पगली इतना
गट्ठर बांधे ,
गली गली
मुस्काते चलती ,
आँखों से वो
करे इशारे ,
नैन मटक्का ,
फटी हुई धोती
से अपने ,
गली बुहारे ,
दरवाजे जा -
खड़ी गाड़ियों ,
के शीशे में
खुद को देखे ,
चमकाए फिर
कमर नचाये ,
बल खाते -
लहरा के चलती ,
पगली इतना
गट्ठर बांधे ,
गली गली
मुस्काते चलती ,
उसका घर था ,
बेटे –बेटी ,
बातें करती
आसमान से ,
उनसे लडती
खड़ा सामने ,
कोई भी -
ना देखा करती ,
श्मशान में
जाकर सोती ,
पल दो पल
जी भर के रोती ,
फिर अपना वो
गट्ठर बांधे ,
चली शहर में -
आया करती ,
पगली इतना
गट्ठर बांधे ,
गली गली
मुस्काते चलती
गिला न शिकवा ,
किस्से भी - ‘वो ’
कूड़ा करकट -
कुत्तों के संग
भाग दौड़कर ,
“रोटी ” अपना -
खाया करती
पगली इतना
गट्ठर बांधे ,
गली गली
मुस्काते चलती
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
१३ .२ .११ जल (पी बी ) ४ .४५ पूर्वाह्न
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५