BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, December 11, 2020

आज खुशी है मन जो अपना


आज खुशी है मन जो अपना
सारा जग सुन्दर लगता
कल कल निनादिनी मां गंगा सी
हर मन तन पावन लगता
धौलागिरि सा उज्ज्वल शीतल
पूत पवित्र रम्य सब दिखता
कलरव करते उड़ते गाते मोहित करते
पंछी कुल ज्यों वीणा का हो तार खनकता
शरद पूर्णिमा धवल चांदनी दुल्हन जैसी
सपनों में हर पर लगता
भरे कुलांचे मन को जैसे पंख लगे हों
खिले पुष्प संग रास रचा भौंरा हंसता
प्रीति प्रिया सुवरण से सज्जित 
इन्द्रधनुष रंग, अंग - अंग गाता हंसता
सत्य सनेही मधु भर गागर बिखरी खुश्बू
 लो आनंद हर्ष से पी अमृत कविता
आओ खोजें प्रेम जोड़ लें हाथ मुक्त मन
झूमें नाचें देखें जानें प्रभु अपना हर हर बसता ।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
1.11.2020

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५