अपलक देख रहे थे बापू
जब बेटे ने उनको डांटा
ममता भी थी रोक न पाई
वो समाज का बना था कांटा
नागफनी कैक्टस थे संगी
गुल गुलाब जनधन को लूटा
श्वेत वसन भी संगी साथी
लोलुप लंपट पाता पूजा
रिश्ते नाते मानवता की
हत्या क्रूर था चेहरा दूजा
कांटे कांटे जब हम बोएं
क्या आंगन क्या तुलसी पूजा
बूढ़ी आंखे निशि दिन बरसें
घर मंदिर सब लगता सूना
दर्द बढ़े नासूर बने जब
काट अंग ना सब हो सूना
अति फल खुशियां तो कुछ देता
डाल पेड़ आंधी गिर जाता।
मानव दानव जब बन जाता
खून उतर आंखों में आता
आओ जब हम पौध लगाएं
काट छांट करते ही जाएं
टेढ़े मेढे रोग विषाणु
कर उपचार राह पर लाएं ।
लखनऊ
11.26 रात्रि
12 जुलाई 20
28
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५