आओ करें प्रकाशित जग को,
दीप पुंज ले बढ़ते जाएं
शांत पवन या भले आंधियां
टूटे ना लौ जल जल जाए
कितना भी शातिर वो तम हो
लौ से तेरी बच ना पाए
अंधियारे को चीर नित्य ज्यों
सूरज सब को राह दिखाए
कितनी रातें काल सरीखी ग्रसें उसे
और सुनहरी किरण लिए जगमग हो आए
हों कोयले की खान चमकते हीरे जैसा
बड़े पारखी दौड़े आएं चुन ले जाएं
इस अथाह सागर में गुम ना खोएं यारों
मोती सा खुद चमकें जग को भी दमकाएं
कितने राहु केतु आए कारे बादल से छाए
तेज पुंज में कहां ठहर वे पल भर पाए
आओ हम भी जुगनू जैसे रहें चमकते
चीरें तम को सब मिल उजियारा फैलाएं
कहें भ्रमर कविराय आज तुम दीपक जैसे
आंखों के तारे बन छाओ भानु सरीखे
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
देवरिया उ. प्र.
3.30-4.46 पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
धन्यवाद रवीन्द्र जी रचना आप के मन को छू सकी खुशी हुई आभार
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteआभार जोशी जी प्रोत्साहन हेतु
ReplyDeleteधन्यवाद हिंदी गुरु जी अपना प्रेम बनाए रखें
ReplyDeleteगगन शर्मा जी रचना आप के मन को छू सकी खुशी हुई
ReplyDeleteआभार अनुराधा जी प्रोत्साहन बनाए रखें राधे राधे
ReplyDeleteलाजवाब लेख है आपको मजा आ गया<
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