Saturday, August 1, 2020
सावन की छटा निराली है
मलयानिल बह रही आज ,
रिमझिम फुहार सुखदाई है
खिले पुष्प अनुपम गुलाब
हर ओर बिछी हरियाली है
ताल तलैया खेत बाग मन
सागर नदियों की क्यारी है
झूला कजरी नागपंचमी
बच्चों की किलकारी है
मनहर मधुमय सब मधुप खिले
सावन की छटा निराली है
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 02 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
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