“दिया” जला तो
अम्मा -बाबू -चैन से सोये
भिनसारे ही उठकर भाई
ख़ुशी-झूम कर –‘नाच’ पड़े हैं
मेरा ‘दर्द’ हुआ कम भाई
नहीं ‘दवाई’ उनने खायी
लिए मोबाईल
‘सन्देशा’ वे भेज रहे हैं
‘गुल्ली’- ‘डंडा’ याद तू करना
‘मुन्ना’ - मेरे ‘लाल’
जरा नहीं घबराना उनसे
कर देना मुह ‘लाल’
‘एक’+ -‘एक’- रन जोड़े जाना
‘चौका’ भी धर देना
यहाँ -वहां ताके तुम रहना
‘छक्का’ भी जड़ देना
जितने तेरे ‘भाई’ –‘संग’ हैं
मिल के ‘गले’ लगाना
सबको जिम्मेदारी देना
"माँ" की लाज बचाना
‘कांटे’ –‘पत्थर’ दौड़ा था तू
करता ‘मुश्किल’- काम
जिले राज्य से भेजा हमने
करना ना बदनाम
आज तो ‘मखमल’ दौड़ रहा तू
कर सकता है ‘हर’-‘ काम’
तेरा बल्ला
तेरी माँ के बल्ले से ‘वो’ बनी टोकरी
संग -संग रक्खे
उसमे रक्खा ‘फूल’
सदा ‘होश’ में खेले जाना
कुछ भी ना हो ‘भूल’
रखो ‘भरोसा’- अपने ऊपर
सभी काम- ‘आसान’
‘अश्वमेध’ हम करते बैठे
‘घोड़े’ भागें तेज
‘विजय’ रथ ना रुके हमारा
तेरी ‘अम्मा’ ने भी माँगा
‘नवरात्रि’ !!! हे दुर्गा माई !!
पूत हमारा - ‘दुनिया’ छाये
लिए “विश्व –कप” जल्दी आये !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
प्रतापगढ़ उ.प्र.
अब हम जीत के आयेंगे >>>>>
1.4.2011
मनप्रीत जी आप को भी ढेर सारी शुभ कामनाएं -हम तो आपके ब्लॉग पर आये देखा पढ़ा रोचक बहुत सुन्दर पंजाब की सोणी मिटटी की खुश्बू-हाँ दुवा कीजे विश्व-कप हम यहाँ सजाएँ
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