BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, August 1, 2020

मन को छुआ


मन को छुआ
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एकाएक एक दिन
पारखी नजरों के आंकलन ने
मन को छुआ, देखा कुछ
अजीब सा होता हुआ
कोमलता कमतर हुई
हरियाली जाती रही
मुरझाना शुरू हुआ
अन्दर किया बाहर किया
सर्द गर्म हर मौसम - दिया
खाना - खुराक - दवा पानी
प्रेम प्यार स्नेहिल जज्बात
मुरझाता गया गात
मेहनत बेकार
झुंझलाहट चिड़चिड़ाहट बढ़ी
हर पल पगी - रही
देहरी पर खड़ी
तिस पर उलाहना
घूरती आंखों का
आस पास पड़ोस
शक्की जमाने का
पुरुषार्थ पर मेरे
स्नेह - निष्ठा
पालन पोषण पर मेरे
वज्राघात सहता - रोता
मन कचोटता - देता
और दवा पानी खाना खुराक
आंखें सूखीं भर आईं पथराईं
बरसीं छलकीं
और ' वो ' सब को देने वाला
दवा - जीवन - दान
आखिर मुरझा ही गया
प्यारा - तुलसी का पौधा
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ला भ्रमर ५
१.०५-१.५२ भोर , शनि
देवरिया उ. प्र .




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५