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बूढ़े जर्जर नतमस्तक हो
इतना बोझा ढोते
साँस समाती नहीं है छाती
खांस खांस गिर पड़ते !
दुत्कारे-कोई- लूट चले है
प्लेटफार्म पर सोते !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
सिर ऊंचा रख- फिर भी जीते !!
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वंजर धरती हरी वो करते खून -पसीने सींचे !
कहें सुदामा -श्याम कहाँ हैं ?
पाँव विवाई फूटे !
सूखा -अकाल अति वृष्टि कभी तो
कठपुतली से खेलें !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
पेट -पीठ से बांधे हो भी
पेट हमारा भरते !!
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बैल के जैसे घोडा -गाडी
जेठ दुपहरी खींचे !
जीभ निकाले पड़ा कभी तो
दो पैसे की खातिर कोई
गाली देता – पीटे
बदहवास -कुछ-यार मिले तो
चले लुटाये -पी के !!
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
दो पैसों से बच्चे तेरे
खाते -पढ़ते-जीते !!
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काले -काले भूत सरीखे
मैले कुचले फटे वस्त्र में
बच्चे-बूढ़े होते !
ईंट का भट्ठा-खान हो चाहे
मिल- गैरेज -में डटे देख लो
दिवस रात बस खटते !
नैन में भर के- ढांक -रहे हैं
“इज्जत” अपनी -रही कुंवारी
गिद्ध बाज -जो भिड़ के !
नमन तुम्हे- हे ! - तेज तुम्हारा
कल - दुनिया को जीते !!
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बर्फीली नदियों घाटी में
बुत से बर्फ लदे जो दिखते !
रेगिस्तान का धूल फांक जो
जलते - भुनते - लड़ते !
भूख प्यास जंगल जंगल
जान लुटाते भटकें !
कहीं सुहागन- विरहन -बैठी
विधवा- कहीं है रोती !
होली में गोली संग खेले
माँ का कर्ज चुकाते !
तुम को नमन हे वीर -सिपाही
दर्द देख -- जब रो मै पड़ता
तेरे अपने - कैसे -जीते !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२२.०६.२०११ जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बूढ़े जर्जर नतमस्तक हो
इतना बोझा ढोते
साँस समाती नहीं है छाती
खांस खांस गिर पड़ते !
दुत्कारे-कोई- लूट चले है
प्लेटफार्म पर सोते !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
सिर ऊंचा रख- फिर भी जीते !!
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वंजर धरती हरी वो करते खून -पसीने सींचे !
कहें सुदामा -श्याम कहाँ हैं ?
पाँव विवाई फूटे !
सूखा -अकाल अति वृष्टि कभी तो
आँत ऐंठती बच्चे सोते भूखे !
कर्ज दिए कुछ फंदा डाले कठपुतली से खेलें !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
पेट -पीठ से बांधे हो भी
पेट हमारा भरते !!
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बैल के जैसे घोडा -गाडी
जेठ दुपहरी खींचे !
जीभ निकाले पड़ा कभी तो
दो पैसे की खातिर कोई
गाली देता – पीटे
बदहवास -कुछ-यार मिले तो
चले लुटाये -पी के !!
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
दो पैसों से बच्चे तेरे
खाते -पढ़ते-जीते !!
--------------------------
काले -काले भूत सरीखे
मैले कुचले फटे वस्त्र में
बच्चे-बूढ़े होते !
ईंट का भट्ठा-खान हो चाहे
मिल- गैरेज -में डटे देख लो
दिवस रात बस खटते !
नैन में भर के- ढांक -रहे हैं
“इज्जत” अपनी -रही कुंवारी
गिद्ध बाज -जो भिड़ के !
नमन तुम्हे- हे ! - तेज तुम्हारा
कल - दुनिया को जीते !!
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बर्फीली नदियों घाटी में
बुत से बर्फ लदे जो दिखते !
रेगिस्तान का धूल फांक जो
जलते - भुनते - लड़ते !
भूख प्यास जंगल जंगल
जान लुटाते भटकें !
कहीं सुहागन- विरहन -बैठी
विधवा- कहीं है रोती !
होली में गोली संग खेले
माँ का कर्ज चुकाते !
तुम को नमन हे वीर -सिपाही
दर्द देख -- जब रो मै पड़ता
तेरे अपने - कैसे -जीते !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२२.०६.२०११ जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
यह दर्द कहाँ से आया भाई |
ReplyDeleteक्या है मर्ज, बताना भाई ||
आते हैं आँखों में आंसू--
अब न हमें सुनाना भाई ||
सुन्दर |
मुश्किल है प्रशंसा करना |
शब्दों का अकाल पड़ गया है झारखण्ड में--
इतने से ही काम चलाना भाई ||
bhut sarthak rachna...
ReplyDeleteरविकर जी अभिवादन
ReplyDeleteसच में दर्द के इस समुन्दर में शब्द कम पड़ जाते हैं -झारखण्ड में ये समुन्दर लगता है कुछ अधिक ही बड़ा है ??
शुक्ल भ्रमर ५
मन करता है दर्द से बचने दुनिया से कही और चला मै जाऊं
सुषमा जी साधुवाद
ReplyDeleteइस दर्द को आप ने महसूस किया -रचना सार्थक लगी आप को हम आभारी हैं आप के -आइये इन सब के प्रति नम्र रहें
शुक्ल भ्रमर ५
मन करता है दर्द से बचने दुनिया से कही और चला मै जाऊं
आ जाओ जरा इधर --http://dineshkidillagi.blogspot.com
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी बड़ी मेहनत भरा कार्य सुन्दर सार्थक सटीक रचना
ReplyDeleteइसीलिए तो भेजा तुमको दुनिया की रखवाली में
देखो रौंद न कोई जाए सुन्दर फूल व् डाली को !!
राम के ऊपर क्या क्या छोड़े
कहाँ कहाँ वे भटकेंगे
पाखंडी जिद्दी मूरख हैं
खुद का नाश किये जाते
कितना क्या समझा पाओगे
अपना सिर खुद पटकेंगे !!
शुक्ल भ्रमर ५
सुन्दर,भावपूर्ण,ज़मीन और सच्चाई से जुडी उत्कृष्ट रचना.......
ReplyDeleteनमन उन्हें जो नमन योग्य हैं.......शत-शत नमन
सुरेन्द्र सिंह झंझट जी अभिवादन सच कहा आप ने जो नमन करने योग्य हैं उन्हें नमन करना श्रेयस्कर है -आइये इन लोगों का ध्यान रखें उन्हें आहत न करें
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर 5
जब दर्द नहीं था सीने में तब खाक मजा था जीने में
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