माई का जियरा गाइ कहावा
एक लाडला पुत्र जिसे की अशिक्षित माँ बाप दम भर के भविष्य में उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचाने का ख्वाब संजोते हैं परिस्थितियों की विडंबना ऐसी की पिता के असमय स्वर्गवासी होने के बाद माँ महगाई से मार खाकर पढ़ाने से जब इंकार कर देती है तो बच्चे की वेदना फूट पड़ती है और सपने चकनाचूर- पालि के हमका तू मारू मोरी माई- उसके इस कथन से मन द्रवित हो जाता है
---काश कोई उसके अंतर्मन को पहचान –
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
तुहिन कहू बड़े भाग से पाये
सारी उमरिया का फल इहै आये
नोनवा अउ रोटिया खियाई के जिआए
विधि अब एक आस पूरी कराये
हमारे ललन का अफीसर बनाये
बचपन से कहि कहि जियरा बढ़ाऊ
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
सारे गौना में शिक्षा मोहाल बा
करज में डूबे सब खेतवउ बिकात बा
लाला अउ मुनीम खाई खाई के मोटात बा
घर अउ दुवरवा कुडूक होई जात बा
भैया हमरा टाप कई के देखाए
माई बाप का नमवा जगाये
अब कैसे ई सब भुलानू मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
सरकार का कोसू स्कूलवा खोलायेसि गऊआँ के लड़िकन का नमवा लिखायेसि
सारी पढ़इया मुफ्त करवायेसि
पंचये में पहिला नंबर लियाए
तोहरे अशवा का ऊँचा बढ़ाये
तब काहे हमसे रिसानु मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
खरचउ हरदम हम सीमित चलाये
दिहू जौन हमका उहई हम पाए
चाय पान पिक्चर का कबहूँ न धाये
फीसउ आधी हम माफ़ कराये
अठयें तक हरदम वजीफा लियाए
तब काहे दुश्मन बनाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
बाबू के रहत तक ख़ुशी से पढाऊ
कबहूँ न कौनउ कमवा कराऊ
जातई सारी जिम्मेदरिया डाऊ
सांझ सवेरे तू हरवा जोताऊ
तब काहे जुलुमवा ढाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
सारा काज कई के पढ़इआ चलाये
सोचि भविषवा हम फूला न समाये
कबहूँ ना सोचे की ई दिन आये
सारी कमइया वृथा होई जाये
महल सपनवा का ऐसें ढही जाये
नंवई से पढ़इआ छोड़ाऊ मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---
सारे अरमानवा पे पानी फिराऊ
चढ़ाई सरगवा पे हमका गिराऊ
गंउआ से हम का आवारा कहाऊ
खुद अपनेऊ पे सब का हंसाऊ
उठे ला करेजवा में हिलोर मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---
गाइ गुन गान न छतिया फुलउतू
चाहे हम से तू हरव्इ जोतउतू
आगे क सपना न हमका देखउतू
बिना विचारे जग का हंसाऊ
जल बिनु मीन हमइ तडफाऊ
पालि के हमका तू मारू मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---
फिर पहिले का वचन दोहरावा
तम का भगाइ आलोक जगावा
“माइ का जियरा गाइ कहावा”
कहें भ्रमर अब जियरा बढ़ावा
मंहगाई का न डरवा देखावा
राखहु मोर दुलार हो माई
हम का ल्या फिर से उबार मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत सार्थक शब्दों में रची गयी रचना .....आपका आभार
ReplyDeleteकेवल राम जी हार्दिक अभिनंदन आप का यहाँ पर -प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआप को यह भाषा समझ में आई और प्रयास सार्थक लगा -सुन बहुत अच्छा लगा -ये एक बालक की वेदना जो पढ़ना चाहता है पर आगे पढ़ नहीं पा रहा है काश हमारी सरकार और लोग इस तरह की लोगों को सहायता पहुंचाएं
शुक्ल भ्रमर ५
प्रिय आशुतोष जी अभिनन्दन है आप का भमर का दर्द और दर्पण में -
ReplyDeleteआप के प्रोत्साहन और शुभेच्छा के लिए आभारी हैं हम
शुक्ल भ्रमर ५
dil ko chhune vali rachna padne ke liye thanks bahut sundar rachna
ReplyDeleteडॉ किरण मिश्र जी अभिवादन है आप का यहाँ पर -रचना ये एक विद्यार्थी की वेदना माँ को आगे की शिक्षा दिलाने की -आप के ह्रदय को छू गयी -हम आभारी हैं आप के
ReplyDeleteआओ सब मिल इस तरह के वाक्यात में सहृदयता वर्तें
शुक्ल भ्रमर ५
bhamar ji
ReplyDeleteaapki rachna ki tarrif sachche dil se karti hun .waqai aapne apne man ke dard ko bahut hi sahjta ke saath bayan kiya hai.
par maa ki bhi to koi na koi majburi hoti hai .har maa apne bachche ke liye bade bade khvab hi dekhti par kismat ke aage kiska vash chala hai.
bahut hi bhav -bhiniiaur man ko choo lene wali prastuti
bahut abhut badhai
poonam
पूनम जी नमस्कार -बाल मन की व्यथा आप के मन को छू गयी और ये रचना आप को इतनी प्यारी लगी आप ने इतना समय दिया इस रचना पर देख बहुत ही हर्ष हुआ
ReplyDeleteआप ने सच कहा की कोई माँ नहीं चाहती की उसका लाल आगे की पढाई न करे उसका भविष्य न बने -उसकी मजबूरियां तो होती ही हैं -इसी के लिए तो ये आह्वान है की लोग आगे आयें और खुद तथा सरकार से योगदान के लिए गुहार लगाएं
आभार आप का