राज-कमल है पूजा जाता
महल बसे दरबार लगे
रखवाली खुशहाली उसके
आगे पीछे चार लगे
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भैंसों के सींगों से डरते
खिला -तभी भी उसके जैसा
सरसिज-नभ में जैसे चंदा !!
खुश अवाम को रखता यूं है
तारे जैसे हों मयंक से आँख मिलाये
टिम-टिम टिम-टिम जलते बुझते
अंधियारे को रहते कोसों दूर भगाए
(photo with thanks from googal/net)
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राज -कमल से मिलने दौड़े
गिने चुने कुछ लोग पधारें
वो महलों अठखेली करता
मस्त रहे -निज रूप निहारे !!
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इधर कमल मुस्काते -डोले
पवन के संग-संग ले हिचकोले
लहरों के संग खेले जाए
देख उसे मेला लग जाए !!
नहीं कोई बंधन-सीमा है
जाति -धर्म ना धन-निर्धन का
जो भी आये ख़ुशी ख़ुशी वे
एक दूजे को गले लगा ले !!
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पुरवा कभी तो -पछुआ डोले
मौसम पल में अदले -बदले
उधर महल सरसिज की शोभा
में -नित नूतन सपने सजते
कीचड पत्ते रास न आते
नाल समेत वे कमल उखाड़े
दूर फेंक- फिर -बेदर्दी ना नजर मिलाते !!
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इधर कमल आया निखर पर
दो से पैदा चार हुए
चार घूम -चहुँ दिशि में छाये
मुस्काएं-सब को ललचायें
गले मिलाएं -खुश कर जाएँ
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"भ्रमर' कहें हे ! प्रभु कीचड से
कमल-खिले -गुण धरती-माँ का !
धैर्य ,प्रदाता, सहनशीलता
हरियाली -मुस्कान सभी को जाये देता !!
दे ऐसा माहौल इसे तू
इस सरसिज सा -प्यार हमेशा !
जहाँ -पर इसे खिलाये !!
नीर कभी भी ना कम होए !
नीरज - मन- ना कबहूँ मुरझाये !!
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शुक्ल भ्रमर ५- 12.7.2011-१० मध्याह्न
जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सही है भाई ||
ReplyDeleteबधाई ||
प्रिय रविकर जी प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद -
ReplyDeleteआभार
शुक्ल भ्रमर५
बहुत सुन्दर बात समझाई आप ने ..
ReplyDeleteसुंदर रचना..बधाइयाँ
आशुतोष भाई इस रचना में कुछ सार्थक बना -रचना भायी सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteआभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५