गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के
बौराया मेरा निश्च्छल मन
फूटा अंकुर कोंपल फूटी
टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन
कोयल कूकी बुलबुल झूली
सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन
छुयी मुई सी नशा नैन का
यादों वादों का झूला वो फूला मन
हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी
सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन
लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को
पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन
फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन
कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर
मादक सी गंध है होली के रंग लिए
कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन
पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से
गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत
अप्रतिम रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मित्र, रचना को आप ने चुना पांच लिंकों का आनंद के लिए बहुत खुशी हुई , आभार। राधे राधे।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आप का आदरणीया, जय श्री राधे।
ReplyDeleteआम्र मंजरी बौराए तन देख देख के
ReplyDeleteबौराया मेरा निश्च्छल मन
फूटा अंकुर कोंपल फूटी
टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन
कोयल कूकी बुलबुल झूली
सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन
बहुत सुंदर..
आभार..
बहुत सुंदर शृंगार सृजन होली के रंगों सा रंगीला।
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