ये आनन्द चीज क्या कैसा क्या इसकी परिभाषा
भाये इसको कौन कहाँ पर कौन इसे है पाता?
उलझन बेसब्री में मानव जो सुकून कुछ पाए शान्ति अगर वो पा ले पल भर जी आनंद समाये,
सूनी कोख मरुस्थल सी माँ पल-पल घुट-घुट जो मरती,
शिशु का रोना हंसना उर भर क्रीड़ानंद वो करती,
रंक कहीं भूखा व्याकुल जो क्षुधा पिपासा जाए, देता जो प्रभु सम वो लागे जी आनंद समाये,
पैमाना धन का है अद्भुत क्या कुछ किसे बनाये, कहीं अभागन बेटी जन्मे कुछ लक्ष्मी कहलायें,
प्रीति प्रेम सम्मान अगर जीवन भर बेटी पाए
हो आनंद संग बेटी के मात -पिता हरषाए ।
गोरा वर गोरी को खोजे काला कोई गोरी,
गुणी छोड़ कुछ वर्ण रंग धन बड़े यहाँ हत भोगी।
प्रेम कहीं कुछ शीर्ष चढ़े तो नीच ऊँच ना रंग हो, आनंद जमाना दुश्मन अजब गजब दुनिया का रंग जो!
कहीं नशे में ऐंठ रहे कुछ नशा अगर पा जाएँ ,
धन्य स्वर्ग में उड़ते फिरते जी आनंद समाये !
मै मकरंद मधू आनंद कवि -कविता में पाए लोभी मोही धन में डूबे धन आनंद में मरता जाए!
वहीं ऋषी मुनि दान दिए सब मोक्षानंद में फिरते, मेरा तेरा इनका उनका अलग -अलग अद्भुत आनंद।
जो आनंद मिले तो पूछूं उसकी क्या है पसन्द ?
सबका है आनंद अलग तो इसका भी कुछ होगा गुण-प्रतिभा ये दया स्नेह या आनंद धन में होगा ।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५