मै हूँ सजना के दिल की रानी
बखानी का --- मोर सखी
काज - हुनर जो माँ ने सिखायो
ओ से सासू हैं मोरी जुड़ानी
बखानी का --- मोर सखी
गुण -संस्कार जो बाबू से पायो
मोरे ससुरा कहें बेटी रानी -
बखानी का --- मोर सखी
बुद्धि ज्ञान जो भईया से पायो
मानें देवरे लक्ष्मी- भाभी -रानी
बखानी का --- मोर सखी
घुल मिल खेल भाभी -छोटी सिखायो
बनी बहना ननद देवरानी
बखानी का --- मोर सखी
बने वो तो दीवाने -मै -दिवानी
बखानी का --- मोर सखी
लाज तेज कुल गाँव जो दीन्हो
मोरे बलमा कहें सच- भवानी
बखानी का --- मोर सखी
मै हूँ सजना के दिल की रानी
बखानी का --- मोर सखी
(photo with thanks from other source)
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
7.5.2011
७.३० मध्याह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
आंचलिक शब्दों छटा न्यारी ही होती है.... सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रिय मोनिका जी धन्यवाद
ReplyDeleteआप की प्यारी प्रतिक्रिया के लिए हाँ आंचलिक रचनाएँ अपने में वहाँ की भाषा -खुश्बू समेटे रहती हैं इसलिए और प्यारी लगती हैं
आप ने इसे समझा सराहा खुशी हुयी