गौरैया
सुबह सवेरे नित्य ही
उठ मैं दाना डालूं
चीं चीँ चूं चूं बोल बोल के
गौरैया को पा _ लूं
खंजन मैना तोता आते
अपने सुर में गाते
मेरे फूलों की बगिया में
फुर्र फुर्र धूम मचाते
कनइल गेंदा औ गुलाब है
गुड़हल नौ बजवा से खेलें
कभी कतर ले जाते इनको
थोड़ा दुख भी देते
धीरे धीरे चुपके छुप के
इनके पास खड़ा हो जाऊं
प्यारी मीठी बोली सुन सुन
सच कहता मैं खुश हो जाऊं
फुर्र उड़ें जब ये पंछी तो
मन कहता मैं भी उड़ जाऊं
बिन बंधन स्वच्छंद उड़ूं मैं
गगन नदी सागर छू आऊं
आओ प्यारे तुम भी जागो
सुबह सवेरे इन संग खेलो
तांबे का सूरज नित देखो
प्राण वायु छाती में भर लो
योग ध्यान की मुद्रा में भी
बैठो देखो सुख पाओगे
बूढ़े बच्चे युवा वर्ग सब
ये मौका मत जाना चूक
हाथ से तोता उड़ जायेगा
बुल बुल फुर्र बड़ी फिर भूल
हरियाली आंखों को भाती
दिव्य रोशनी मस्तक जाती
ज्ञान चक्षु पुट खिल जाते हैं
याददाश्त फिर घर कर जाती
कौआ और कबूतर सब अब
हिम्मत कर साथ बैठते हैं
प्रेम से डर भी भाग गया है
सोन चिरैया कहती है।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश
भारत। 23.03.2022
Bhut sunder kavita.. nayi seekh dene vali
ReplyDeleteहार्दिक आभार बन्धु, अपना स्नेह बनाए रखें। राधे राधे।
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