BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Sunday, February 27, 2011

मेरी कविता खट्टी-मीठी शबरी का है बेर..-meri Kavita-Shuklabhramar-Hindi Poems

मेरी कविता खट्टी-मीठी शबरी का है बेर..

मेरी कविता -प्यारा सा इक तेरा चेहरा
भोली आँखें - 'नूर' भरा है
'उस' चेहरे का तपता-बुझता
दर्पण सारा-   क्रूर   भरा है . . .

मेरी कविता खट्टी- मीठी 
शबरी का है बेर 
सीता-राम का गुण गाती ये 
दुर्गा का है शेर .

आओ हाथ मिला लें हम सब 
'एक जातीहम-भाई 
झंडा गाड़ सकें सूरज पर 
पार करें हर खांई .

इस कविता में चुन के रख दो 
दर्पण ईंट  गंगा पानी 
महल बने -धोएं सब चेहरे,
गले मिलें -दुनिया के प्राणी 

टिमटिम-तारे -प्यारी चंदा 
धूमकेतु संग -राहू-केतु हैं   
मलयागिरि की मस्त हवाएं 
अंधड़ उजाड़ - तूफ़ान भरा है

कविता है संगीत-सुरमई
भैरव-ताल-मृदंग भरा है
खुश्बू है कलियों फूलों की
समर "पंक' सरोज खिला है  

मधुर-माधुरी -रस -पराग है
चंदा -चातक-मद -भौंरे हैं
विषधर-मणि- गोपी -कृष्णा हैं
जीवन -दाई जहर भरा है .


शहनाई -दूल्हा -घोड़ी है ,
अंकुश-चाबुक-विरह -व्यथा है,
दुल्हन सजी -अप्सरा-हंसती
विधवा-व्यथा-'कपाल' भरा है

धीर-धरम-शिव-सत्य भरा है
सत्यम शिवम् सुन्दरम से तो .
धरिस्त-चोर-बदनाम यहाँ है
भ्रष्ट -नीच -चढ़ - मंच खड़ा है .

माँ-ममता -आँचल -मनभावन
बंजर -बाँझ-विदीर्ण- हुआ मन
जलसे -उत्सव-वर्षा -सावन
सूखा पाथर -भूखे का मन .

चूस-चूस रस लेते भौंरे
'तितली' 'सोलह -श्रृंगार' भरा है
इन्द्रधनुष हैं -झूमते बादल
मेरी दुनिया में -"अकाल" बड़ा है.

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२७.०२.२०११ जल पी.बी.
नारी..पतंग..कोयला..घाव बना नासूर ....

Thursday, February 17, 2011

मेरी बिटिया कितनी प्यारी -A COLLECTION OF HINDI POEM BY BHRAMAR

 मेरी  बिटिया  कितनी  प्यारी
 
मेरी  बिटिया  कितनी  प्यारी ,
रंग  बिरंगे  फूल  लगाये ,
उडती  फिरती  बगिया  क्यारी ,
 जब  उठती  कोयल  सी  बोले ,
मात  पिता  के  पैर  को  छुए ,
लगता  सूरज  उग  आया ,
ज्योति  - जीवन  दुनिया  लाया ,
मुस्काती  तितली  बिजली  सी ,
सब  को  नाच  नचाती  फिरती ,
माँ  की  चपला  प्यारी  फिरकी ,
रामा  की  बोलो  तुम  सीता ,
या  कान्हा  की  गीता  ,
लक्ष्मी  का  अवतार है  बेटी ,
घर  को  रोज  सजाये ,
दर्द  भरा  हो  दिल   में  कुछ  भी ,
उसको  दूर  भगाए ,
उसके  गम  के  आगे ,
भाई  सब  कुछ  फीका  पड़  जाये ,
तभी  तो  डोली  उठते  उसकी ,
सब  रोते  रह  जाएँ ,
अपने  दिल   के  टुकड़े  को  हम ..
इतने  'दर्द'  सहे  भी  देते ,
क्योंकि    रोशन  सारा  जग  होना  है ,
मेरा  घर  .. बस  एक  कोना  है ,
जा  बेटी  जगमग  तू  कर  दे ,
घर  आँगन  हर  कोना ,
कहीं  बना  दे  सीता  प्यारी ,
कहीं  राम  भरत  व्  कान्हा ,
जग  जननी  तू  जीवन  ज्योति ,
जितने  नामकरण  सब  कम  हैं ,
सभी  कर्म  या  सभी  धरम  हों ,
सभी  मूल  या  सभी  मंत्र  हों ,
“माँ ’ बिन  सभी  अधूरा ,

तेरे  रूप  अनेक  हैं  बेटी ,
गायत्री , काली  या  दुर्गा ,
जब  जो  चाहे  धर  ले ,
जग  का  है  कल्याण  ही   होना ,
मन  इतना  बस  निश्चित  कर  ले .

मेरी  लाख  दुआएं   बेटी  तू  
ऐसा   कर  जाये ………….
याद  में  तेरी  मोती  छलके
हर  अँखियाँ  भर  आयें .

सुरेंद्रशुक्ला  “भ्रमर ” on  daughters   day…..17.1.11

Wednesday, February 16, 2011

“Building the Nation” A COLLECTION OF HINDI POEMS BY BHRAMAR

“Building the Nation”

Use your power,
Being a clever
As intellectual
Not destroyer..

Lest you
An Engineer
Doctor
Innovator
Editor
Or
Moderator,
Aim should be
common
“Building the Nation”
a newly creation….
lest
a poet
or artist
dramatist
writer …
or film maker..
musician
or magician..

Feel the pain
Suffocation
Struggle
And strain…
Anxiety
Poverty
From your brain…
Open heart
Contribute
And share
Always dare
To fight
Evils….
Live with style
In a fashion
Which thrills…..

Use your power,
Being a clever
As intellectual
Not destroyer..

Surendrashukla”Bhramar”
17.2.11 Jal ()

Tuesday, February 15, 2011

“चंदा को देख मन ” हिंदी पोएम्स (कविता ) by Bhramar.

चंदा  को  देख  मन भ्रमर  हिंदी  पोएम्स  (कविता )


(फोटो साभार एक अन्य स्रोत से सुन्दर कार्य में प्रयुक्त)

सागर  सा  शांत   मन ,
सदियों  से  क्लांत  मन ,
गहराई  नाप  नाप ,
पर्वत  से  लड़ा  मन ,
मोती  को  देख  देख ,
डूबे - उतराए ..
उछले - इतराए ,
अब  तक  का  खारा  मन
मीठा  हो  जाये  
चंदा को  देख - देख
लहर  …लहर  जाये >>>>

कल  –कल  करे  नदी ,
सूरज  की  किरणों  से
स्वर्णिम  सजी  नदी
चट्टानों  से  लड़ी ,
झरनों  से    गिरी ,
सोने  व्  चांदी  के
खानों  से  गुजरी
रुकी  नहीं -थमी  नहीं
चलती  ही  जाये  
सागर  की  बाँहों  में
गोता  लगाये
प्रियतम  ‘आगोश में
खोयी  चली  जाए  ….

चंदा को  देख  कुछ
गीत  गुनगुनाये
लहर  …लहर  जाये >>>>

 अंधकार  देख -देख
दुनिया  में  भटका  मन
व्यग्र -उग्र -एकाकी -
अंधड़  से  उजड़ा  मन
देख  एक  रौशनी
खिंचा  चला  जाये
दिया जला  देख  मन
दिवाली  मनाये
चंदा को  देख  मन
हीरे  व्  चांदी  सा
चमक -चमक   जाये >>>>

शरमाई  सी  कली
बंधन -जकड़ी  पली-
फूलों  को  देख - देख
खिलने  को  ‘पंखुरी
मद  से  भरी - बढ़ी
कांटो  को  देख  संग
सहमी  डरी  कली
भौंरे  को  देख  
फिर  साहस  जुटाए
खिली  चली  जाये
चंदा को  देख  मन -
-कमल  
खिला  खिला  जाये >>>>>

मेरा  किशोर  मन
पिजरे से  मुक्त  मन
हरियाली  झरनों  में
फूलों  व्  कलियों  में
खेतों  व्  बगियों  में
प्यारी  सी  गलियों  में
सागर  की  लहरों  में
नदियों  व्   झीलों  में
ढूंढता  फिरे -कोई -
बुलबुल  व्  हंसिनी
कोयल  व्  मोरनी
प्यारी  सी  संगिनी
मोती  चुगे  ये  मन  ..
हंस बना  !
गोरी की  पायल -
की  थिरकन  सुने
  -तो  मन -
गाने  को  गीत ,
व्यग्र  –आकुल -
हुआ  ये  मन ..
पीपल  के  पत्तों  
सा  शोर  मचाये ..
आम  ’ सा  बौराए ..
आई  “बसंती ”-
ने -मन  ललचाये
ये  !
तड़फडाये  ..         
पंख  फड़फडाये ..
उड़ा  चला  जाये >>>>

चंदा को  देख  मन
हहर  –हहर  जाये .

सुरेंद्रशुक्ला भ्रमर
७ .३०  पूर्वाह्न  
१५ .२ .११  जल ( पी.  बी. )

Monday, February 14, 2011

Bandar Ghurki -Bhramar- Hindi Kavita (Hindi Poem)

“Bandar Ghurki”

“vo” Bandar bs
chheen jhapat kar
khana jaane,
iska uska,
tera mera
naa pahchane.






Ghanghra Choli,
Pahne uchhle,
Bhola gumsum
Chehra karke,
Khel dikhaye-
“Maalik” ko –
roj rijhaye,
aur sabhi ko
Bandar ghurki,
Deta roj
Daraata .

Jo mil jaye,
Chheen jhapatkr
Khata-jata aur
Khilata.

‘Bandar Ghudki’
jo dar jaaye
uska ho nuksaan,
vahi bacha –
sakta hai apna
khada ho
seena taan.

Kuchh khaye,
Kuchh fenke jaaye,
Bhar le jaye –
Gaal.

Chhoot agar tum
Isko de do
Ye ban jaye,
Kaal.

Isiliye
Laathi –Damru
Ya chahe
Koi Dor,
Haath me
Rakhna apne,
Ankush.

Tabhi ye naache,
Kaam kare sab,
Bhule ghudki,
Rakh paayega
Sabko KHUSH.

Surendrashuklabhramar
5.00 PM Jal (PB).

Sunday, February 13, 2011

“पगली ” –भ्रमर –हिंदी पोएम (कविता) .

पगली ” –भ्रमर  –हिंदी  पोएम (कविता) .
पगली  इतना  
गट्ठर  बांधे ,
गली   गली  
मुस्काते  चलती ,
आँखों   से  वो  
करे  इशारे ,
नैन  मटक्का ,
फटी  हुई   धोती
से  अपने  ,
गली  बुहारे ,
दरवाजे  जा  -
खड़ी  गाड़ियों ,
के  शीशे  में
खुद  को  देखे ,
चमकाए  फिर
कमर  नचाये ,
बल  खाते -
लहरा  के  चलती ,

पगली  इतना  
गट्ठर  बांधे ,
गली  गली  
मुस्काते  चलती ,

उसका  घर  था ,
बेटे  –बेटी ,
बातें  करती  
आसमान  से ,
उनसे  लडती  
खड़ा  सामने ,
कोई  भी -
ना  देखा  करती ,
श्मशान  में  
जाकर  सोती ,
पल  दो  पल
जी  भर  के  रोती ,
फिर  अपना  वो  
गट्ठर  बांधे ,
चली  शहर  में -
आया  करती ,

पगली  इतना  
गट्ठर  बांधे ,
गली  गली  
मुस्काते  चलती

गिला    शिकवा ,
किस्से  भी - वो
कूड़ा   करकट -
कुत्तों  के  संग
भाग  दौड़कर ,
रोटी अपना -
खाया  करती  

पगली  इतना  
गट्ठर  बांधे ,
गली  गली  
मुस्काते  चलती

सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
१३ .२ .११  जल  (पी बी ) ४ .४५  पूर्वाह्न