मुझे खोदकर छोड़ दिए हो
सूखा हूँ मै संकरा इतना
शीतल मन ना- मै संकीर्ण
जरा नहीं -आँखों में पानी
जब खोदे हो उदर भरो तुम
मुझे खिलाओ मिटटी- पत्थर
मुंह मेरा जो खुला रहेगा
पेट हमारा होगा भूखा
सांस हमारी जहर बनेगी
विष ही व्याप्त रहेगा इसमें
काल बनूँगा कुछ खाऊँगा
कोई जानवर सांप कहीं तो
बच्चे भी मै खा जाऊँगा !!
सूखा हूँ मै संकरा इतना
शीतल मन ना- मै संकीर्ण
जरा नहीं -आँखों में पानी
जब खोदे हो उदर भरो तुम
मुझे खिलाओ मिटटी- पत्थर
मुंह मेरा जो खुला रहेगा
पेट हमारा होगा भूखा
सांस हमारी जहर बनेगी
विष ही व्याप्त रहेगा इसमें
काल बनूँगा कुछ खाऊँगा
कोई जानवर सांप कहीं तो
बच्चे भी मै खा जाऊँगा !!
तू भी जो गर मिला मुझे तो
उदर पूर्ति तुझसे कर जाऊं
राक्षस हूँ मै -भूखा दानव
कितना मूर्ख अरे तू मानव ??
चाहे कितने हों संशाधन
पास तुम्हारे तेरी सेना
गाँव गली के सारे जन
देख चुका कितनों को खाया
भूखा फिर भी ना भर पाया !!
उदर पूर्ति तुझसे कर जाऊं
राक्षस हूँ मै -भूखा दानव
कितना मूर्ख अरे तू मानव ??
चाहे कितने हों संशाधन
पास तुम्हारे तेरी सेना
गाँव गली के सारे जन
देख चुका कितनों को खाया
भूखा फिर भी ना भर पाया !!
कल सोनू स्कूल से लौटा
पांच का सिक्का उदर में मेरे
डाला जो -तो -भूख बढ़ी
लालच मेरी और बढ़ी
सोनू को मै बुला -लिटाया
देर हुआ जब बहना देखी
वो भी मेरे पेट में उतरी
उसका पति भी पीछे उसके
प्रेम बंधे-सब पेट में मेरे !
पांच का सिक्का उदर में मेरे
डाला जो -तो -भूख बढ़ी
लालच मेरी और बढ़ी
सोनू को मै बुला -लिटाया
देर हुआ जब बहना देखी
वो भी मेरे पेट में उतरी
उसका पति भी पीछे उसके
प्रेम बंधे-सब पेट में मेरे !
इतने पर भी पेट भरा ना
मै राक्षस हूँ -काल तुम्हारा
सोनू का भाई बड़ा दुलारा !
दौड़ा आ फिर पेट में उतरा !!
सब बेहोश किये – मै खेला
अट्टहास कर गरजा बोला
खा जाऊँगा जो आएगा
पेट अगर जो नहीं भरेगा
खोद कुआँ यूं ही मत छोड़े
बहरे कान फटे फिर जागे !!
मै राक्षस हूँ -काल तुम्हारा
सोनू का भाई बड़ा दुलारा !
दौड़ा आ फिर पेट में उतरा !!
सब बेहोश किये – मै खेला
अट्टहास कर गरजा बोला
खा जाऊँगा जो आएगा
पेट अगर जो नहीं भरेगा
खोद कुआँ यूं ही मत छोड़े
बहरे कान फटे फिर जागे !!
पुलिस लिए सब दौड़े आये
चार -चार को धरा निकाला !
अस्पताल ले जा फिर रोये
सभी मरे सब को मै खाया !!
चार -चार को धरा निकाला !
अस्पताल ले जा फिर रोये
सभी मरे सब को मै खाया !!
या पिंजौर देश काल कुछ
कौशल्या तट की हो बस्ती
मै बस देखूं अपना पेट
या मेरा तू पेट भरे – जा
या प्रिय का वलिदान दिए जा !
सूखा देख अगर जो छोड़े
मूरख -पानी -आँखों ले -ले !!
कौशल्या तट की हो बस्ती
मै बस देखूं अपना पेट
या मेरा तू पेट भरे – जा
या प्रिय का वलिदान दिए जा !
सूखा देख अगर जो छोड़े
मूरख -पानी -आँखों ले -ले !!
यह रचना एक सत्य घटना पर आधारित है पांच का सिक्का एक अंधे सूखे कुएं में गिर जाने के कारण बालक कुएं में जहरीली गैस का शिकार हुआ तो पीछे पीछे सारा परिवार प्राण की आहुति दे गया -कितने मूर्ख हैं हम इतने बार देख चुके- फिर भी न तो “बोर” को बंद करते हैं न “कुएं” को जब कोई बलि चढ़ जाता है तो बस बैठ के रोते हैं – आइये सब मिल इससे बचें और सब मिल कम से कम इसे घेर कर बच्चों और जानवरों का प्राण बचाएं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत मार्मिक रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteपतली द विलेज जी -
ReplyDeleteये इस तरह के बच्चों की व्यथा कथा रुला देती है सब कुछ देख भी हम सजग नहीं होते अपने प्रिय को गंवा देते हैं -आइये सब मिल होश में आयें कुछ करें
शुक्ल भ्रमर ५
बेहतरीन जानकारी, ऐसा कई जगह हो चुका है,
ReplyDeleteसंदीप जी ठीक कहा आप ने ऐसा बहुत जगह हो चूका है फिर भी हम आँखें बंद किये रहते हैं जब कुछ घटना हो जाती है तो रोते बैठे हैं
ReplyDeleteधन्यवाद आप की प्रतिक्रिया के लिए
roshni के द्वारा May 23, 2011
ReplyDeleteशुक्ल जी आजकल इस तरह के कितने ही हादसे हो रहे है ….कितने बच्चे इस भूखे गड़े में गिर के मर जाते है .मगर सुधार कही नहीं है ……
अच्छी रचना के लिए आभार
surendr kumar shukla bhramar 5 के द्वारा May 23, 2011
रौशनी जी सच कहा आप ने- कितनी बार देख चुके हम ये हादसे तब भी कुछ भी इसे बचने के लिए नहीं करते और फिर जब हम अपने किसी प्रिय को गंवा बैठते हैं तो बस रोना पीटना ही हमारे हाथ रहता है
इस व्यथा में शामिल होने के लिए और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
शुक्ल भ्रमर ५
shuklabhramar5 के द्वारा May 23, 2011
जी भ्रमर जी , बहुत बढ़िया लिखा है आपने
रचना वर्मा
धन्यवाद |
आदरणीया रचना जी -धन्यवाद आप का -इस सामाजिक कमी की ओर आप का ध्यान गया जिसे हम नजरंदाज करते हैं और इस तरह के बोर वेल और सुखें कुएं हमारे प्रिय की जान ले लेते हैं तो आँखे पल भर के लिए खुलती हैं बस -काश लोग इस पर विराम लगायें
शुक्ल भ्रमर ५
आदरणीय कुश्वंश जी हार्दिक अभिनन्दन है आप का "भ्रमर का दर्द और दर्पण में कृपया अपना मार्ग दर्शन सुझाव व् स्नेह बनाये रखें ताकि साहित्य से जुड़ समाज की सेवा की जा सके
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५