बड़े चैन से सोया था मै
मंदिर सीढ़ी पड़ा कहीं
क्या क्या सपने -खोया था मै
ले भागी स्टेशन जब !!
सीटी एक जोर की सुन के
चीख उठा मै कान फटा
एक भिखारन की गोदी में
मंदिर सीढ़ी पड़ा कहीं
क्या क्या सपने -खोया था मै
ले भागी स्टेशन जब !!
सीटी एक जोर की सुन के
चीख उठा मै कान फटा
एक भिखारन की गोदी में
(फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया)
सुन्दर-सजा हुआ लिपटा
देख रहा अद्भुत एक नारी !!
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बड़ी भीड़ में घूर रही कुछ
तेज निगाहें देख रहा
अरे चोरनी किसका बच्चा
ले आई यों खिला रही
शर्म नहीं ये धंधा करते
खीसें खड़ी निपोर रही
देख रहा शरमाती नारी !!
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फटी हुयी साडी लिपटा के
मुझे लिए डरती भागी वो
खेत बाग़ डेरे में पल के
खच्चर -मै -चढ़ घूम रहा
सूखा रुखा मुर्गा चूहा
पाया जो आनंद लिया !
कान छिदाये माला पहने
नाग लिए मै घूम रहा !
खेल दिखाता करतब कितने
“बहना” भी एक छोटी पायी
भरे कटोरा ले आते हम
ख़ुशी बड़ी अपनी ये माई !
देख रहा क्या लोलुप नारी !!
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उस माई का पता नहीं था
कहीं अभागन जीती जो
या लज्जा से मरी कहीं वो
साँसे गिनती होगी जो
सोच रहा वो कैसी नारी !!!
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अपनी माँ को माँ कहने का
सपना मन में कौंध रहा
उस मंदिर में बना भिखारी
रोज पहुँच मै खड़ा हुआ
जिस सीढ़ी से मुझे उठा के
इस माई ने प्यार दिया
सोच रहा था ये भी नारी !!!
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माई माई मै घिघियाता
कुछ माई ने देखा मुझको
सिक्का एक कटोरे डाले
नजरों जाने क्या भ्रम पाले
कोई प्यार से कोई घृणा से
मुह बिचका जाती कुछ नारी
कितने रूप धरे तू नारी !!!
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नट-नटिनी के उस कुनबे में
मुझे घूरती सभी निगाहें
कृष्ण पाख का चंदा जैसे
उस माई का “लाल ये” दमके
कोई हरामी या अनाथ ये
बोल -बोल छलनी दिल करते
देख रहा अपमानित चेहरा -तेरा -नारी !!
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बच्चों की कुछ देख किताबें
हाथ में बस्ता टिफिन टांगते
कितना खुश मै हँस भी पड़ता -
मन में !! -दूर मगर मै रहता
छूत न लग जाये बच्चों को
प्यारे कितने फूल सरीखे !
गंदे ना हो जाएँ छू के !
हँस पड़ता मै -रो भी पड़ता
हाथ की अपनी देख लकीरें
देख रहा किस्मत की रेखा !!!!
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तभी एक “माई” ने आ के
पूड़ी और अचार दिया
गाल हमारा छू करके कुछ
“चुप” के से कुछ प्यार दिया
गोदी मुझे लगा कर के वो
न्योछावर कर वार दिया !
कुछ गड्डी नोटों की दे के
इस माई से मुझे लिया !!
भौंचक्का सा बना खिलौना
“उस माई ” के संग चला
देख चुका मै कितनी नारी !!!
कितने रूप धरे तू नारी !!
———————————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१७.५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न
पूड़ी और अचार दिया
गाल हमारा छू करके कुछ
“चुप” के से कुछ प्यार दिया
गोदी मुझे लगा कर के वो
न्योछावर कर वार दिया !
कुछ गड्डी नोटों की दे के
इस माई से मुझे लिया !!
भौंचक्का सा बना खिलौना
“उस माई ” के संग चला
देख चुका मै कितनी नारी !!!
कितने रूप धरे तू नारी !!
———————————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१७.५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
bahut hi sundar aur marmik rachna ,shabdo ne ek adhbut chitr khincha hai jo mitegi nahi
ReplyDeleteसम्माननीया ज्योति जी धन्यवाद आप का-
ReplyDeleteइस रचना के निहित भाव और चित्रमय प्रस्तुति आप को अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ सच में जो आँखों देखा होता है मूर्त रूप बन ही जाता है न -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें
आप की प्रतिक्रिया से मन गद गद हुआ
शुक्ल भ्रमर ५
.
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी ,
पहली बार आपके ब्लौग पर आना हुआ है। यहाँ आकर एक बात का दुःख हुआ की इतने अच्छे ब्लौग को पढने से अभी तक वंचित क्यूँ थी।
पहली बार इतनी उत्कृष्ट रचना पढ़ी। कविता के भाव और शिल्प अद्वितीय हैं। आपने स्त्री - मन को इतनी करीब से समझा , यह एक सुखद आश्चर्य जैसा है। बहुत अच्छा लगा।
The poem has caressed my soul. Thanks.
.
डॉ दिव्या श्रीवास्तव-आयरन लेडी या जील जी पहले तो आप का यहाँ पर अभिवादन और अभिनन्दन -यों तो हमने कई बार कई ब्लॉग पर देखा -पढ़ा-पर समय कम होने के कारण -ठीक समझ नहीं सका -जिसका हमें भी खेद है आप का ब्लॉग बहुत सुन्दर है -
ReplyDeleteजब आप ने लिखा की यहाँ आकर एक बात का दुःख हुआ तो मै डर गया -बाद में देखा आप का स्नेह उमड़ा-देर से आने पर आप ने खेद जताया तब मन को शांति मिली
कल जब आप के बारे में आप के विचारों को पढ़ा तो फिर मै जुड़ सका आप से बहुत सुन्दर आप के विचार समाज और नारी की वेदनाओ और उनको जोश देना सुन्दर लगा यहाँ भी आप की प्रतिक्रिया पढ़ मन झूम गया बाहर रह भी आप लोगों का उत्साह और हिंदी से हमारे भारत माँ से जुड़े रहना कितना प्यारा हैं
देर ही सही अपना स्नेह सुझाव समीक्षा देते रहें तो भ्रमर का दर्द और दर्पण और दर्द समेट लाये -
आप सब का स्नेहकांक्षी
शुक्ल भ्रमर ५
सुंदर कविता, जबरदस्त मेहनत,
ReplyDeletebahut hi bhavpurna aur marmik prastuti........... sunder kavita
ReplyDeleteसंदीप जी धन्यवाद
ReplyDeleteआप का ये मेहनत रंग लायी एक अनाथ बाल मन और नारी का रूप -मार्मिक चित्रण आप को भाया हर्ष हुआ सुन
उपेन्द्र उपेन जी नमस्कार अभिनन्दन और धन्यवाद आप का नारी के बिभिन्न रूप और बच्चे की जिंदगी का बिखर जाना उसके मुह से सुन आप को अच्छा लगा काश नारियां इसे समझें -
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५