हर- हर- हर- हर
सारे आज हुए नतमस्तक
ऋतु बदली तो
मन भी बदला
पौधे फूल सा झूमे
कल की कटुता
आज भुलाये
हर- हर को बस चूमे
कल देखो होगी हरियाली
नयी कोंपलें
'बौर' आम
कोयल की कूक
बारिश रिमझिम
पीले मेढक
सरसों के वे
पीले फूल
कहीं नाचता
मोर दिखेगा
भरे हुए पानी के खेत
रंग विरंगे फूल खिलेंगे
खुश्बू फैलेगी चहुँ ओर
बाग़ बगीचे कूचे उपवन
खुश्बू इतनी प्यारी होगी
खिंचे चले आएंगे हर मन !
हर हर महादेव का नारा
शिव- शिव शिव हो का जय घोष
आओ मन को
'पूत' बना लें
प्रेम से पालें
अनुचित टालें
प्यार से पालें
तभी तपस्या अपनी पूरी
दूरी अन्तः की मिट जाए
मन से मन गर मिल जाये
फिर क्या .....
मन " वसंत "
दुनिया वासन्ती
बन ही जाए !
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
उत्तर प्रदेश , भारत
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं