आओ करें प्रकाशित जग को,
दीप पुंज ले बढ़ते जाएं
शांत पवन या भले आंधियां
टूटे ना लौ जल जल जाए
कितना भी शातिर वो तम हो
लौ से तेरी बच ना पाए
अंधियारे को चीर नित्य ज्यों
सूरज सब को राह दिखाए
कितनी रातें काल सरीखी ग्रसें उसे
और सुनहरी किरण लिए जगमग हो आए
हों कोयले की खान चमकते हीरे जैसा
बड़े पारखी दौड़े आएं चुन ले जाएं
इस अथाह सागर में गुम ना खोएं यारों
मोती सा खुद चमकें जग को भी दमकाएं
कितने राहु केतु आए कारे बादल से छाए
तेज पुंज में कहां ठहर वे पल भर पाए
आओ हम भी जुगनू जैसे रहें चमकते
चीरें तम को सब मिल उजियारा फैलाएं
कहें भ्रमर कविराय आज तुम दीपक जैसे
आंखों के तारे बन छाओ भानु सरीखे
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
देवरिया उ. प्र.
3.30-4.46 पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं