मंडल शोभे- चमके आँख का तारा
 देख करे क्या 2 -आज पकड़ेंगे -हम भी चोरी  
नशा चढ़ा क्या -२- बैठे ताके -भौंरा जैसे गुपचुप झांके
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी



शर्म हया क्या बेंचा उसने -खुले अंग हैं फटे वस्त्र  - या समझ न पाए
मदमाती यौवन से जैसे कली फूटती देखे दुनिया संभल न पाए
मैया गैया गाँव भुलाये- इत उत चितए- कान्हा -को भी याद न आये
लट्ठ उठाये भी राधा के- गले वो लगता -ढोल मजीरा हाँथो से क्या ताल बजाये
देख मजा -२ लेंगे हम सखियाँ -खेलेंगे न होली -
छुप जा देखो चली आ रही ग्वाल बाल की टोली
संभलती  ना -अब भी ये छोरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

धड़कन मन की बढती जाती मन व्याकुल है -रंग हाँथ से गिर न जाये
खेल देख अब -चढ़े नशा कुछ -जोश चढ़े अब छुपा कहाँ न मिलता हाय 
चलो रगड़ें अब रंग गुलाल -दिलाएं याद -भले हो ‘कुछ’ को आज मलाल 
चूम लें -लिख दें -मन की हाल -गुलाबी होंठों से दें छाप 
रात भर खेलेंगे-२ हम फाग -खोलकर दिल नाचेंगे आज
भुला सकेगा ना कान्हा रे -मथुरा की ये होली
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी,,

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
अपने ब्लॉग भ्रमर का दर्द और दर्पण से



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, March 7, 2023

नाचे मोरी नथुनिया

चली फागुन की ठंडी बयार हो
मनवा झूमे सजनवा
मोरे जियरा में उठेला हिलोर हो
नाचे मोरी नथुनिया
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अमवा बौराया मनवा भी फाग हो
होंठ कांपे हैं गाए कोयलिया
लाल गुलाबी धानी चूनर बेकार हो
बिन सजना केवल अमावस अंधेरिया
चली फागुन की....
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ढोल मजीरा मृदंग बजे है
आवा आवा सजन अंगनाई
मोरे जियरा में उठेला तूफान हो
कान तरसें सुनइ शहनाई
चली फागुन की...
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हर आहट दौडूं घर बाहर
सुर्ख चेहरा पे आंखे पथराई
लाल गाल टेसू से टपके गुलाल
सिहरे कांपे बदन बदरी जैसे है छाई
चली फागुन की...
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दहके होली अगन जरे मोरा बदन
चूड़ी कंगना ना तनिको भाए
रंग बरसा है तर हुआ सारा बदन
आए आए सजन घर आए।
चली फागुन की .. 
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चमक गई बिंदिया कुंडल भी चूमे
चमक नैनों में आई सजनिया
नथिया औ बेसर नाचे रे झूमे
सजन गदगद मिली दुल्हनिया
चली फागुन की ठंडी....



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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ भारत।
7.3.2023
फोटो साभार गूगल नेट से 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, February 25, 2023

कौन हो तुम प्रेयसी

कौन हो तुम प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं

घुंघराली जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया
मेनका-कामिनी,
गज गामिनी
मयूरी सावन की घटा
सुनहरी छटा
इंद्रधनुष , कंचन काया
चित चोर ?
अप्सरा , बदली, बिजली
गर्जना, वर्जना
या कुछ और ?
निशा का गहन अन्धकार
या स्वर्णिम भोर ?
कमल के पत्तों पर ओस
आंसू, ख्वाबों की परी सी ..
छूने जाऊं तो
सब बिखर जाता है
मृग तृष्णा सा !
वेदना विरह भीगी पलकें
चातक की चन्दा
ज्वार- भाटा
स्वाति नक्षत्र
मुंह खोले सीपी सा
मोती की आस
तन्हाई पास
उलझ जाता हूँ -भंवर में
भवसागर में
पतवार पाने को !
जिंदगी की प्यास
मजबूर किये रहती है
जीने को ...
पीने को ..हलाहल
मृग -मरीचिका सा
भरमाया फिरता हूँ
दिन में तारे नजर आते हैं
बदहवाश अधखुली आँखें
बंद जुबान -निढाल -
सो जाता हूँ -खो जाता हूँ
दादी की परी कथाओं में
गुल-गुलशन-बहार में
खिलती कलियाँ लहराते फूल
दिल मोह लेते हैं
उस 'फूल' में
मेरा मन रम जाता है
छूने बढ़ता हूँ
और सपना टूट जाता है
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, February 21, 2023

नारी तो है कुल की देवी

नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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जप से श्रम से तप से गढ़ती
फिर एक जीवन नई कहानी
रक्त से अपने सींच भी रही
प्रेम प्यार भी आंखों पानी
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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पग पग कष्ट सहे कल्याणी
धूप छांव से हमे बचाती
भरे धनात्मक ऊर्जा हम में
जादू टोना सदा बचाती
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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बिटिया लक्ष्मी घर आंगन की
खुशी हंसी खुश्बू कविता है
घर आंगन संसार की अपनी
प्राण प्रतिष्ठा लाज दया है
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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इस कुल उस कुल की दीपक है
अंधियारे से सदा बचाती
ज्ञान की देवी प्रेम की मूरत
प्रेम प्यार सब यही सिखाती
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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गंगा सीता लक्ष्मी दुर्गा
पूत पावनी रूप अनेक
श्रद्धा पूजा काम कामिनी
भक्ति शक्ति सब कुछ ये

नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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आओ सीखें इनसे हम भी
प्रेम _मान दे इनको पूजें
जड़ से चेतन बन जाएं हम
भवसागर में तरना सीखें
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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साज यही श्रृंगार यही है
वीणा की झंकार यही है
नृत्य गीत है यही अप्सरा
प्रकृति सृष्टि आधार यही
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
______



यही है श्रद्धा निद्रा अपनी
शांति यही सुख की है कोष
यही है चन्दा दर्पण कीरति
गुण देखो हे ना कुछ दोष
नारी नारी नही समझ मन
नारी तो है कुल की देवी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश,
भारत।
22/02/2023
4.00_5.00 पूर्वाह्न




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, February 19, 2023

नेता जी एक दर्पण ले लो


नेता जी एक दर्पण ले लो
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राजनीति भी अजब गजब है
काले लाल गुलाबी रंग
निशा अमावस्या ही भाती
वक्री चाल सदा बेढंग
जिस थाली में संग खाते थे
छेद किए कल चल गए
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।


____
धर्म ग्रंथ मन्दिर कल पूजे
बने बेहया बिसर गए
राम चरित मानस अमृत घट
राहु केतु अब जहर लगे
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
____
कोई आग धधकाए फिरता
घी कुछ उसमे छोड़ रहे
कुछ गरीब बन जाते आहुति
रोटी वे अपनी सेंक रहे
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
_____
बहती विकास की गंगा देखो
कीचड़ में वे लोट रहे
धूल झोंक सब की आंखों में
लूट खसोट ही मगन रहें
नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
_____
जल गई रस्सी ऐंठन वैसी
दाब लगे हो जाए चूर
उड़ोगे कब तक आसमान में
चारा धरती रखा हुजूर

नेता जी एक दर्पण ले लो
बीच बीच में देखो रूप।
_____
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
19.02.2023
उत्तर प्रदेश भारत।




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, January 20, 2023

मौनी अमावस्या


देर अचानक रात्रि दौड़ के
बदरा घिर घिर आए 
शांत स्निग्ध गंगा पावन जल
अमृत घट बूंदे बरसाए।





गंगा की लहरें उठ धायीं
नमन करे उठ जागे लोग
हलचल मेला में थी भारी
मौन ध्यान रत सारे लोग

सजी धजी गंगा की घाटी
देश विदेश से जुटे हैं लोग
भर आस्था विश्वास से भारी
पुण्य कमाने आए लोग

मौन हुए मौनी अमावस्या
डुबकी लोग लगाएं
जन्म जन्म के भव बन्धन से
तर के प्रभु को पाएं।

स्नान दान कर हुए प्रफुल्लित
खुशियां जग फैलाएं
खुशी हुए परिवेश में 
जाके, धारा विकास की लाएं।

रोग दोष ईर्ष्या विद्वेष से
मुक्त , भजन सब गाते
गंगा सा पावन मन लेकर
भारत का परचम लहराते।

निर्मल पावन लहर सुनहरी
सूर्य देव जब निकलें
जय जय जय जय के
नारों से गूंजे प्रयाग की नगरी।

मथुरा काशी और अयोध्या
नगरी नगरी जन मन आए
कर शाही स्नान मोक्ष के
द्वार पे जाके विष्णु पाए।


धर्म धुरंधर योगी जोगी
संत साधु मुनि ज्ञानी
निज आंखो में भर लो आओ
छवि भारत की अमिट कहानी।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत।
21.01.2023



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, January 14, 2023

मकर संक्रान्ति


  मकर संक्रांति की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी मित्र मंडली को, जय जय श्री राधे।
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समरसता जन पर्व मकर संक्रान्ति
भरती जन जन में अनुपम कान्ति
उल्लास माघ गंगा पावन जल
प्रमुदित दौड़े ले सब दल बल।
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बाल वृद्ध नारी फूले मन
फूली सरसों पीली चूनर रंग
धरती नभ बादल ओस सुहावन
घना कुहासा अति मन भावन।
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लादे गठरी चल रहे कोस भर
पैदल भीड़ गरीब किसान 
रोगी जोगी राजा महान
खिचड़ी में लेने पुण्य स्नान।
***
रंग बिरंगे सतरंगी परिधान
नथिया झुलनी टीका लटकन
कंगना चूड़ी मुंदरी झांझन
बिछिया पायल करधनी पहन
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चमक कैमरे की हर ओर
कैद करें छवि वो चितचोर
भजन कीर्तन योगी जोगी
पुण्य को दृढ़ आज हत भोगी।
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संगम है भारत का संगम
हर दिशा क्षेत्र के सब जनगण
जुट गए भरेंगे पुण्यार्जन
स्नान दान तिल गुड़ मिठास।
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चूड़ा दही औ लेंडुआ तिलकुट
गचक पापड़ी खाते मिल 
जुट
मूंगफली मेवा मिष्ठान
अद्भुत छवि भारत महान।
****
कहीं उड़ी खूब तो कटी कहीं हैं
धूल धूसरित दबी पड़ी है
छवि धूमिल कुछ संवर चली हैं
जीवन पतंग की डोर कहीं है।
****
घर घर तिल की बनी मिठाई
सोंधी गुड़ की खुश्बू आई
कहीं लोहड़ी पोंगल खिचड़ी
जोड़ दिलों को जाती खिचड़ी ।
******
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
उत्तर प्रदेश
भारत।




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं