BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, August 7, 2020

दीप पुंज ले बढ़ते जाएं

आओ करें प्रकाशित जग को,
 दीप पुंज ले बढ़ते जाएं 
 शांत पवन या भले आंधियां 
 टूटे ना लौ जल जल जाए 
 कितना भी शातिर वो तम हो 
 लौ से तेरी बच ना पाए 
 अंधियारे को चीर नित्य ज्यों 
 सूरज सब को राह दिखाए 
 कितनी रातें काल सरीखी ग्रसें उसे 
 और सुनहरी किरण लिए जगमग हो आए 
 हों कोयले की खान चमकते हीरे जैसा 
 बड़े पारखी दौड़े आएं चुन ले जाएं 
 इस अथाह सागर में गुम ना खोएं यारों 
 मोती सा खुद चमकें जग को भी दमकाएं 
 कितने राहु केतु आए कारे बादल से छाए
 तेज पुंज में कहां ठहर वे पल भर पाए
 आओ हम भी जुगनू जैसे रहें चमकते 
 चीरें तम को सब मिल उजियारा फैलाएं 
  कहें भ्रमर कविराय आज तुम दीपक जैसे 
आंखों के तारे बन छाओ भानु सरीखे 
 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5 
देवरिया उ. प्र. 3.30-4.46 पूर्वाह्न 

 दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

11 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. धन्यवाद रवीन्द्र जी रचना आप के मन को छू सकी खुशी हुई आभार

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  3. बहुत सुंदर सृजन

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  4. आभार जोशी जी प्रोत्साहन हेतु

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  5. धन्यवाद हिंदी गुरु जी अपना प्रेम बनाए रखें

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  6. गगन शर्मा जी रचना आप के मन को छू सकी खुशी हुई

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  7. आभार अनुराधा जी प्रोत्साहन बनाए रखें राधे राधे

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  8. लाजवाब लेख है आपको मजा आ गया<

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५