BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 14, 2023

जब तक दम है आओ खेलें

जी, कितने आए कितने चले गए , मोह माया है सब , 
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ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
बूढ़ा पेड़ नए तरुवर से
उलझ कहां टिकता दमदार,
पानी खाद तो मिलना दूभर
बने खोखला गिरती डाल,
कुछ है हरा फूल फल गिरते
आंधी कभी, कभी वज्रपात,
पेड़ जीव या मानव तन हो,
मिलती जुलती एक कहानी,
आज खंडहर रोता कहता
एक थे राजा एक थी रानी,
जब तक दम है आओ खेलें
बोलें डोलें हंस मुस्का लें,
वे अबोध हैं क्रोध छोड़ दो
माफ करो कुछ बनेगी बात,
आग लगी है हवन सुगंधित
चाहे जितना कर पवित्र ले,

घी डालो या चंदन खुशबू,
पानी डालो या फिर पीटो, 
एक दिन हो जाना है राख, 
यही तो है सब की औकात.........

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश।



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

5 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार 16 अप्रैल 2023 को 'बहुत कमज़ोर है यह रिश्तों की चादर' (चर्चा अंक 4656) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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    1. हार्दिक आभार मित्र, जय जय श्री राधे

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  2. लाजवाब प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक आभार बन्धु , राधे राधे

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  3. बहुत सुन्दर रचना।

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५