बकरी सा मिमियाता –“मजबूरी” दिखाता-कठपुतली इस मैदान -उस मंच …
'मजबूर' - लाचार
भोली आँखों वाला “बूढ़ा”
“ताकतवर” - कलाबाजी में माहिर
जिसका गजब का आचार
व्यवहार !!!
बहुत दिनों से लोग उसे
जानते -पहचानते
मानते !!
साथ चलते !
आज घबराता -
‘चेहरा छिपाता’ - घूमता
उसकी आँखों में
बोल में -खेल में
"रहस्य" भरा दिखता
आग से कूदने में - डरता
घबराता - दो शब्द बोलता
"बकरी सा मिमियाता"-
“मजबूरी”- दिखाता
हाथ जोड़ !!
लोगों के सामने -
मंच पे यहाँ -वहां
जहाँ भी जाता
अपनी "ताकत" को भूलता
जैसे हनुमान को किसी ने
“श्राप” दिया हो
बस आँखें झपकाता
दिखाता मासूमियत बेबसी
"खेल" नहीं
जिसके इंतजार में
धूप में बारिश में
एक पाँव पे खडी -भूखी
उसकी प्यारी “जनता –दर्शक”
न करिश्मा न दांव -पेंच
न जाने क्या हुआ
जरा सा इशारा -"डोर" हिली
बार -बार भागता -
अँधेरे में झांकता
“परदे के पीछे” बैठे -
छिपे लोगों के पास-
दौड़ जाता
दोस्ती का हाथ बढाता
पूँछ हिलाता-
"वो बन्दर"
फिर सामने आ जाता
कूदता -उछलता
दांत दिखाता -पब्लिक को
बेवकूफ बनाता-बहलाने
फुसलाने की कोशिश करता
कुछ पचासों साल के घिसे
पिटे खेल करतब करिश्मा
दिखाता -बिना होश -बिना जोश के
और पेट पकडे -मासूम आँखे
"मज़बूरी" दिखाते
लुढ़क जाता-
लौट जाता जनता तिलमिलाई -
गुस्साई -भांप गयी
दौड़ गयी -ले मशाल
अँधेरे में परदे के पीछे
"कौन" शक्तिशाली
‘बड़े लोग’ -उसका ‘खेल’
बिगाड़ रहे
"गुलाम" -"कठपुतली"
बना -एक डोर में बांधे
उशको अपने इशारे -
ऊँगली पे नचा रहे-
भर रहे तिजोरी
जिसकी कटोरी- में
डालते -दाना
हम
बरसों से खिला रहे
शुक्लाभ्रमर-५
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५