Saturday, August 1, 2020
जब तक दम पतवार चलाए
काली स्याह रात टल जाती
भोर किरण ले आती है
ग्रहण लगे कितना भी निर्मम
ठहरे ना , धवल चांदनी आती है
भीषण बाढ़ कटाव रौंद दे
अंकुर फिर उग आते हैं
डूबा उतरा फिर फिर आता
सांसें साथ निभाती हैं
मन के हारे हार कहा सच
मन जीते जग विजय दिलाए
हारो ना हे कर्म पुरोधा
द्वंद प्रश्न हर हल हो जाए
प्रेम अगर माटी-तिनके से
काल व्याल अरि लौट के जाएं
धैर्य धार - दुर्लभ तन मानव
जब तक दम पतवार चलाए
सुन्दर तन मंदिर निज बस मन
हो बुलंद हरि पार लगाएं
Me
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५