हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
—————————————
हे प्रभु मुझको जीरो (शून्य) कर दे
शांत चित्त मै सुप्त रहूँ बस
दिवा स्वप्न ही देखे जाऊं
अन्यायी -पापी -राक्षस को
सपने में मै धूल चटाऊँ
खुश रखूँ अपने – मन को मै
इच्छा पूरी कर पाऊँ
इस जगती के “मूर्ख ” मनुख से
लड़-भिड़ काहे खून बहाऊँ !
—————————————
अगर “एक” कोई भल-मानस
इन्सां आगे कदम बढ़ाये
मै “जीरो” उससे जुड़ -जुड़ के
शक्ति “एक” की “खरब “ बनाऊं
रंजो गम दिल के सारे मै
उसके ले कर – “शून्य” बनाऊँ
सिर आँखों के पलक पांवड़े
बिठा के – उस “प्यारे भाई” को
फूलों का मै हार पिन्हाऊँ
पूजे जाऊं जोश भरूँ मै
“मंच ” चढा स्वागत करवाऊं
—————————————–
सब जीरो मुझ संग फिर मिल के
सुन्दर – प्यारा – जहां बनायें
मुक्त रहें – मन मिले हों सब के
ऊषा -निशा -खिल-खिल दिखलायें
गर्व से उन्नत शीश हमारे “कर्म” हमारा
घर आंगन फसलें हरियायें
पूत – सपूत – बनें सारे ही
जग-जननी ऐसी कृति लायें
पूजन भजन करूँ तब इनका
मुस्काऊँ मै “माथ” नवाऊँ !
—————————————–
या प्रभु मुझको “हीरो” (अभिनेता ) कर दे
पीटा जाऊं -पड़ा रहूँ मै धूल चाटता
अन्यायी के तीरों घायल
लहू – लुहान खून से अपने
इस प्यारी धरती माता को सींचे जाऊं
लडूं सदा मै अन्यायी से जोश भरे नित
कोड़े चाबुक से छलनी मै देह कराऊँ
दर्द जगेगा – ममता रोये – सारे दें फिर साथ
जोश – जूनून भरे फिर “उठ” मै
अन्यायी को धूल चटाऊँ
घर में घुसकर खींच -खींच कर
अच्छाई की देवी आगे “भेंट” चढाऊँ
——————————————–
दौड़ा-दौड़ा भीड़ में उनको
करनी का फल मै दिखलाऊँ
माँ बहनें सब “लात” मार दें
शोषित जन “छाती” चढ़ जाएँ
( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
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हे प्रभु मुझको जीरो (शून्य) कर दे
शांत चित्त मै सुप्त रहूँ बस
दिवा स्वप्न ही देखे जाऊं
अन्यायी -पापी -राक्षस को
सपने में मै धूल चटाऊँ
खुश रखूँ अपने – मन को मै
इच्छा पूरी कर पाऊँ
इस जगती के “मूर्ख ” मनुख से
लड़-भिड़ काहे खून बहाऊँ !
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अगर “एक” कोई भल-मानस
इन्सां आगे कदम बढ़ाये
मै “जीरो” उससे जुड़ -जुड़ के
शक्ति “एक” की “खरब “ बनाऊं
रंजो गम दिल के सारे मै
उसके ले कर – “शून्य” बनाऊँ
सिर आँखों के पलक पांवड़े
बिठा के – उस “प्यारे भाई” को
फूलों का मै हार पिन्हाऊँ
पूजे जाऊं जोश भरूँ मै
“मंच ” चढा स्वागत करवाऊं
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सब जीरो मुझ संग फिर मिल के
सुन्दर – प्यारा – जहां बनायें
मुक्त रहें – मन मिले हों सब के
ऊषा -निशा -खिल-खिल दिखलायें
गर्व से उन्नत शीश हमारे “कर्म” हमारा
घर आंगन फसलें हरियायें
पूत – सपूत – बनें सारे ही
जग-जननी ऐसी कृति लायें
पूजन भजन करूँ तब इनका
मुस्काऊँ मै “माथ” नवाऊँ !
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या प्रभु मुझको “हीरो” (अभिनेता ) कर दे
पीटा जाऊं -पड़ा रहूँ मै धूल चाटता
अन्यायी के तीरों घायल
लहू – लुहान खून से अपने
इस प्यारी धरती माता को सींचे जाऊं
लडूं सदा मै अन्यायी से जोश भरे नित
कोड़े चाबुक से छलनी मै देह कराऊँ
दर्द जगेगा – ममता रोये – सारे दें फिर साथ
जोश – जूनून भरे फिर “उठ” मै
अन्यायी को धूल चटाऊँ
घर में घुसकर खींच -खींच कर
अच्छाई की देवी आगे “भेंट” चढाऊँ
——————————————–
दौड़ा-दौड़ा भीड़ में उनको
करनी का फल मै दिखलाऊँ
माँ बहनें सब “लात” मार दें
शोषित जन “छाती” चढ़ जाएँ
( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
धूल चाट कर – नाक रगड़ कर
“पापी” जब प्रायश्चित कर ले
चौराहे इन चोर-पापियों को टाँगे मै
बुरे काम का बुरा नतीजा
मुहर लगाऊं -मुक्ति दिलाऊँ
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“पापी” जब प्रायश्चित कर ले
चौराहे इन चोर-पापियों को टाँगे मै
बुरे काम का बुरा नतीजा
मुहर लगाऊं -मुक्ति दिलाऊँ
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हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
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या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
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प्रिय मित्रों आइये अन्ना जी के हाथों को और मजबूत करें ……एक मई से स्वागत समारोह शुरू हो रहा है ……..जय श्री राधे
शुक्ल भ्रमर ५
८.१६-८.४९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी -२०.०४.१२
८.१६-८.४९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी -२०.०४.१२
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
zero kee khoj to bharat ne kee thee..lekin upyuog aapne bataya zero ka....jitni taarif kee jaaye kam hai..behad shandaar..sadar badhayee aaur sadar amantrn ke sath
ReplyDeleteहे प्रभु आनंद दाता ज्ञान सब हर लीजिए ,
ReplyDeleteमंद बुद्धि बालकों सा हम को भी कर दीजिए .
शून्य वाद का दर्शन हमारा मौलिक चिंतन है .ये सृष्टि भी शून्य आकार से अस्तित्व में आई है ,विस्तार पाई है,बा -रहा इसी शून्य में समाई है . सृष्टि का आदिम अणु भी शून्य आकारी था .शून्य है परम तत्व .
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteनमन...
अनु
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteमूर्ख मनुष्य से लड़-भिड कर
खून बहाना भी मूर्खता ही तो है ।
प्यारी वन्दना ।।
सादर
सुंदर विचार ....उम्दा रचना
ReplyDeleteउम्दा व सारगर्भित अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
ReplyDeleteया कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
सुंदर वंदना.
बधाई.
सुंदर वंदना,बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
शानदार....
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