BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, August 1, 2020

दर्द सुनामी बन जब आता शांत सुशांत कहां टिक पाता


कुंठा बन अवसाद लीलती
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दर्द सुनामी बन जब आता
शांत सुशांत कहां टिक पाता
प्रबल वेग तूफान ढहाता
मन मस्तिष्क गृह सब बह जाता
अर्थ तंत्र माया की नगरी
चमक दमक अन्दर है खोखली
लोभ मोह बालक प्रिय प्रियतम
होता क्या ? बन्धन सब बेदम
कुंठा बन अवसाद लीलती
सुख समृद्धि जग काल झोंकती
बड़ी बेरुखी जग जब मिट्टी
सांसें फिर - फिर थम ही रहतीं
मिट्टी छोड़ गए जब हारे
टूटा कंधा गए पिता जीवित ही मारे
फटती छाती दृग निर्झर सा
अन्धकार जग सब सूना सा
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
9- 9.26 PM रविवार
देवरिया उ. प्र .


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५