कटी-पतंग-----------------------सतरंगी वो चूनर पहनेदूर बड़ी हैइतराती बलखाती इत-उतघूम रही है उड़ती -फिरतीहवा का रुख देखे हो जातीकितनों का मन हर के फिरती'डोर' हमारे हाथ अभी हैमेरा इशारा ही काफी हैनाच रही है नचा रही हैसब को देखो छका रही हैप्रेम बहुत है मुझे तो उससेजान भी जोखिम डाले फिरतादूर देश में इत उत मै भीनाले नदियां पर्वत घाटीजुडी रही है बिन भय के वोमुड़ी नहीं है, अब तक तो वोकितनी ये मजबूत 'डोर' हैकच्चा बंधन, पक्का बंधनचाहत कितनी प्रेम है कितनाकौन संजोये मन से कितनाकितनी इसे अजीज मिली हैखुश -सुख बांधे 'डोर' मिली हैकुदरत ने बहुमूल्य रचा है'दिल' को अभी अमूल्य रखा हैडर लगता है कट ना जायेया छल बल से काटी जाएकहीं सितारों पे ललचाये'आकर्षण' ना खींचती जाए'प्रेम' का नाजुक बंधन होताटूटे ना 'गठ-बंधन' होताहोती गाँठ तो लहराती हैहाथ न अपने फिर आती हैकटी-पतंग बड़ी ही घातकलुटी-लुटाई जाती घायलहाथ कभी तो आ जाती हैकभी 'डोर' ही रह जाती हैयादों का दामन बस थामेमन कुढ़ता, ना लगे नयी मेंजाने नयी भी कैसी होगीकैसी 'डोर' उड़े वो कैसी ??विधि-विधान ना जाने कोईक्या पतंग क्या डोर - हो कोई रचना अद्भुत खेल है पल कानहीं ठिकाना अगले कल का ..===================सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५६.००-६.३० पूर्वाह्न४.३.२०१४करतारपुर जालंधर पंजाबदे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
विधि-विधान ना जाने कोई
ReplyDeleteक्या पतंग क्या डोर - हो कोई
रचना अद्भुत खेल है पल का
नहीं ठिकाना अगले कल का
very nice expression .
बहुत बेहतरीन रचना भ्रमर जी ।
ReplyDeleteआदरणीया शालिनी जी रचना पसंद करने और यहां पधारने के लिए आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीय शाही जी स्वागत है आप का यहाँ , प्रोत्साहन के लिए आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
बहुत सुंदर भाव...
ReplyDeleteप्रिय हिमकर जी रचना पर प्रोत्साहन हेतु आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५