कन्या या कंजिका पूजन और गरीब बच्चों के भोज का महत्व और आनंद अद्भुत होता है
, नौ दिन प्रातः उठना स्नान ध्यान मां की वेदी
और कलश के आगे कवच अर्गला कीलक आदि , दुर्गा सप्तशती का पाठ आदि , का अनूठा आनंद आता है मन को अद्भुत शांति ओज और तेज मिलता है।
और कलश के आगे कवच अर्गला कीलक आदि , दुर्गा सप्तशती का पाठ आदि , का अनूठा आनंद आता है मन को अद्भुत शांति ओज और तेज मिलता है।
कन्या या कंजकों में प्राय: 10 वर्ष तक की बालिकाओं को बिठाकर उनको दुर्गा देवी का स्वरूप मानते हुए पूजन किया जाता है। इस परंपरा को कुमारी पूजन भी कहा जाता है। कुछ परिवारों में एक दो या तीन कन्याओं का पूजन किया जाता है तो कुछ परिवारों में इससे ज्यादा कन्याओं को पूजा जाता है। लेकिन कन्याओं की संख्या दो से कम और नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
कन्याओं के पैरों को धोकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए, उनके हाथों में कलावा बांधना चाहिए। फिर अक्षत और कुंकुम से उनको तिलक लगाना चाहिए। उसके बाद उन्हें मां के प्रसाद के रूप में बनाए गए चने या पूड़ी और हलवे का भोजन करवाना चाहिए और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणास्वरूप राशि भी देनी चाहिए। फल दें फल खट्टे ना हों।
यथाशक्ति कुछ उपहार भी दें।
नौ कन्याओं के साथ-साथ एक छोटे लड़के को भी बिठाना चाहिए। इस छोटे लड़के को बटुक भैरव या लंगूरा कहा जाता है। लड़के को पूजा में बिठाने का कारण यह है कि मां देवी के प्रत्येक शक्ति पीठ में देवी मां की सेवा के लिए भगवान शिव के भैरव भी मिलते हैं। इसीलिए कंजकों में एक भैरव को भी बिठाकर उसकी भी पूजा करनी चाहिए और भोजन कराना चाहिए।
वहीं कन्या पूजन में और गरीब बच्चों के पूजन और भोज में जितना सुख खुशी उन्हें मिलती है उससे कहीं अधिक सुकून खुद को मिलता है।
मन्दिर में जाना लोगों के समूह और पंक्ति बद्ध होकर देवी का दर्शन करना आनंद को और बढ़ाता है ।
कुल मिलाकर नवरात्रि असीम सुख शांति देने वाला व्रत और पर्व है।
मां जगदम्बे सब पर कृपा करें ।
जय माता दी।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५