Saturday, August 1, 2020
कितने सारे सांप यहां पर
कितने सारे सांप यहां पर
फुफकारे पर पूजा पाते
आस्तीन के अंदर बैठे
समय मिले बस दांत चुभाते
दो मुंहवा कुछ भोले भाले
गले लगे हैं जीभ निकाले
अजगर भी कुछ रेंग रहे हैं
बोझ जमीं पर निगल भी जाते
लाल हरे चितकबरे काले
हुए भ्रमित तो बने निवाले
कुछ भोले चंदन बस लिपटे
कर्म जात अपना हैं भूले
सांप न केवल हमें डराए
निर्बल खुद को खा भी जाए
नाग कई जो दांत तुड़ाए
परवश खाएं उन्हें खिलाएं
बीन बजे तो नाच दिखाएं
कभी वक्त खूं पी भी जाएं
कहीं कराईत कहीं कोबरा
किंग कहीं कुछ मंदिर जाएं
हों अशक्त तो रेंग साथ में
खाते पीते साथ निभाएं
इधर उधर सब जगह सांप हैं
मेंढ़क जैसे कूद रहा मै
इनके उनके मध्य पांव रख
सहमा डरा हूं जूझ रहा मै
भय कायर डरपोक कहो कुछ
बना वीर अब तक मै जीता
अगर सांप से लड़ता रहता
अल्प आयु मुश्किल था जीना
बहुत सांप ने मुझे सिखाया
अपना अपना रास्ता पकड़ो
हानि किया ना कुछ क्षति पाया
राह चुनो जीतो बस निकलो ।
10.45 pm 00:27 AM
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5
DEORIA U P
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Labels:
bhramar5,
saanp,
SNAKE,
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५