BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 1, 2022

भरा अथाह नीर नैनों में


मै रोज तकूं उस पार

हे प्रियतम कहां गए



छोड़ हमारा हाथ

अरे तुम सात समुंदर पार

न जाने कहां गए...

नैन में चलते हैं चलचित्र

छोड़ याराना प्यारे मित्र

न जाने कहां गए......

एकाकी जीवन अब मेरा

सूखी जैसी रेत

भरा अथाह नीर नैनों में

बंजर जैसे खेत

वो हसीन पल सपने सारे

मौन जिऊं गिन दिन में तारे

न जाने कहां गए....

हरियाली सावन बादल सब

मुझे चिढ़ाते जाते रोज

सूरज से नित करूं प्रार्थना

नही कभी वे पाते खोज

रोज उकेरूं लहर मिटा दे

चांद चकोरा के वे किस्से

न जाने कहां गए....

तड़प उठूं मैं मीन सरीखी

यादों का जब खुले पिटारा

डाल हाथ इस सागर तीरे

जब हम फिरते ज्यूं बंजारा

खो गए प्रेम के गीत

बांसुरी पायल की धुन मीत

न जाने कहां गए.....

…...............

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५