BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, March 10, 2011

बदरा बनि - बनि घूमि रहे हो -shuklabhramar5-kavita-hindi poems

बदरा बनि  - बनि घूमि रहे हो 


जब से आई हवा बसंती 
फूटी कोंपल -अब हरियाली 
अंग-अंग अंगडाई 
अब और न मुझको जलाना
सजन तुम ...फागुन में ..
फागुन में आ जाना 
भर के अंग लगाना 
जिया भर - बालम मोरे !!!

                                            ( uparyukat chitra / photo sabhar and with thanx frm other sources )
बदरा बनि  - बनि घूमि रहे हो 
चाँद - सितारे चूमि रहे हो    
धरती पर आ जाना ...
धरती पर आ जाना 
                   -फोटो साभार एक अन्य स्रोत से सुन्दर कार्य में प्रयुक्त
हाए - बरसे -मुझे जुड़ाना
सजन तुम -- और नहीं तरसाना
फागुन में आ जाना 
भर के अंग लगाना 
जिया भर --बालम मोरे  
shuklabhramar5
naari,patang, pagli, koyla, ghav bana nasoor, ras-rang, bhramar....

No comments:

Post a Comment

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५