आज खुशी है मन जो अपना
सारा जग सुन्दर लगता
कल कल निनादिनी मां गंगा सी
हर मन तन पावन लगता
धौलागिरि सा उज्ज्वल शीतल
पूत पवित्र रम्य सब दिखता
कलरव करते उड़ते गाते मोहित करते
पंछी कुल ज्यों वीणा का हो तार खनकता
शरद पूर्णिमा धवल चांदनी दुल्हन जैसी
सपनों में हर पर लगता
भरे कुलांचे मन को जैसे पंख लगे हों
खिले पुष्प संग रास रचा भौंरा हंसता
प्रीति प्रिया सुवरण से सज्जित
इन्द्रधनुष रंग, अंग - अंग गाता हंसता
सत्य सनेही मधु भर गागर बिखरी खुश्बू
लो आनंद हर्ष से पी अमृत कविता
आओ खोजें प्रेम जोड़ लें हाथ मुक्त मन
झूमें नाचें देखें जानें प्रभु अपना हर हर बसता ।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
1.11.2020
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५