कोमल गात पुष्प सा था मै
हर नजरें चंहु और हमारे
घूम रही मंदराचल मथती
अमृत या फिर विष निकलेगा
शिव प्रकटे या उतरे लक्ष्मी
भय से चेहरे कुछ आकुल थे
राहु-केतु चंदा ना ग्रस ले
पीड़ा मिश्रित दुःख सुख छाये
श्वेत श्याम बादल ज्यों आये
बिजली चमके अरु गरजाए
अँधियारा फिर छंटा सुहाना
सूरज निकला भोर हुआ
किलकारी कानों में गूंजी
मिली धरोहर सारी पूंजी
सूनी कोख में शिशु यों शोभे
ज्यों अकाल सूखे रूखे में बदरा बरस हरित सब कर दे
फूले पुष्प हरे तरुवर हों
गले लगे हर मनवा झूमे
अंकुर दिन दिन बड़ा हुआ
फिर धू धू करती धूप जली
मिटटी भी अपने कर्मो में
लाल रंग सी तपी पड़ी
वहीँ कभी अंधड़ तूफाँ से
टूट-टूट फिर धूल उडी
हरियाली वर्षा से हर्षित
नदिया मिटटी उमड़ पड़ी
कभी कभी जर्जर हो प्यारी
पीड़ित हो यों कटी पड़ी
ममता की देवी सी मूरति
मन मोहे जेठ दुपहरी है छाया
रात की ये चंदा -चांदी सी
शीतल ओस सुहावन मोती
लोरी- परी- स्वर्ग है देवी
निंदिया पलकों की है मेरी
चूड़ी यही है चूल्हा है ये
बिंदिया यही है -भाग्य हमारा
ज्योति ज्योत्स्ना दीपक है ये
पुस्तक है ये अक्षर मेरी
नीति नियम संस्कृति है मेरी
प्रथम गुरु है पूज्य हमारी
रक्षा कवच हमारी है ये
प्रेम का सागर अमृत है ये
अनुशासन अंकुश है मेरी
बेलगाम की ये लगाम है
दुर्गा चंडी काली ये है
शिशु मै - ये प्राण हमारी
बेटा -बेटी पर बलिहारी
भेद -भाव से परे जो रहती
दुनिया माँ उसको है कहती
जननी ही न- है जगजननी
प्रथम पूज्य सृष्टि ये रचती
शत शत नमन तुझे हे माता
पावन -कर -हे ! भाग्यविधाता !!
शुक्ल भ्रमर ५
19.06.11. kartarpur jal pee bee
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सुन्दर रचना ||
ReplyDeleteबेटा बेटी पर बलिहारी |
धन्यभाग है आप जो आते -
ReplyDeleteआगे बढ़ने को कह जाते !!