मात पिता से सीखी संस्कृति
सीधा सरल सुहाया मुझको !
लाल बहादुर -गाँधी जैसे कितने सारे
खोज -खोज आदर्श बनाया !!
—————————————
ईमां -धन -की गठरी बांधे
लिए पोटली निकल पड़ा
जीवन पथ दुर्गम इतना था
चोर उचक्के ठग ही मिलते
माया मोह लालसा दे- दे
दोस्त बनो -या -आ-कह देते
——————————
पोटली उन्हें अगर ये दे दूं
तो भूखे मर जाऊं !
दोस्त अगर इनका बन जाऊं
जीवन सारा – चोर कहाऊँ !!
……………………………………..
मै ईमां- धन लेकर बढ़ता
घायल- रोज -शिकार -हुआ
बाघ चढ़े सब छाती मेरे
(फोटो साभार गूगल /नेट से )
सीधा सरल सुहाया मुझको !
लाल बहादुर -गाँधी जैसे कितने सारे
खोज -खोज आदर्श बनाया !!
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ईमां -धन -की गठरी बांधे
लिए पोटली निकल पड़ा
जीवन पथ दुर्गम इतना था
चोर उचक्के ठग ही मिलते
माया मोह लालसा दे- दे
दोस्त बनो -या -आ-कह देते
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पोटली उन्हें अगर ये दे दूं
तो भूखे मर जाऊं !
दोस्त अगर इनका बन जाऊं
जीवन सारा – चोर कहाऊँ !!
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मै ईमां- धन लेकर बढ़ता
घायल- रोज -शिकार -हुआ
बाघ चढ़े सब छाती मेरे
(फोटो साभार गूगल /नेट से )
बाघ के मुह में खून लग गया !!
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अब गुर्राते मुझे डराते
खून चूस लेंगे सारा !
धन्य मनाओ मूरख मेरी
अब तक तुझे नहीं मारा !!
————————————-
इक्के दुक्के जो भी अब तो
राह में मेरी आये !
जख्म लिए- चीखें- चिल्लाएं
इनको राम बचाए !!
——————————
बाघ के मुह अब खून लगा है
कौन हाथ डाले जबड़े पे !
पीड़ा सब के दिल अब होती
चाहे भी – तो कौन बचाए !!
——————————–
ले मशाल गर साथ बढ़ सको
लाठी डंडे हाथ !
बाघ से भैया बच पाओगे
राम भी देंगे साथ !!
————————
बाघ की शक्ति बहुत बढ़ गयी
ताल ठोंक चिल्लाये !
इस रस्ते पर जो आएगा
छोडूं ना बिन खाए !!
—————————
सत्य अहिंसा सत्य की डोरी
जो जबड़ा ना बाँधा !
कल को सारा खून पिएगा
अभी है चूसा आधा !!
—————————
भेद भाव में बँट या मूरख
कुछ दिन मौज मनाओ !
चक्की में कल पिस ही जाना
एक अभी हो जाओ !!
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शुक्ल भ्रमर ५
खून चूस लेंगे सारा !
धन्य मनाओ मूरख मेरी
अब तक तुझे नहीं मारा !!
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इक्के दुक्के जो भी अब तो
राह में मेरी आये !
जख्म लिए- चीखें- चिल्लाएं
इनको राम बचाए !!
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बाघ के मुह अब खून लगा है
कौन हाथ डाले जबड़े पे !
पीड़ा सब के दिल अब होती
चाहे भी – तो कौन बचाए !!
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ले मशाल गर साथ बढ़ सको
लाठी डंडे हाथ !
बाघ से भैया बच पाओगे
राम भी देंगे साथ !!
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बाघ की शक्ति बहुत बढ़ गयी
ताल ठोंक चिल्लाये !
इस रस्ते पर जो आएगा
छोडूं ना बिन खाए !!
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सत्य अहिंसा सत्य की डोरी
जो जबड़ा ना बाँधा !
कल को सारा खून पिएगा
अभी है चूसा आधा !!
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भेद भाव में बँट या मूरख
कुछ दिन मौज मनाओ !
चक्की में कल पिस ही जाना
एक अभी हो जाओ !!
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शुक्ल भ्रमर ५
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
हम सावधान है।
ReplyDeleteआप सावधान रहिएगा -हैं तो बहुत अच्छी बात है -ह हा -अब तो बाघ से बचना ......
ReplyDeleteअन्ध-मोड़ पर छोड के, भागा पापी घोर |
ReplyDeleteथे पैरों के दो निशाँ, पूरा आदमखोर ||
आदरणीय रविकर जी - थे पैरों के दो निशाँ ...सुन्दर पूरा आदमखोर - राम ही बचाएं
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
समाज की मूल्यहीनता पर अच्छी कविता।
ReplyDeleteहर तरफ काजल कोठरी ही है..............बचें तो बचें कैसे?