माया नगरी है ये सनम
यहाँ बड़ा जादू है
देते हैं दूध - उन्हें
खून - बना देते है
उड़ चले जिस्म - कहीं
जमी नहीं होती है
काट देते हैं कभी- यार
दिलदार - बड़े माहिर हैं
रक्त एक बूँद भी -गिर ना पाए
बेवफा ये--- बड़े जालिम हैं
माजरा- ये जग जाहिर है "भ्रमर "
फिर भी-- न जाने क्यों -- हम
फंसे चले जाते हैं !!
शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी १८.७.११ - ८.१५ -मध्याह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सुन्दर रचना , सार्थक विषय
ReplyDeleteआदरणीय यस यन शुक्ल ही आभार रचना का विषय सार्थक लगा -चलिए सम्हल -सम्हल के -
ReplyDeleteभ्रमर५
बहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteबधाई ||
प्रिय रविकर जी अभिवादन -बेवफा भायी आप को -सुन हर्ष हुआ प्रोत्साहन के लिए आभार -
ReplyDeleteभ्रमर ५
.......यह रचना भी बेमिसाल है !
ReplyDeleteएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
प्रिय संजय भाष्कर जी ..धन्यवाद रचना को पसंद करने के लिए अपना सुझाव व् समर्थन बनाये रखें --
ReplyDeleteआभार
शुक्ल भ्रमर५
आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं.
ReplyDelete_________________
'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आइयेगा.
आपकी हर एक कविता एक से बढ़कर एक है! बहुत बढ़िया लगा!
ReplyDeleteअक्षिता पाखी जी हार्दिक अभिवादन -माया नगरी को पसंद करने के लिए आभार -
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
बबली जी हार्दिक अभिवादन -माया नगरी को तथा और सभी कविता पसंद करने के लिए -प्रोत्साहन के लिए आभार -
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
I admire what you have done here. It is good to see your clarity on this important subject can be easily observed. Tremendous post and will look forward to your future update.
ReplyDeleteperdele living