आँखें खोलो
देखो कैसे – “गंगा मैली”-
‘लाल’ हो रहा- जल यमुना का
बढ़ा जा रहा- चढ़ा जा रहा
जीवन लेता-“काल” सरीखा
अली-"अलि" चिल्लाता-“काला”
भौंरा घूमे -विश्व -बंधु सा
राजा- ढोल बजाता है
कहीं पुजारी-मठाधीश
संग-मंत्री गाना गाता है
"संसद" वहीँ चलाता है
जंगल में भटके लोगों
से बढ़कर हैं 'दो' -'चार'
गुप्त खजाना-अस्त्र- सस्त्र ले
करते हम पर “राज”
जो चाहे वो नीति बनाते
नियम तोड़ते -घूमे-बोले
"अपना मूल अधिकार"
"न्याय" तो सोता -कुम्भकर्ण सा
करवट भी गर बदले
धन-धमकी-धर्म-नीति सब
चढ़े-तराजू - "जस्टिस" बदले
बाप मरा -बेटा फिर लड़ता
गठरी बांधे रोज -रगड़ता
बीस साल से -बीस कोस तक
कोर्ट -कचहरी -हर पंचायत !!
भोला मन -अब 'फास्ट- ट्रैक' है
सभी चीज का 'शोर्ट-कट' है
कहीं लाटरी -जुआ दौड़ है
रेस -कोर्स है -दांव लगा है
बड़े लोग-बाजार होड़ है
अन्दर झांको -सभी बिका है
पहचाने चेहरे -'मेरे' -'अपने '
बेंच -खोंच में सभी लगे हैं
आँखें खोलो - देखो कैसे
'कचरा' सारा बाहर आता
"बदबू" से -'मैले' से अपने
कैसे “सब” को गन्दा करता
शुद्ध -परिष्कृत - इसको भाई
कर पावो तो कर डालो ! या
इसे गाड़ दो - नहीं - जला दो
" एक जगह ही मैला कर ले
मत लावो गंगा-यमुना में
"गाँठ" बाँध के -जोड़ -जोड़ के
ये बहने हैं- माँ है अपनी
यही शारदा -संस्कृति अपनी
श्वेत धरा है …
सदियों से ये खिला 'कमल' है
"कीचड़" में भी !!!!
इन्हें बचा लो
इन्हें बचा लो …
जितनी दूर चले ये 'मैला'
"गंध"-"वायु" सब करे विषैला
‘जानो’ तुम - ‘पहचानो’ इसको
"दूषित" – ‘दुनिया’ अभी बचा लो
आँखें खोलो
देखो कैसे गंगा मैली
लाल हो रहा जल यमुना का
‘बढ़ा’ जा रहा- ‘चढ़ा’ जा रहा
जीवन लेता-काल सरीखा
शुक्लाभ्रमर५
एक अर्थपूर्ण रचना .....
ReplyDeleteप्रिय डाक्टर मोनिका जी धन्यवाद --आप की पहली प्रतिक्रिया हमारे ब्लॉग पर -देख- हर्ष हुआ -कृपया अपना अनमोल सुझाव और आलोचना हेतु जुड़े रहिये --अपना स्नेह बनाये रखें -जिससे आगे बढ़ा जा सके -शुक्लाभ्रमर५
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