BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, December 11, 2020

आओ कुछ मुस्का दें हम तुम


आओ कुछ मुस्का दें हम तुम
बंद होंठ कुछ कह जाएं
अनजाने ही सही मगर
इन नैनों से बतिया जाएं
जहां चलें हलचल दिल में हो
छाप छोड़ हम आ जाएं
देखो इन गुलाब फूलों को
कांटों संग भी खिल जाएं
पांवों में जंजीर हो जैसे
स्वागत को हिल डुल आएं
नित अच्छा करने की कोशिश
तन मन से हम जुट जाएं
जहां मिलें अच्छे, अच्छाई 
बढ़ें कदम, वर्तमान को गले लगाएं
चिड़िया चुग गई उस अतीत को
राग द्वेष सब माफ किए हे
 आओ प्यारे अब खिल जाएं

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५