आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
सहमा ठगा सा खड़ा झांकता था
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
कल पुर्जों ने गैस विषैली थी छोड़ी
लाश सडती पड़ी कूड़े कचरों की ढेरी
रक्त जैसे हों गंगा पशु पक्षी न कोई
पेड़ हिलने लगे मस्त झोंके ने आँखें जो खोली
व्योम नीला दिखा शिशु ने रो के बुलाया
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
कल पुर्जों ने गैस विषैली थी छोड़ी
लाश सडती पड़ी कूड़े कचरों की ढेरी
रक्त जैसे हों गंगा पशु पक्षी न कोई
पेड़ हिलने लगे मस्त झोंके ने आँखें जो खोली
व्योम नीला दिखा शिशु ने रो के बुलाया
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
(फोटो गूगल /नेट से साभार )
घबराहट अगर दिल बदल दो अब हैं दुनिया निराली
पाप हर दिन में हो हर समय रात काली
द्रौपदी चीखती -खून बहता -हर तरफ है शिकारी
न्याय सस्ता ,खून बिकता, जेल जाते भिखारी
घर से भागा युवा संग विधवा के फेरे रचाया
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
पाप हर दिन में हो हर समय रात काली
द्रौपदी चीखती -खून बहता -हर तरफ है शिकारी
न्याय सस्ता ,खून बिकता, जेल जाते भिखारी
घर से भागा युवा संग विधवा के फेरे रचाया
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
धन हो इज्जत लूटे रखे अब जमीं ना सुरक्षित
खून सर चढ़ के बोले उलटी गोली चले यही माथे पे अंकित
घर जो अपना ही जलता दौड़ लाये क्या मुरख करे रोज संचित
प्यार गरिमा को भूले छू पाए क्या -खुद को -रह जाये ना वंचित
एक अपराधी भागा अस्त्र फेंके यहाँ आज माथा है टेका
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
खून सर चढ़ के बोले उलटी गोली चले यही माथे पे अंकित
घर जो अपना ही जलता दौड़ लाये क्या मुरख करे रोज संचित
प्यार गरिमा को भूले छू पाए क्या -खुद को -रह जाये ना वंचित
एक अपराधी भागा अस्त्र फेंके यहाँ आज माथा है टेका
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला —
भूल माने जो- पथ शाम फिर लौट आये -न जाए
डाल बाँहों का हार -प्यार देकर चलो साथ स्वागत जताए
चीखती हर दिशा मौन क्यों हम खड़े ? आह सुनकर तो धाएं
भूख से लड़खड़ा पथ भटक जा रहे बाँट टुकड़े चलो साहस बढ़ाएं
स्वच्छ परिवेश रख -फूल मन को समझ
ध्यान इतना कहीं ये न मुरझाये
देख सूरज न कल का कहीं लौट जाए —-
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
सहमा ठगा सा खड़ा झांकता था
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
डाल बाँहों का हार -प्यार देकर चलो साथ स्वागत जताए
चीखती हर दिशा मौन क्यों हम खड़े ? आह सुनकर तो धाएं
भूख से लड़खड़ा पथ भटक जा रहे बाँट टुकड़े चलो साहस बढ़ाएं
स्वच्छ परिवेश रख -फूल मन को समझ
ध्यान इतना कहीं ये न मुरझाये
देख सूरज न कल का कहीं लौट जाए —-
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
सहमा ठगा सा खड़ा झांकता था
आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.६.२०११
२.६.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सच में आपका कविता हकीकत ब्यान कर रही है, जानदार बात सच्ची बात कही है,
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!!
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeletebehtreen prsturi...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, शानदार
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रिय संदीप जी कविता में हकीकत और जानदार बात आप को दिखी सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteआभार आप का
शुक्ल भ्रमर५
प्रिय सत्यम शिवम् जी आज सूरज बड़ी देर कुछ आंक निकला- एक गंभीर विषय को आप ने चर्चा मंच के लिए चुना हर्ष हुआ सुन कर संयोग से ४.६.११ को मै नहीं था इसलिए आप की प्रस्तुति देख नहीं पाया मै कोशिश करूँगा उसे पढने के लिए
ReplyDeleteआभार आप का
शुक्ल भ्रमर५
आदरणीय समीर लाल उड़न तश्तरी जी कविता के गंभीर भाव आप के मन को बेहतरीन लगे सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभार आप का
शुक्ल भ्रमर५
आदरणीय कैलाश चन्द्र शर्मा जी कविता के गंभीर भाव और सार्थक सन्देश आप के मन को छू सके सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभार आप का
शुक्ल भ्रमर५
सुषमा आहुति जी कविता के गंभीर भाव और सार्थक सन्देश आप के मन को छू सके भाव बेहतरीन लगे सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभार आप का
शुक्ल भ्रमर५
विवेक जैन जी नमस्कार कविता के गंभीर भाव और सार्थक सन्देश -बहुत सुन्दर और शानदार लगे आप के मन को छू सके सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभार आप का
शुक्ल भ्रमर५