BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, November 11, 2011

भावी पीढ़ी चलो बनायें



भावी पीढ़ी चलो बनायें
मात पिता सब आओ मिलकर
भावी पीढ़ी स्वर्ग बनायें
पहले तो आने ही ना दें
अल्ट्रा साऊंड रोज कराएं
बिना इजाजत आ ही धमकें
बदले में हम कुछ कर जाएँ
आँख खुले तो टी वी देखें
यूरोप चैनेल सौ सौ उनको
बड़े बड़े स्पीकर ला के
कान में लम्बे तार घुसा के
भेजा फ्राई हम कर जाएँ
कार का शीशा खोले उनको
बन्दर सा लटका दें
या स्टीयरिंग पकड़ा करके
बच्चों पर चढवा दें
रोज चाट पूरी हाट डाग
आईस्क्रीम खिलाने जाओ
उनके दांत के बड़े विटामिन
टाफी झोले भर ले आओ
भेजो जब स्कूल उन्हें तो
दस मोबाईल ले के दे दो
मोटर साइकिल कार हो सर्कस
अस्पताल हड्डी जुड़वाओ
रोज पिओ तुम सिगरेट दारु
महफ़िल घर में रोज सजाओ
“मित्र” बना के बेटा -बेटी
“सारी ” कला निपुण करवाओ
कहीं कैबरे डिस्को “बार” -कहीं बालाएं
खाना खाने को महामहिम हे !
बीबी -बच्चे वहीं ले जाएँ
भाग-भाग वे साइबर कैफे
इन्टरनेट ना दौड़े जाएँ
लैपटाप ला ला के दे दो
बंद किये घर “रात” बनायें
तुम तो कुछ “कपडे” पहने हो
उनको बोलो “मुक्त” रहें
मूल अधिकार का हनन नहीं हो
गूंगे सा तुम देख हंसो
आई ऐ यस यम बी ऐ उनको
लूट-पाट के चलो बनाओ
काले धन चोरी की बातें
राज नीति जी भर सिखलाओ
अगर जरुरत तुम्हे बेंच दें
भवन बेंच दें खेत बेंच दें
पैसे कैसे कहाँ कमायें
अपनी आँखों देख मरो
कहाँ जा रहा देश हमारा
ड्रग से कैसे बच्चे ऐन्ठें
नशा किये “वो” झूम नाचती
होटल में बेटी है पकड़ी
कहीं जेल में बेटी बैठी
बेटा गुंडा बना हुआ
कहीं द्रौपदी चीख भागती
दुनिया “मेला ” सभी बिका !
क्या सफ़ेद है क्या काला है
रावण राम में अंतर क्या !
क्या गुलाब है क्या काँटा है
बेचारों को नहीं पता !
पानी की बूंदों की खातिर
घिस -घिस विस्तर पे तुम जी लो !
भावी पीढ़ी अरे बनाया
नरक भोग कुढ़ -कुढ़ कर मर लो !!
प्रिय मित्रों आओ अपने बच्चों को बहुत प्यार दे दें दुलार दे दें उनको हर शिक्षा दीक्षा का संसाधन दे दें लेकिन हमेशा उन्हें निगरानी में अपने संरक्षण में रखें वे क्या कर रहे हैं नहीं कर रहे हैं वहां आते जाते रहें देखते रहें नेट और मोबाईल पर भी सारी सुविधा है और बच्चे क्या देख रहे हैं क्या पढ़ रहे हैं पल पल का हिसाब दर्ज रहता है आप उस को देखें कुछ गलत पायें तो निःसंदेह उन्हें समझाएं प्यार से ..हमेशा उन को लगे की आप उनके माँ पिता हैं उनके भविष्य को समझने वाले बनाने वाले हैं .
कृपया इसे एक व्यंग्य के रूप में ही लें -इस तरह की रचना के लिए क्षमा -
शुक्ल भ्रमर ५
यच पी ८.११.२०११
७-७.४० पूर्वाहन




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

6 comments:

  1. बहुत सटीक व्यंग...सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. आदरणीय कैलाश जी अभिवादन और आभार प्रोत्साहन हेतु रचना व्यंग्य से कुछ कह सकी सुन ख़ुशी हुयी
    शुक्ल भ्रमर ५

    ReplyDelete
  3. आदरणीया संगीता जी बहुत बहुत आभार आप का इस व्यंग्य भरी रचना को आप का समर्थन मिला सच में बच्चों पर ध्यान दे संस्कार भरना बहुत जरुरी है
    भ्रमर ५

    ReplyDelete
  4. सुषमा जी अभिवादन रचना की प्रस्तुति और इस पर अपना समर्थन जताने के लिए आभार
    भ्रमर ५

    ReplyDelete

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५