ग़म की बदली जो छाई है टल जाएगी
वो सुहानी किरण आज फिर आएगी
हम न हारे कभी आज फिर जीतेंगे
नेत्र अब हैं खुले हौसले सब मिले
साफ होगी हवा कल बनेगी दवा
रोग ताकत पे अपनी ठहरते कहां
हैं प्रभु बन के उतरे चिकित्सक यहां
लहरेगा फिर तिरंगा और देखे जहां ।
7.40 7.59 पूर्वाह्न
15 जुलाई 20
लखनऊ
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
No comments:
Post a Comment
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५