Saturday, August 1, 2020
बूढ़े काका की आंखों के तारे प्यारे बिछड़ गए
बूढ़े काका की आंखों के
तारे प्यारे बिछड़ गए
इतने सारे मोहक सपने
अंगारों से दहक गए
जिसको पाला पोसा सींचा
नागफनी क्यों बने चुभे
दीन दशा काका की देखे
खुद काका बन जाऊं मै
स्नेह अधिक या कमी कहीं थी
सोच सोच पगलाऊं मै
नशे धुत्त चंदन में भी विष
क्यों कुछ समझ न पाऊं मैं
बोझिल आंखें झरते झरने
खुद से ना लड़ पाऊँ मै
लोग हंसेंगे टीस लिए हिय
कभी बचूं फिर उसे बचाऊं
कुंठा और विषाद मार दे
कभी डरा डर जाऊं मै
खून मेरा ही खून अजब रे!
आंगन तुलसी रूखा पाऊं
नागफनी भी अब तो भाई
आंगन मेरे काट न पाऊं ।
लखनऊ
३०.६.२०२०
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५