BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 29, 2022

नारी का श्रृंगार तो पति है

नारी का श्रृंगार तो पति है
पति पर जान लुटाए

एक एक गुण देख सोचकर
कली फूल सी खिलती जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*****
प्रेम के वशीभूत है नारी
पति परमेश्वर पर वारी
व्रत संकल्प अडिग कष्टों से
सौ सौ जन्म ले शिव को पाए
कर सेवा पूजा श्रद्धा से
फूली नहीं समाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*******
चाहत से मुस्काए गजरा
बल पौरुष से केश सजे
नेह प्रेम पर माथ की बिंदिया
झूम झूम नव गीत रचे
नैनों से पति के बतिया के
हहर हहर लव चूमे जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
****



जहां समर्पण प्यार साथ है
नारी अद्भुत बलशाली
नही कठिन कुछ काज है जग में
सीता सावित्री या अपनी गौरी काली
मंगल सूत्र गले में धारे
मंगल लक्ष्मी करती जाये
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
निज बल अभिमान चूरकर
चरण वंदना में रत रहती
हो अथाह सागर भी घर में
त्याग _ प्रेम दिल लक्ष्मी रहती




विष्णु पालते जग को सारे
लक्ष्मी ममता ही बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******



पति के प्रेम की रची मेंहदी
देख भाग्य मुस्काती मन में
वहीं अंगूठी संकल्पों की
रहे चेताती सात वचन की
दंभ द्वेष पाखण्ड व छल से
दूर खड़ी, अमृत बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
गौरी लक्ष्मी सीता पाए
सरस्वती का साथ निभाए
पुरुष भी क्यों ना देव कहाए??
क्यों ना वो जग पूजा जाए?
प्रकृति शक्ति की पूजा करके
निज गौरव नारी को माने
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत। 29.04.2022
3.33_4.33 पूर्वाह्न

 ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, April 25, 2022

कितनों की जान लेगी ये .....असहनशीलता


कितनों की जान लेगी ये .....असहनशीलता
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सुबह सवेरे खुशी मन तन के साथ प्रकृति के साथ जुड़कर घूमना टहलना सूर्य नमस्कार योग ध्यान स्नान अर्घ्य पूजा पाठ फिर शुभ कर्मों में लग कर रचते जाना यही तो संस्कार था हमारे भारत का।
  माता पिता परिजन श्रेष्ठ जन वरिष्ठ जन का आदर सम्मान उनकी बातें मानना खुद कितना भी योग्य हों उनको सर माथे बिठाए रखना आदत में शुमार था हमारी । सुनहरी यादें क्या यादें ही रह जायेंगी ?? या आज के किशोर, युवा वर्ग  इन प्यारी आदतों को अपनी धरोहर मान अपनी संस्कृति की इस विरासत को आगे ले चलेंगे।


सुबह की खबरों से शुरू हो पल पल दिन भर आती भयावह खबरें मन मस्तिष्क  को झकझोर सोचने पर विवश कर रही है कि हो क्या रहा है हमारे घर परिवार समाज को? चूक कहां हुई मां बाप से बच्चों को सम्हालने में , क्यों बच्चे इतने उच्छृंखल होते जा रहे है बंधन से बाहर हाथ में मोबाइल आया चार दोस्त बहकाने बहकने वाले मिले और बच्चे हाथ से बाहर।
कुछ निम्न घटनाएं अभी फिर एक दो दिन में दिखीं जिन पर गौर करना सोचना सम्हलना जरूरी हो गया अभिभावक आंखें खोलें, सतर्कता बरतें,  नहीं तो पानी गले से ऊपर सिर तक पहुंच ही जायेगा
 1. बहन का नया मोबाइल चोरी हुआ घर में भाभी से कुछ कहासुनी गाली गलौच और रात में ही भाई ने अपनी ही सगी बहन को गोली मार दी।  ... आदमी के जान की कीमत और निकृष्ट वस्तु से तुलना और असहनशीलता।
2. दोस्त ने दोस्त की गर्ल फ्रेंड से बात की की , बातें बढ़ीं और दोस्त ने ही अपने जिगरी दोस्त की जान ले ली... यही दोस्त अपनी प्राइवेसी को अपनी प्रियतमा की बातें और प्रेमिका खुद को शौक से दोस्तों के बीच में ले जाते हैं और फिर नारी को एक वस्तु समझा जाता है फिर जागता है सम्मान और अपमान बदला।   कारण मूर्खता और असहनशीलता।
3. गृह कलेश और घरेलू झगड़ों के कारण विक्षिप्त मानसिक अवस्था में बाप ने अपने एक 7 वर्षीय पुत्र और 9 वर्षीय पुत्री को कुएं में फेंका। .....शुरू शुरू में तो फालतू के तर्क वितर्क अच्छे लगते हैं अपनी बातें ही जायज लगती हैं दूसरों को न सुनना विवेक से काम न लेना शांति स्थापना के लिए कोई भी सदस्य आगे बढ़कर , न झुककर शांति और समस्या समाधान की कोशिश करना ही कल भयावह परिणाम लाता है और असहनशीलता कारक होती है।
4. रंगदारी वसूलने के लिए ठेलेवाली महिला के पुत्र को पीट डालना और पेट्रोल छिड़क कर आग लगाना....फिर एक जान और वस्तु को एक पलड़े में रख कर तोलना और घर परिवार कानून के भय से बेखबर और असहनशीलता की पराकाष्ठा ...कहां जा रहे हैं हम और हमारा समाज?
5. चाचा का भतीजे को बीच चलती सड़क पर चाकुओं से गोदकर मार डालना और आते जाते लोग दुकान वालों और  कानून को ठेंगा दिखा देना ....जाहिर करता है कि छोटी छोटी बातें ही कल जहर बन जाती हैं और जान लेवा हो जाती हैं असहनशीलता कितनी बढ़ गई है इसको देख सुन ही लोगों का मन कांप जाता है और बदले में क्रोध का उबाल आता है जो कि पुनः दुखदाई और सब कुछ राख कर देने वाला होता है।
     अतः सभी अभिभावकों भाइयों माताओं बहनों, सबको जागना होगा आज  बहुत से विकल्प हैं हमारे पास बहुत से मंच है बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग
 करें , छोटी घटनाओं पर ध्यान दें और आग की दरिया में पांव रखने को उद्धत पीढ़ी को सहेजें सम्हालें।
 बच्चों पर निगाह बचपन से ही रखें फिर बड़े होने पर भी वही प्रेम दुलार शासन अनुशासन बनाए रखें प्रेम दंड और पुरस्कार से उन्हे कतई ये कह कर न छोड़ दें कि बच्चा अब तो खुद बड़ा हो गया है गलत कदम नहीं उठाएगा या किसी के बहकावे में नहीं आएगा , जानबूझकर गलती न भी करे भूल से भी बहक सकता है , आप अभिभावक हैं असहनशीलता न उपजने दें ये आप का दायित्व है, और आप अपने दायित्व से पल्ला कतई नहीं झाड़ सकते। संघर्ष तो आप को भी करना ही होगा , नही तो वही कहावत चरितार्थ होगी 
बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय, और कांटे आप को भी चुभना स्वाभाविक होगा।
जय श्री राधे।

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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5


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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

जो मुस्का दो खिल जाए मन



जो मुस्का दो खिल जाये मन
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खिला खिला सा चेहरा  तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब








बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 22, 2022

धरती मां का ये ही प्यार

धरती मां का ये ही प्यार
********



बिन आधार कहां हम रहते
शून्य में क्या हम सदा विचरते
स्थिर मन मस्तिष्क से रचते
नित नूतन नव जग व्यवहार
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***


बीज छिपाए गर्भ में रखती
लेखा जोखा समय देखकर
अंकुर पादप पेड़ फूल फल
सांसे जीवन सब कुछ देती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***



धरती खुद फंगस से जुड़कर
अपनी बुद्धि का करे प्रयोग
तरु पादप हर जीव पालती
देती विविध तरह संदेश
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***



फोटो सिंथेसिस से जुड़कर
पौधे जीवित देते सांस
पर्वत झरने नदियां जंगल
पक्षी फूल सभी हैं साथ
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
खनिज सम्पदा रत्न व भोजन
कर्म तुम्हारे अवनि वारे
क्षिति जल पावक गगन हवा में
पंच तत्व के सभी सहारे
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
कभी उर्वरक कभी उर्वरा 
कूड़ा कचड़ा पाप नासती
जहर धुआं प्लास्टिक से रूष्ट हो
उलट पलट कर हमें चेताती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
आओ जागें चेतें जुड़कर
इस वसुन्धरा को हम पढ़ लें
इन प्यारे उपहार के बदले
धरा बचाने का हम प्रण लें
धरती मां गुरु का ये प्यार
भुला सके कैसे संसार??
   ----------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, April 21, 2022

पृथ्वी दिवस



मित्रों पृथ्वी दिवस की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं

पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पहली बार, पृथ्वी दिवस सन् 1970 में मनाया गया था। दुनिया भर के लोग अपनी धरती की प्राकृतिक संपत्ति को बचाने के लिए बड़े उत्साह के साथ ये पृथ्वी दिवस  मनाते हैं।

इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी. अब इसे लगभग 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है. पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है. 
पृथ्वी दिवस जीवन सम्पदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है. 
जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व आज और भी  बढ़ गया है।

 विश्व पृथ्वी दिवस का उदेश्य अपनी पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हम सब को प्रेरित करना है।
इस पूरे  ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा एकमात्र ग्रह है जहाँ आज तक जीवन संभव है। इसलिए, पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के लिए, पृथ्वी को बचाना परम आवश्यक है। 
22 अप्रैल का दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिससे कि मानव जाति को पृथ्वी के महत्व के बारे में सब कुछ पता चल सके।
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पृथ्वी को आइए बंजर ना बनाएं,  कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक तो हर जगह ना फैलाएं।
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पृथ्वी हम सबका घर है, इसकी सुरक्षा हम सब पर है।
*****
आने वाली पीढ़ी है प्यारी, तो पृथ्वी को बचाना है हमारी जिम्मेदारी …
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धरती माता करे पुकार, हरा भरा कर दो संसार।
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दिल लगाने से अच्छा है कि पौधे लगाएं, वो घाव नहीं देंगे, कम से कम छांव तो देंगे।
********
पानी बचाएं पेड़ लगाएं पर्यावरण संरक्षण में अपना हाथ बंटाऐं।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, April 10, 2022

कन्या पूजन चैत्र नवरात्रि


चैत्र नवरात्रि में मां जगदम्बे की पूजा पाठ के अलावा 






कन्या या कंजिका पूजन और गरीब बच्चों के भोज का महत्व और  आनंद  अद्भुत होता है 











, नौ दिन प्रातः उठना स्नान ध्यान मां की वेदी

और कलश के आगे  कवच अर्गला कीलक आदि , दुर्गा सप्तशती का पाठ आदि ,  का अनूठा आनंद आता है मन को अद्भुत शांति ओज और तेज मिलता है।
कन्या या कंजकों में प्राय: 10 वर्ष तक की बालिकाओं को बिठाकर उनको दुर्गा देवी का स्वरूप मानते हुए पूजन किया जाता है। इस परंपरा को कुमारी पूजन भी कहा जाता है। कुछ परिवारों में एक दो या तीन कन्याओं का पूजन किया जाता है तो कुछ परिवारों में इससे ज्यादा कन्याओं को पूजा जाता है। लेकिन कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
कन्याओं के पैरों को धोकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए, उनके हाथों में कलावा बांधना चाहिए। फिर अक्षत और कुंकुम से उनको तिलक लगाना चाहिए। उसके बाद उन्हें मां के प्रसाद के रूप में बनाए गए चने या पूड़ी और हलवे का भोजन करवाना चाहिए और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणास्वरूप राशि भी देनी चाहिए। फल दें फल खट्टे ना हों।
यथाशक्ति कुछ उपहार भी दें।
नौ कन्याओं के साथ-साथ एक छोटे लड़के को भी बिठाना चाहिए। इस छोटे लड़के को बटुक भैरव या लंगूरा कहा जाता है। लड़के को पूजा में बिठाने का कारण यह है कि मां देवी के प्रत्येक शक्ति पीठ में देवी मां की सेवा के लिए भगवान शिव के भैरव भी मिलते हैं। इसीलिए कंजकों में एक भैरव को भी बिठाकर उसकी भी पूजा करनी चाहिए और भोजन कराना चाहिए।

वहीं कन्या पूजन में और गरीब बच्चों के पूजन और भोज में जितना सुख खुशी उन्हें मिलती  है उससे कहीं अधिक सुकून खुद को मिलता है।

मन्दिर में जाना लोगों के समूह और पंक्ति बद्ध होकर देवी का दर्शन करना आनंद को और बढ़ाता है । 
कुल मिलाकर नवरात्रि असीम सुख शांति देने वाला व्रत और पर्व है।
    मां जगदम्बे सब पर कृपा करें ।
       जय माता दी।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

दौड़ आंचल तेरे जब मैं छुप जाता था


रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली
ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए
नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए
स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी
गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती
तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती
घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती
नाचते मोर कलियां थी पर खोलती
फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग
माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर
लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 
मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 
दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था
क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था
मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी
क्या कभी भूल सकता है संसार भी
गीत तू साज तू मेरा संगीत भी
शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी
नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी
जिसने जीवन दिया पालती पोषती
नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी
 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, April 1, 2022

भरा अथाह नीर नैनों में


मै रोज तकूं उस पार

हे प्रियतम कहां गए



छोड़ हमारा हाथ

अरे तुम सात समुंदर पार

न जाने कहां गए...

नैन में चलते हैं चलचित्र

छोड़ याराना प्यारे मित्र

न जाने कहां गए......

एकाकी जीवन अब मेरा

सूखी जैसी रेत

भरा अथाह नीर नैनों में

बंजर जैसे खेत

वो हसीन पल सपने सारे

मौन जिऊं गिन दिन में तारे

न जाने कहां गए....

हरियाली सावन बादल सब

मुझे चिढ़ाते जाते रोज

सूरज से नित करूं प्रार्थना

नही कभी वे पाते खोज

रोज उकेरूं लहर मिटा दे

चांद चकोरा के वे किस्से

न जाने कहां गए....

तड़प उठूं मैं मीन सरीखी

यादों का जब खुले पिटारा

डाल हाथ इस सागर तीरे

जब हम फिरते ज्यूं बंजारा

खो गए प्रेम के गीत

बांसुरी पायल की धुन मीत

न जाने कहां गए.....

…...............

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं